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मिहिर भोज की जाति पर जंग: दूसरे दिन भी नहीं थमा विवाद, गुर्जर समाज ने फिर की बसों में तोड़फोड़, जिले में धारा-144 लागू

मिहिर भोज (mihir bhoj) की प्रतिमा को लेकर चल रहा विवाद (Dispute) लगातार बढ़ता ही जा रहा है. आज गुर्जर समाज (Gurjar Samaj) के लोगों ने मुरैना (Morena) से ग्वालियर (Gwalior) जाने वाली बसों (buses) में फिर से तोड़-फोड़ की. इस घटना के दौरान लगभग 30 यात्रियों को हल्की चोटें भी आई थी. हालांकि शांति-व्यवस्था बहाल करने के लिए जिले में धारा-144 लागू कर दी गई है.

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मिहिर भोज की जाति पर जंग
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Published : Sep 24, 2021, 5:25 PM IST

Updated : Sep 24, 2021, 5:35 PM IST

मुरैना। गुर्जर प्रतिहार राजा मिहिर भोज (raja mihir bhoj) की प्रतिमा को लेकर चल रहा विवाद (dispute) अभी थमने का नाम नहीं ले रहा. गुर्जर समाज (gurjar samaj) के लोगों ने मुरैना (morena) से ग्वालियर (Gwalior) जाने वाली बसों (Buses) में आज सुबह से ही फिर तोड़-फोड़ कर दी है. यह घटनाक्रम बीते रोज भी चला था, जिसमें आधा दर्जन से अधिक बसों में तोड़ फोड़ की गई. इस घटना के दौरान लगभग 30 यात्रियों को हल्की चोटें भी आई थी.

मिहिर भोज की जाति पर जंग

आज फिर सामने आई तोड़ फोड़ की घटना
वहीं आज सुबह फिर तोड़ फोड़ का सिलसिला फिर शुरू हो गया. इससे नाराज क्षत्रिय समाज (Kshatriya Samaj) ने पुलिस और प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर सुरक्षा की मांग की है. साथ ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है. उधर, कलेक्टर ने एहतियात के तौर पर जिले में धारा-144 लागू कर दी है. वहीं कोचिंग सेंटर और अन्य संस्थानों की छूट्टी करा दी गई है.

आज फिर सौंपा ज्ञापन
दरअसल, इस मामले में क्षत्रिय समाज के लोगों का कहना है कि पुलिस प्रशासन अगर दोषियों पर कल ही कार्रवाई करता, तो आज बसों में तोड़फोड़ की घटनाएं फिर से नहीं होती. लोगों का आरोप है कि प्रशासन ने समाज विशेष के नेताओं के दबाव में है, और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं कर रहे. क्षत्रिय समाज के लोगों ने आज फिर पुलिस प्रशासन को सौंपा ज्ञापन, बसों की सुरक्षा की मांग की.

पुलिस ने 4-5 संदिग्धों को पकड़ा
वहीं बीते दिन क्षत्रिय और गुर्जर समाज के लोगों द्वारा जो कार्रवाई एक दूसरे समाज के विरुद्ध की गई. उस संबंध में भी कानूनी कार्रवाई की जा रही है. इस संबंध में पुलिस ने 4-5 संदिग्धों को पकड़ा भी है. दरअसल, मुरैना-ग्वालियर पर चलने वाली यात्री बसों की सुरक्षा के लिए जगह-जगह पुलिस तैनात की गई है, ताकि रास्ते में कोई घटना न घटे. पुलिस अधीक्षक ललित शाक्यवार ने सभी समाज के लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. साथ ही कहा है कि ग्वालियर (Gwalior) की घटना का मुरैना (morena) से कोई संबंध नहीं है. साथ ही कहा कि यहां ऐसी कोई घटना नहीं हुई और ना होगी.


