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कारगिल युद्ध में मंदसौर के वीर जवान ने पाकिस्तानी सैनिकों को चटाई थी धूल, दिखाया था अदम्य साहस - Kargil Victory Day

मंदसौर जिले के एक सैनिक ने कारगिल युद्ध में चार दिन भूखे रह कर लड़ाई लड़ी थी और रॉकेट लॉन्चर से पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ाए थे. जानिए उन्हीं की जुबानी, कारगिल युद्ध की कहानी.

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रिटायर्ड सैनिक दशरथ
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Published : Jul 23, 2020, 12:36 PM IST

मंदसौर। 21 साल पहले 26 जुलाई 1999 के दिन जम्मू-कश्मीर में भारत-पाक सीमा पर हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाकर युद्ध जीत लिया था. इस युद्ध में मंदसौर के सैनिकों का भी बड़ा योगदान रहा. इन्हीं सैनिकों में शामिल थे मंदसौर के दशरथ सिंह गुर्जर, जिन्होंने कारगिल युद्ध में रॉकेट लॉन्चर की जिम्मेदारी संभालते हुए विपक्षी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे. मालवा के वीर सिपाही दशरथ सिंह गुर्जर ने 40 दिन तक चले इस युद्ध में चार दिन तक भूखे- प्यासे रहकर पाकिस्तानी सेना पर लगातार हमला करते रहे. मंदसौर के छोटे से गांव गुर्जर बढ़िया में रहने वाले रिटार्यड सैनिक दशरथ सिंह गुर्जर ने बताया कि, जब वो हाई स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, इस दौरान महू की बटालियन से मंदसौर आए एक कर्नल के लेक्चर से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सैनिक बनने की ठान ली. जिसके बाद कड़ी मेहनत से 1994 में राजपूत रेजीमेंट में सैनिक चुने गए.

करगिल युद्ध में चार दिन भूखे रहकर विपक्षियों के उड़ाए चिथड़े

दशरथ ने निभाई रॉकेट लॉन्चर की जिम्मेदारी

दशरथ ने बाताया कि, 15 साल की सेना की नौकरी में उन्होंने साढे़ 12 साल जम्मू-कश्मीर सीमा पर चुनौतीपूर्ण ड्यूटी की. इस दौरान 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 40 दिन तक चले युद्ध में उनके ग्रुप को सीमा पर लड़ाई के आदेश हुए. 10-10 सैनिकों के ग्रुप में दशरथ सिंह को रॉकेट लॉन्चर की जिम्मेदारी दी गई थी. कड़ाके की सर्दी में भी दिन-रात दशरथ और उनके साथी दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे. निशानेबाजी में माहिर इस सैनिक ने रॉकेट लॉन्चिंग से ही विपक्षी सेना के कई जवानों के चिथड़े उड़ा कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. शुरुआती दौर से ही दशरथ दुश्मन की सेना के तगड़े हमलों को मात देने के लिए मैदान में डटे रहे. इस दौरान उन्हें चार दिनों तक भूखे प्यासे रहकर लगातार युद्ध लड़ना पड़ा.

ऑपरेशन विजय के पदक से नवाजा गया

ऑपरेशन विजय में जीत के बाद सरकार ने उन्हें सम्मानित किया. दशरथ सिंह को सरकार ने अपने सेवाकाल में विशेष सेना पदक, कारगिल विजय में ऑपरेशन विजय पदक, सर्विस मेडल और जम्मू-कश्मीर सेवा मेडल के अलावा शासकीय सेवा पदक से भी नवाजा गया. उन्होंने देश के युवाओं से सेना में भर्ती होकर सेवा करने की अपील की है.

दशरथ सिंह के पिता मोहन सिंह गुर्जर पेशे से वकील हैं. उन्होंने बताया कि, आजादी के समय से ही उनके परिवार से कोई न कोई देश सेवा के लिए सेना में रहा है. वहीं दशरथ के पिता और पत्नी को उनकी सेवा के दौरान कारगिल विजय के संघर्ष पर गर्व है. उनके पिता ने देशवासियों से अपने बच्चों को सेना में भेजकर सेवा करने की अपील की है.

