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कोरोनाकाल में ऑनलाइन पढ़ाई की हकीकत: ना सोशल मीडिया ग्रुप, ना किताबें, ऐसे में बच्चे कैसे करें पढ़ाई ? - Hamara Ghar Hamara Vidyalaya

पूरे देश में कोरोना महामारी के चलते स्कूल कॉलेज बंद हैं, ऐसे में छात्रों को ऑनलाइन क्लासेस के जरिए पढ़ाया जा रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों और पालकों के पास ना ही एंड्रॉयड मोबाइल है और ना ही केबल नेटवर्क, ऐसे में बच्चें पढ़े तो कैसे पढ़े. जानें क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े.

Online education
ऑनलाइन पढ़ाई
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Published : Aug 6, 2020, 2:54 PM IST

मंडला। पूरे देश में कोरोना ने अपना कहर फैला रखा है, जिसके कारण इस साल स्कूल नहीं खुले है और बच्चों को ऑनलाइन मोबाइल, टीवी या फिर रेडियो के जरिए पढ़ाया जा रहा है. ये पढ़ाई का तरीका ग्रामीण क्षेत्रों में कितनी कारगर साबित हो रही है, ये ग्रामीण क्षेत्र के हालातों से समझा जा सकता है. पूरे मंडला जिले में माध्यमिक स्कूल के महज 31 प्रतिशत बच्चे ही वैकल्पिक शिक्षा से जुड़ पाए हैं, जबकि हाई और हायर सेकेंडरी स्कूल के 67 प्रतिशत बच्चों तक पाठ्य सामग्री पहुंच पा रही है. जिसकी मुख्य वजह है, बच्चों के या उनके पालकों के पास एंड्रॉयड मोबाइल फोन का ना होना. शिक्षा विभाग के अधिकारी खुद मानते है कि, बिना स्कूल खोले बच्चों को पढ़ाना बड़ा चैलेंज है.

Books to be distributed to students
छात्रों को बांटी जाने वाली किताबें

इन दिनों स्कूल के बच्चों को मोबाइल, टीवी और रेडियों से पढ़ाया जा रहा है, ये पढ़ाई ग्रामीण क्षेत्रों में कितना कारगर साबित हो रही है, इसकी तस्दीक कर रहे हैं जिला शिक्षा विभाग के द्वारा दिए गए आंकड़े, माध्यमिक स्तर पर सिर्फ 31 प्रतिशत बच्चे, वहीं हाई और हायर सेकेंडरी स्तर पर 67 प्रतिशत बच्चे ही पढ़ाई से जुड़ पा रहे हैं. साथ ही हजारों बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास किताबें तक नहीं पहुंच पाई हैं.

Rural students studying
पढ़ाई करते ग्रामीण छात्र

क्या कहते हैं आंकड़े ?

प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के कितने बच्चों को मिला लाभ

कक्षा पहली से आठवीं से तक मंडला जिले में कुल 10,0399 बच्चे रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से सिर्फ 31,957 बच्चे ही सोशल मीडिया ग्रुप से जुड़ पाए हैं. जिसका प्रतिशत सिर्फ 31.83 आता है. जबकि ऐसे बच्चे जिनके पालकों या उनके पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं है, उनकी संख्या 68,442 है. ऐसे में समझा जा सकता है कि, करीब 69 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई से दूर हैं. वहीं अगर आठवीं पास बच्चों की बात की जाए तो, इसकी संख्या 15,979 है. जिसमें से महज 20.83 प्रतिशत बच्चे, यानी सिर्फ 3329 विद्यार्थी ही सोशल मीडिया ग्रुप से जुड़ पाए हैं. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, मोबाइल, टीवी और रेडियो से बच्चों की पढ़ाई का माध्यम किसी हाल में व्यावहारिक नहीं है.