ग्वालियर में NSA के तहत होगी कार्रवाई
विवाद के बाद ग्वालियर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह और एसपी अमित सांघी ने दोनों जातियों के नेताओं की बैठक बुलाई और कहा कि सम्राट मिहिर किसी भी वंश या समुदाय के हों, पर उनको लेकर शहर का माहौल न बिगाड़ा जाए, यदि चेतावनी के बाद भी कोई नहीं मानता है और इस तरह के काम करता है, जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है तो उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून व जिलाबदर की कार्रवाई की जाएगी, क्योंकि मामला न्यायालय में है.


जाति पर गुर्जर-क्षत्रिय के अपने-अपने दावे
हालांकि, सम्राट मिहिर भोज को लेकर हाल में कई विवादित घटनायें घटी हैं, जिनमें इनके गुर्जर या राजपूत होने को लेकर कई जगहों पर विवाद हुआ है, गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे, जबकि राजपूत समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि ये राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरा देश के एक क्षेत्र के नाम के चलते प्रयोग किया जाता है. इन दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण हाल में मिला है. वर्तमान में यही मुद्दा दोनों समुदायों के बीच कटुता और संघर्ष का कारण बन गया है.

क्या कहा पुरातत्व अधिकारी ने
वहीं इस संबंध में भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालत और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.

क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं
पुरातत्व अधिकारी ने आगे बताया कि मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार राजा थे, क्योंकि जितने राजाओं ने शासन किया है वे सभी क्षत्रिय थे, और क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं. हालाँकि वे राजपूत क्षत्रिय थे. क्योंंकि गुर्जर क्षेत्र का नाम था. वीरेंद्र पांडेय कहते हैं की इतिहास में लोगों ने क्षेत्र के हिसाब से जातियां बनायी थी.


सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद: युवाओं ने बसों में की तोड़फोड़, मुरैना में धारा 144 लागू


इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद
सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द पर ही ये विवाद शुरू हुआ है, गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर ठाकुर समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत की थी, जबकि गुरुवार को ही राजपूत करणी सेना ने सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर एतेहासिक तथ्यों को सामने लाने के लिए गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास एलवाई से मिलकर इतिहासकारों की कमेटी गाठित करने की मांग की थी.


'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी
सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया, उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है. इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे, इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे, इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था, ऐसा माना जाता है.

ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है. चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.


सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत
सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है, मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा हो रही है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन अब लोग कर रहे हैं तो क्या ही कहा जाए.

मुरैना। गुर्जर प्रतिहार राजा मिहिर भोज (raja mihir bhoj) की प्रतिमा को लेकर चल रहा विवाद (dispute) अभी थमने का नाम नहीं ले रहा. गुर्जर समाज (gurjar samaj) के लोगों ने मुरैना (morena) से ग्वालियर (Gwalior) जाने वाली बसों (Buses) में आज सुबह से ही फिर तोड़-फोड़ कर दी है. यह घटनाक्रम बीते रोज भी चला था, जिसमें आधा दर्जन से अधिक बसों में तोड़ फोड़ की गई. इस घटना के दौरान लगभग 30 यात्रियों को हल्की चोटें भी आई थी.

मिहिर भोज की जाति पर जंग

आज फिर सामने आई तोड़ फोड़ की घटना
वहीं आज सुबह फिर तोड़ फोड़ का सिलसिला फिर शुरू हो गया. इससे नाराज क्षत्रिय समाज (Kshatriya Samaj) ने पुलिस और प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर सुरक्षा की मांग की है. साथ ही दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है. उधर, कलेक्टर ने एहतियात के तौर पर जिले में धारा-144 लागू कर दी है. वहीं कोचिंग सेंटर और अन्य संस्थानों की छूट्टी करा दी गई है.

