मंदसौर। होली के त्यौहार पर आज पूरा देश रंगों में सराबोर हो गया है. लोग एक दूसरे पर रंग-गुलाल उड़ाकर इस पर्व को बड़े ही उल्लास के साथ मना रहे है. साथ ही भेदभाव भूल कर सभी लोग एक-दूसरे को गले मिलकर बधाइयां दे रहे हैं.
होली का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है और इसको कई तरह के रीति-रिवाजों के साथ मनाने की अनूठी परंपराएं भी हैं. लेकिन, मंदसौर जिले के धुंधडका गांव में होली मनाने की एक अनूठी परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है. इस दिन यहां के लोग नए कपड़े पहन कर बिना रंग खेले होली के सामने बैठकर साल भर के फैसले करते हैं. गांव के बुजुर्गों की मौजूदगी में यहां की पूरी पंचायत आज ही के दिन ग्राम सभा का आयोजन कर साल भर के विकास का खाका तैयार करती है. सैकड़ों सालों से चली आ रही इस परंपरा में कौमी एकता की भी मिसाल है. खास बात तो ये है कि इस परंपरा को अब नई पीढ़ी भी खुशी-खुशी निभा रही हैं.
साढ़े सात हजार की आबादी वाला यह गांव आज ही के दिन रंग-गुलाल से होली खेलने के बजाय गांव के विकास का खाका तैयार करता है. सुबह होते ही ढोल-ढमाकों साथ पूरे गांव के लोग सबसे पहले उस घर पर शोक संवेदना व्यक्त करने जाते हैं, जहां साल भर के दौरान किसी इंसान की मौत हो गई होती है. इसके बाद गांव के तमाम लोग हर बस्ती से इकट्ठे होकर होली दहन वाले स्थान पर पहुंचते हैं और उसके सामने बैठकर ही ग्राम सभा का आयोजन करते हैं. इस दौरान गांव के बुजुर्गो द्वारा साल भर के झगड़े और शिकायतों का फैसला भी यहीं किया जाता है. खास बात तो ये है कि इस मौके पर ग्राम पंचायत के तमाम सदस्य भी बुजुर्गों के फैसलों को मानकर ग्राम सभा के प्रस्ताव को तैयार कर उन्हें पारित करते हैं.
सालों से चली आ रही इस परंपरा में ग्रामीण होली के दिन ही सार्वजनिक विकास के प्रस्ताव तैयार करते हैं. होली के सामने बैठ कर तैयार हुए इस खाके में यदि कोष की कमी नजर आती है, तो सभी ग्रामीण दान के तौर पर चंदा भी इकट्ठा कर लेते हैं. पिछले साल इस इस ग्राम सभा में लोगों ने शमशान घाट के एक शेड के अलावा सार्वजनिक मांगलिक भवन और भोजन शाला के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया था. जिसे पूरा करने के बाद इस गांव के लोगों ने इस बार उन परिसरों में पौधारोपण और उनकी बाउंड्री वाल के अलावा गांव के चौराहों के विकास के लिए 7 लाख रुपये का प्रस्ताव तैयार किया है. ग्राम पंचायत के अंडर में मनाई जाने वाली इस परंपरा में सभी कौम के लोग खुशी-खुशी शामिल होते हैं. सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा में बुजुर्ग नई पीढ़ी को भी इसे आगे बढ़ाने की सीख दे रहे हैं.