मंडला। आदिवासी बहुल लोकसभा सीट मंडला कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन 1996 में यहां फग्गन सिंह कुलस्ते का जादू ऐसा चला कि यहां तक बीजेपी को कोई हिला भी न सका. इसके बाद तीसरे दल के रूप में ताकत बनकर उभरी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी कभी कांग्रेस का तो कभी बीजेपी का खेल बिगाड़ती रही.
1957 में मंडला सीट पर पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मंगरू बाबू उइके को फतह हासिल हुई. 1957 से शुरू हुआ मंगरू बाबू की जीत का सिलसिला 1962, 1967 से होता हुआ 1971 तक जारी रहा. 1977 में कांग्रेस को भारतीय लोकदल के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा. 1980 में एक बार फिर मंडला में कांग्रेस की वापसी हुई और 1991 तक उसकी जीत का सिलसिला चलता रहा. 1996 में बीजेपी का आदिवासी चेहरा बने फग्गन सिंह कुलस्ते ने कांग्रेस को किनारे कर मंडला सीट पर फूल खिलाया. 1996 के बाद 1998, 1999 और 2004 तक सभी लोकसभा चुनावों में फग्गन सिंह कुलस्ते अविजेय रहे, लेकिन 2009 में पासा पलट गया और कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम ने कुलस्ते को मात दी. 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के दौरान कुलस्ते ने एक बार फिर कांग्रेस के ओमकार सिंह को हराकर बीजेपी का झंडा बुलंद किया. मंडला में हुए सभी लोकसभा चुनावों का लेखा-जोखा देखा जाए तो यहां अब तक 9 बार कांग्रेस के हाथ को जनता का साथ मिला है, जबकि 5 बार बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही.
वहीं अगर इस सीट के हालिया समीकरणों पर नज़र डाली जाए तोमंडला की 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि 2 बीजेपी के पास हैं.
मंडला के पुराने इतिहास और विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस बार के आम चुनाव में मंडला सीट पर कांग्रेस का पलड़ा बीजेपी के मुकाबले भारी दिख रहा है, लेकिन जानकार मानते हैं कि आदिवासियों के बीच लगातार पकड़ बना रही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, बीजेपी-कांग्रेस में से जिसके वोट काटती है, उसी पार्टी को वोट प्रतिशत में खासा घाटा होगा.
कभी कांग्रेस का एकमुश्त वोटर रहा आदिवासी वोट बैंक अब कई धाराओं में बंट चुका है. ऐसे में आदिवासी आरक्षित इस सीट का गणित मोदी लहर, विकास का मुद्दा, सत्ता विरोधी लहर जैसे फैक्टर्स की बजाय आदिवासियों के रुझान पर ही निर्भर करेगा.