आज फिर सौंपा ज्ञापन
दरअसल, इस मामले में क्षत्रिय समाज के लोगों का कहना है कि पुलिस प्रशासन अगर दोषियों पर कल ही कार्रवाई करता, तो आज बसों में तोड़फोड़ की घटनाएं फिर से नहीं होती. लोगों का आरोप है कि प्रशासन ने समाज विशेष के नेताओं के दबाव में है, और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं कर रहे. क्षत्रिय समाज के लोगों ने आज फिर पुलिस प्रशासन को सौंपा ज्ञापन, बसों की सुरक्षा की मांग की.

पुलिस ने 4-5 संदिग्धों को पकड़ा
वहीं बीते दिन क्षत्रिय और गुर्जर समाज के लोगों द्वारा जो कार्रवाई एक दूसरे समाज के विरुद्ध की गई. उस संबंध में भी कानूनी कार्रवाई की जा रही है. इस संबंध में पुलिस ने 4-5 संदिग्धों को पकड़ा भी है. दरअसल, मुरैना-ग्वालियर पर चलने वाली यात्री बसों की सुरक्षा के लिए जगह-जगह पुलिस तैनात की गई है, ताकि रास्ते में कोई घटना न घटे. पुलिस अधीक्षक ललित शाक्यवार ने सभी समाज के लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है. साथ ही कहा है कि ग्वालियर (Gwalior) की घटना का मुरैना (morena) से कोई संबंध नहीं है. साथ ही कहा कि यहां ऐसी कोई घटना नहीं हुई और ना होगी.


ग्वालियर में NSA के तहत होगी कार्रवाई
विवाद के बाद ग्वालियर कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह और एसपी अमित सांघी ने दोनों जातियों के नेताओं की बैठक बुलाई और कहा कि सम्राट मिहिर किसी भी वंश या समुदाय के हों, पर उनको लेकर शहर का माहौल न बिगाड़ा जाए, यदि चेतावनी के बाद भी कोई नहीं मानता है और इस तरह के काम करता है, जिससे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है तो उसके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून व जिलाबदर की कार्रवाई की जाएगी, क्योंकि मामला न्यायालय में है.


जाति पर गुर्जर-क्षत्रिय के अपने-अपने दावे
हालांकि, सम्राट मिहिर भोज को लेकर हाल में कई विवादित घटनायें घटी हैं, जिनमें इनके गुर्जर या राजपूत होने को लेकर कई जगहों पर विवाद हुआ है, गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे, जबकि राजपूत समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि ये राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरा देश के एक क्षेत्र के नाम के चलते प्रयोग किया जाता है. इन दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण हाल में मिला है. वर्तमान में यही मुद्दा दोनों समुदायों के बीच कटुता और संघर्ष का कारण बन गया है.

क्या कहा पुरातत्व अधिकारी ने
वहीं इस संबंध में भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालत और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.

क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं
पुरातत्व अधिकारी ने आगे बताया कि मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार राजा थे, क्योंकि जितने राजाओं ने शासन किया है वे सभी क्षत्रिय थे, और क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं. हालाँकि वे राजपूत क्षत्रिय थे. क्योंंकि गुर्जर क्षेत्र का नाम था. वीरेंद्र पांडेय कहते हैं की इतिहास में लोगों ने क्षेत्र के हिसाब से जातियां बनायी थी.


सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर विवाद: युवाओं ने बसों में की तोड़फोड़, मुरैना में धारा 144 लागू


इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद
सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द पर ही ये विवाद शुरू हुआ है, गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर ठाकुर समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत की थी, जबकि गुरुवार को ही राजपूत करणी सेना ने सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर एतेहासिक तथ्यों को सामने लाने के लिए गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास एलवाई से मिलकर इतिहासकारों की कमेटी गाठित करने की मांग की थी.


'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी
सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया, उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है. इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे, इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे, इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था, ऐसा माना जाता है.

ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है. चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.


सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत
सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है, मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा हो रही है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन अब लोग कर रहे हैं तो क्या ही कहा जाए.

Last Updated : Sep 24, 2021, 5:35 PM IST
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