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नर्मदा महोत्सव के अलग-अलग रंग, देखिए एक-से-बढ़कर एक तस्वीरें

31 जनवरी से 2 फरवरी तक अनूपपुर के अमरकंटक में 3 दिवसीय नर्मदा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. वहीं मंडला के नर्मदा घाटों पर भी नर्मदा महोत्सव के अलग-अलग रंग देखने को मिल रहे हैं. महोत्सव की खूबसूरत तस्वीरों को ड्रोन कैमरे से कैप्चर किया गया है. आप भी देखिए एक-से-बढ़कर एक तस्वीरें..

Narmada Festival colors
नर्मदा महोत्सव के रंग
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Published : Feb 1, 2020, 12:02 PM IST

Updated : Feb 1, 2020, 1:11 PM IST

मंडला। अमरकंटक में 3 दिवसीय नर्मदा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. 2 फरवरी को इसका समापन हो जाएगा. नर्मदा महोत्सव के विहंगम नजारे को ड्रोन कैमरे से कैप्चर किया जा रहा है. महोत्सव के अलग-अलग रंगों को समेटे ये तस्वीरें बेहद खास हैं.

नर्मदा महोत्सव में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. 1 फरवरी को नर्मदा जयंती महोत्सव पर प्रसिद्ध गायिका मैथिली ठाकुर और 2 फरवरी को गायक कैलाश खेर प्रस्तुति देंगे. इस दौरान नर्मदा नदी के घाटों पर अनोखे और खूबसूरत रंग देखने को मिल रहा है.

चुनरी चढ़ाने का है खास महत्व

जन्मोत्सव में नए कपड़े पहने या पहनाए जाते हैं, ये प्राचीन और सनातन परंपरा है. इसी परंपरा का निर्वाह मां नर्मदा के भक्त भी करते हैं. इस दिन मां नर्मदा को चुनरी चढ़ाई जाती है. बात मंडला की करें, तो यहां के दर्जन भर घाटों पर श्रद्धालुओं द्वारा पूरी भक्ति के साथ माता की करीब हजारों मीटर लम्बी चूनर चढ़ाई जाती है. ये नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक होती है.

नर्मदा महोत्सव के रंग

दिनभर पूजा-पाठ का चलता है दौर

नर्मदा नदी के किनारे माता के भक्त नर्मदा जयंती पर खास पूजा-अर्चना, जल चढ़ाने के साथ ही यज्ञ-हवन का आयोजन करते हैं. वहीं विशेष आरती का भी आयोजन इस दिन किया जाता है. श्रद्धालुओं के द्वारा इस रोज बड़ी संख्या में नर्मदा दर्शन के साथ ही पवित्र जल में स्नान भी किया जाता है.

दूर-दूर से आते हैं भक्त

मंडला में नर्मदा के दर्शन और पूजन के लिए जिले के साथ ही आसपास के जिलों जैसे बालाघाट और सिवनी से भी लोग आते हैं.

कैसे हुआ मां नर्मदा का जन्म

ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले हलाहल को भगवान शंकर ने गले में धारण किया और नीलकंठ कहलाए. ये विष पीने से शिव को गले मे भयंकर जलन होने लगी और वो व्याकुल होकर ठंडक की प्राप्ति के लिए हिमालय की तरफ चल पड़े. भगवान शिव जब मैकल के जंगल के ऊपर से गुजर रहे थे, तो उन्हें यहां शांति का अनुभव हुआ और वो यहीं उतरकर मैकल की वादियों में शांति के साथ तप करने बैठ गए. इसी समय भगवान शंकर के शरीर से बहे पसीने से बालिका का जन्म हुआ, जो नर्मदा कहलाईं. जिन्हें भगवान शंकर का हाल जानने आए सभी देवी-देवताओं ने आशीर्वाद दिया.

गंगा ने भी नर्मदा को आशीर्वाद दिया कि उनमें तो स्नान करने से सभी पाप धुलते हैं, लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश होगा. साथ ही भगवान भोले नाथ ने कहा कि नर्मदा में मिलने वाले हर एक कंकड़ में उनका अंश होगा.

मंडला। अमरकंटक में 3 दिवसीय नर्मदा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. 2 फरवरी को इसका समापन हो जाएगा. नर्मदा महोत्सव के विहंगम नजारे को ड्रोन कैमरे से कैप्चर किया जा रहा है. महोत्सव के अलग-अलग रंगों को समेटे ये तस्वीरें बेहद खास हैं.

नर्मदा महोत्सव में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. 1 फरवरी को नर्मदा जयंती महोत्सव पर प्रसिद्ध गायिका मैथिली ठाकुर और 2 फरवरी को गायक कैलाश खेर प्रस्तुति देंगे. इस दौरान नर्मदा नदी के घाटों पर अनोखे और खूबसूरत रंग देखने को मिल रहा है.

चुनरी चढ़ाने का है खास महत्व

जन्मोत्सव में नए कपड़े पहने या पहनाए जाते हैं, ये प्राचीन और सनातन परंपरा है. इसी परंपरा का निर्वाह मां नर्मदा के भक्त भी करते हैं. इस दिन मां नर्मदा को चुनरी चढ़ाई जाती है. बात मंडला की करें, तो यहां के दर्जन भर घाटों पर श्रद्धालुओं द्वारा पूरी भक्ति के साथ माता की करीब हजारों मीटर लम्बी चूनर चढ़ाई जाती है. ये नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक होती है.