ये भी पढ़ें- कारगिल युद्ध में ग्वालियर- चंबल के जवानों ने दिखाया था पराक्रम, कैप्टन वीएस भदौरिया ने साझा की यादें

बता दें, 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाकर कारगिल युद्ध जीत लिया था. इसी दिन भारत के वीर सपूतों ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत की भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. भारत माता की रक्षा के लिए 527 वीर जवान अपने प्राण न्यौछावर करते हुए शहीद हो गए थे. इन्हीं शहीदों के बलिदान को याद करते हुए हर साल 26 जुलाई को देश में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.

मंदसौर। 21 साल पहले 26 जुलाई 1999 के दिन जम्मू-कश्मीर में भारत-पाक सीमा पर हुए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाकर युद्ध जीत लिया था. इस युद्ध में मंदसौर के सैनिकों का भी बड़ा योगदान रहा. इन्हीं सैनिकों में शामिल थे मंदसौर के दशरथ सिंह गुर्जर, जिन्होंने कारगिल युद्ध में रॉकेट लॉन्चर की जिम्मेदारी संभालते हुए विपक्षी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे. मालवा के वीर सिपाही दशरथ सिंह गुर्जर ने 40 दिन तक चले इस युद्ध में चार दिन तक भूखे- प्यासे रहकर पाकिस्तानी सेना पर लगातार हमला करते रहे. मंदसौर के छोटे से गांव गुर्जर बढ़िया में रहने वाले रिटार्यड सैनिक दशरथ सिंह गुर्जर ने बताया कि, जब वो हाई स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, इस दौरान महू की बटालियन से मंदसौर आए एक कर्नल के लेक्चर से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सैनिक बनने की ठान ली. जिसके बाद कड़ी मेहनत से 1994 में राजपूत रेजीमेंट में सैनिक चुने गए.

करगिल युद्ध में चार दिन भूखे रहकर विपक्षियों के उड़ाए चिथड़े

दशरथ ने निभाई रॉकेट लॉन्चर की जिम्मेदारी

दशरथ ने बाताया कि, 15 साल की सेना की नौकरी में उन्होंने साढे़ 12 साल जम्मू-कश्मीर सीमा पर चुनौतीपूर्ण ड्यूटी की. इस दौरान 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 40 दिन तक चले युद्ध में उनके ग्रुप को सीमा पर लड़ाई के आदेश हुए. 10-10 सैनिकों के ग्रुप में दशरथ सिंह को रॉकेट लॉन्चर की जिम्मेदारी दी गई थी. कड़ाके की सर्दी में भी दिन-रात दशरथ और उनके साथी दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे. निशानेबाजी में माहिर इस सैनिक ने रॉकेट लॉन्चिंग से ही विपक्षी सेना के कई जवानों के चिथड़े उड़ा कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया. शुरुआती दौर से ही दशरथ दुश्मन की सेना के तगड़े हमलों को मात देने के लिए मैदान में डटे रहे. इस दौरान उन्हें चार दिनों तक भूखे प्यासे रहकर लगातार युद्ध लड़ना पड़ा.

ऑपरेशन विजय के पदक से नवाजा गया

ऑपरेशन विजय में जीत के बाद सरकार ने उन्हें सम्मानित किया. दशरथ सिंह को सरकार ने अपने सेवाकाल में विशेष सेना पदक, कारगिल विजय में ऑपरेशन विजय पदक, सर्विस मेडल और जम्मू-कश्मीर सेवा मेडल के अलावा शासकीय सेवा पदक से भी नवाजा गया. उन्होंने देश के युवाओं से सेना में भर्ती होकर सेवा करने की अपील की है.

दशरथ सिंह के पिता मोहन सिंह गुर्जर पेशे से वकील हैं. उन्होंने बताया कि, आजादी के समय से ही उनके परिवार से कोई न कोई देश सेवा के लिए सेना में रहा है. वहीं दशरथ के पिता और पत्नी को उनकी सेवा के दौरान कारगिल विजय के संघर्ष पर गर्व है. उनके पिता ने देशवासियों से अपने बच्चों को सेना में भेजकर सेवा करने की अपील की है.

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बता दें, 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान को धूल चटाकर कारगिल युद्ध जीत लिया था. इसी दिन भारत के वीर सपूतों ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत की भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. भारत माता की रक्षा के लिए 527 वीर जवान अपने प्राण न्यौछावर करते हुए शहीद हो गए थे. इन्हीं शहीदों के बलिदान को याद करते हुए हर साल 26 जुलाई को देश में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.

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