मंदसौर । जब हौसला हो बुलंद तो कमजोरी भी ताकत बन जाती है.. इस लाइन को चरितार्थ किया है मंदसौर की दिव्यांग अनामिका जैन ने. महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश करने वाली अनामिका आज अनु दीदी के नाम से मशहूर हैं. 35 वर्षीय अनामिका जैन पैरों से लाचार होने के बावजूद अब तक 350 महिलाओं को रोजगार से जोड़ चुकी हैं और उन्हें स्वावलंबी बना चुकी हैं.
विक्षिप्त महिलाओं को दिया सहारा
अनामिका जैन 13 साल की उम्र से ही समाजसेवा से जुड़ गई थीं. जब स्कूल में उनकी एक सहेली के पास किताबों के लिए पैसे नहीं थे, तो अनामिका ने अपनी गुल्लक तोड़कर उसकी मदद की थी और आज कई बेसहारा युवतियों को सिलाई और ब्यूटी पार्लर के गुर सिखा रही हैं. सड़क हादसे में अपना पैर गंवा चुकी अनु का समाज सेवा करने का जूनून कम नहीं हुआ बल्कि उन्होंने अपने कार्य को तेज गति दी. अनामिका बताती हैं कि महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई की क्लास देने के बाद उन्होंने मानसिक तौर पर विक्षिप्त और लावारिस महिलाओं की दुर्दशा सुधारने का बीड़ा उठा लिया.
पुनर्वास केंद्र को सुविधाओं की दरकार
इन दिनों अनु दीदी शहर के वृद्ध आश्रम स्थित मेंटली डिसेबल्ड और अर्ध विक्षिप्त महिलाओं का पुनर्वास केंद्र चलाती हैं. यहां व्यवस्थाओं की कमी है, लिहाजा अभी पांच मरीजों की भर्ती कर रखा है. इससे पहले कई महिलाओं को उनके घर भेज चुकी हैं. जिला प्रशासन के अधिकारी भी अनामिका की पहल की प्रशंसा करते हैं. मंदसौर कलेक्टर मनोज पुष्प ने उनकी संस्था को भविष्य में बेहतर मदद करने का भी आश्वासन दिया है.
जुनून कभी नहीं हुआ कम
अनामिका के सिर समाजसेवा का जुनून इस कदर है कि वो पिछले 4 सालों से पुनर्वास केंद्र में ही रहती हैं. यही वजह है कि आश्रम की महिलाओं का लगाव इतना ज्यादा है कि उन्हें एक पल के लिए भी नहीं छोड़ना चाहती हैं. ईटीवी भारत अनामिका के जज़्बे को सलाम करता है.