नर्मदा महोत्सव के रंग

दिनभर पूजा-पाठ का चलता है दौर

नर्मदा नदी के किनारे माता के भक्त नर्मदा जयंती पर खास पूजा-अर्चना, जल चढ़ाने के साथ ही यज्ञ-हवन का आयोजन करते हैं. वहीं विशेष आरती का भी आयोजन इस दिन किया जाता है. श्रद्धालुओं के द्वारा इस रोज बड़ी संख्या में नर्मदा दर्शन के साथ ही पवित्र जल में स्नान भी किया जाता है.

दूर-दूर से आते हैं भक्त

मंडला में नर्मदा के दर्शन और पूजन के लिए जिले के साथ ही आसपास के जिलों जैसे बालाघाट और सिवनी से भी लोग आते हैं.

कैसे हुआ मां नर्मदा का जन्म

ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले हलाहल को भगवान शंकर ने गले में धारण किया और नीलकंठ कहलाए. ये विष पीने से शिव को गले मे भयंकर जलन होने लगी और वो व्याकुल होकर ठंडक की प्राप्ति के लिए हिमालय की तरफ चल पड़े. भगवान शिव जब मैकल के जंगल के ऊपर से गुजर रहे थे, तो उन्हें यहां शांति का अनुभव हुआ और वो यहीं उतरकर मैकल की वादियों में शांति के साथ तप करने बैठ गए. इसी समय भगवान शंकर के शरीर से बहे पसीने से बालिका का जन्म हुआ, जो नर्मदा कहलाईं. जिन्हें भगवान शंकर का हाल जानने आए सभी देवी-देवताओं ने आशीर्वाद दिया.

गंगा ने भी नर्मदा को आशीर्वाद दिया कि उनमें तो स्नान करने से सभी पाप धुलते हैं, लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश होगा. साथ ही भगवान भोले नाथ ने कहा कि नर्मदा में मिलने वाले हर एक कंकड़ में उनका अंश होगा.

Intro:नर्मदा नदी के घाटों का खूबसूरत व्यू ईटीवी भारत लाया है अपने दर्शकों के लिए देखिए नर्मदा जी के मनोरम दृश्य ड्रोन कैमरे से पहली बार जो हम लाए हैं खास आपके लिए

नर्मदा नदी का जन्म--- भगवान शंकर के पसीने हुआ, समुद्र मंथन से निकले हलाहल को भगवान शंकर ने गले में धारण किया और नीलकंठ कहलाए. ये विष पीने से शिव को गले मे भयंकर जलन होने लगी और वो व्याकुल होकर ठंडक की प्राप्ति के लिए हिमालय की तरफ चल पड़े.भगवान शिव जब मैकल के जंगल के ऊपर से गुजर रहे थे, तो उन्हें यहां शांति का आभास हुआ और वो यहीं उतरकर मैकल की वादियों में शांति के साथ तप करने बैठ गए. इसी समय भगवान शंकर के शरीर से बहे पसीने से बालिका का जन्म हुआ जो नर्मदा कहलाईं.जिन्हें भगवान शंकर का हाल जानने आए सभी देवी देवताओं ने आशीर्वाद दिया गँगा ने भी नर्मदा को आशीर्वाद दिया की गँगा में तो स्नान करने से सभी पाप धुलते हैं लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश होगा साथ ही भगवान भोले नाथ ने कहा कि नर्मदा में मिलने वाले हर एक कंकड़ में उनका अंश होगा साथ ही हर एक पत्थर शंकर कहलायेगा,मां नर्मदा के महत्व को हर युग में धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में बताया गया है. साथ ही रामायण की चौपाई में भी नर्मदा के महत्व को बताया है. इसी के चलते हर नर्मदा जयंती के मौके पर घाटों पर पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ लगती है.
Body:चुनरी चढ़ाने का है खास महत्व--जन्मोत्सव में नए कपड़े पहने या पहनाए जाते हैं ये प्राचीन और सनातन परंपरा है और इसी परंपरा का निर्वाह माँ नर्मदा के भक्त भी करते हैं इस दिन माँ नर्मदा को चुनरी चढ़ाई जाती है बात मण्डला की ही करें तो यहाँ के दर्जन भर घाटों में श्रद्धालुओं द्वारा पूरी भक्ति के साथ माता की करीब हज़ार मीटर लम्बी चूनर चढ़ाई जाती है नर्मदा के एक छोर से दूसरे छोर तक होती हैं।

भन्डारे से होता है भोजन का दान--माता नर्मदा की जयंती के अवसर पर भक्तों द्वारा भक्ति भाव के साथ विशाल भंडारों का आयोजन नर्मदा तट पर किया जाता है जिससे भूखों को भरपेट भोजन मिल सके और नर्मदा जी के आशीर्वाद से ये भन्डारे चलते रहें मण्डला में भी अलग अलग जगहों पर भन्डारे का आयोजन नर्मदा नदी के किनारे किये जाते हैं।

दिन भर पूजा पाठ का चलता है दौर--नर्मदा नदी के किनारे माता के भक्त नर्मदा जयंती पर खास पूजा,अर्चना,जल चढ़ाने के साथ ही यज्ञ हवन का आयोजन करते हैं वहीं विशेष आरती का भी आयोजन इस दिन किया जाता है श्रद्धालुओं के द्वारा इस रोज बड़ी संख्या में नर्मदा दर्शन के साथ ही पवित्र जल में स्नान भी किया जाता है।

Conclusion:दूर दूर से आते हैं भक्त--मण्डला में नर्मदा के दर्शन और पूजन के लिए मण्डला जिले के साथ ही आसपास के जिलों जिनमे बालाघाट,सिवनी शामिल हैं यहाँ से भी हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं और पवित्र जीवनदायनी नर्मदा सुख शांति का वरदान लेकर जाते हैं।
Last Updated : Feb 1, 2020, 1:11 PM IST
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