Assistant Project Coordinator Taking Information Online
ऑनलाइन जानकारी लेते सहायक परियोजना समन्वयक

हाई और हायर सेकेंडरी के आंकड़े नहीं संतोषजनक

9वीं से 12वीं कक्षा की बात की जाए तो, जिले में कुल 39,148 बच्चे रजिस्टर्ड हैं. जिनमें से सिर्फ 14,574 विद्यार्थियों या उनके पालकों के नम्बर सोशल मीडिया ग्रुप में जुड़ पाए हैं और ये पढ़ाई से संबंधित नोट्स प्राप्त कर रहे हैं. वहीं शिक्षा विभाग का कहना है कि, बाकी के 3326 बच्चे टीवी और 7 विकासखंड के 8645 केबल नेटवर्क के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं, जो वास्तविकता में कम हैं, लेकिन आंकड़ों की कहानी ज्यादा लगती है. क्योंकि जिन बच्चों के घर पर टीवी है, वे भी दावे से नहीं कहा जा सकता कि, पढ़ाई कर रहे होंगे.

Teachers count books
किताबों को गिनती करते शिक्षक

कितनी किताबें उपलब्ध ?

विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए सरकार किताबें भी दे रही है, जिसमें वे घर बैठे पढ़ाई कर सकें. साथ ही स्कूल के छात्र 'हमारा घर हमारा विद्यालय' के जरिए शिक्षकों के मार्ग दर्शन में पढ़ सकें. जिसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर 98 प्रतिशत बच्चों तक किताबें पहुंचा दी गई हैं, लेकिन सवाल ये है कि, अगर खुद-ब-खुद किताबों से बच्चे पढ़ लेते, तो ना स्कूल की जरूरत होती और ना ही शिक्षकों की. वहीं दूसरी ओर अगर कक्षा 9वीं से 12वीं तक की बात की जाए, तो जिले में 4 लाख 73 हजार 746 किताबों की मांग थी. जिसमें से अब तक 2 लाख 58 हजार 276 किताबें मिली हैं, जबकि 2 लाख 15 हजार 470 किताबों की अब भी कमी है, जो ये बताती है कि, बच्चों की जो पढ़ाई चल रही है, वह काम की कम और नाम की ज्यादा है.

ऑनलाइन पढ़ाई बनी चुनौती

क्या कहते हैं जिम्मेदार ?

पहली से आठवीं तक के डीपीसी हीरेन्द्र वर्मा का कहना है कि, ग्रामीण क्षेत्रों में बिना स्कूल के पढ़ाई बहुत बड़ा चैलेंज है, क्योंकि बच्चों और उनके पालकों के पास एंड्रॉइड फोन नहीं है और जिनके पास है भी, तो नेटवर्क की समस्या के चलते वे पाठ्य सामग्री नहीं देख पाते हैं. साथ ही टीवी और रेडियो सेट से पढ़ाई करवा पाना भी ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल है. ऐसे में शिक्षक बच्चों के घरों तक जाते हैं और उन्हें पढ़ाई कराने की कोशिश किया जाता है, लेकिन ये भी बहुत मुश्किल भरा कार्य है.

दूसरी तरफ कक्षा 9वीं से 12वीं तक के सहायक परियोजना समन्वयक मुकेश पांडे का कहना है कि, बच्चों को घर जाकर पढ़ाने के निर्देश नहीं हैं, ऐसे में पूरी कोशिश की जा रही है कि, डीजी लैब और दूरदर्शन या केबल नेटवर्क के जरिए बच्चों को पढ़ाई से जोड़ा जाए. जिसमें सफलता भी मिल रही है, लेकिन जिन बच्चों के पास साधन नहीं है उन बच्चों को पढ़ाना मुश्किल ही दिकाई दे रहा है.

ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को पढ़ाना मुश्किल कार्य

कोरोना के चलते स्कूल नहीं खुल रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग ने बच्चों की पढ़ाई का पूरा खाका तैयार कर लिया है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को पढ़ाना कितना मुश्किल भरा है, इसकी बानगी पूरे मंडला जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जा सकती है, जहां बच्चों और उसके पालकों के पास ना तो मोबाइल है, ना टीवी और ना ही केबल नेटवर्क.

मंडला। पूरे देश में कोरोना ने अपना कहर फैला रखा है, जिसके कारण इस साल स्कूल नहीं खुले है और बच्चों को ऑनलाइन मोबाइल, टीवी या फिर रेडियो के जरिए पढ़ाया जा रहा है. ये पढ़ाई का तरीका ग्रामीण क्षेत्रों में कितनी कारगर साबित हो रही है, ये ग्रामीण क्षेत्र के हालातों से समझा जा सकता है. पूरे मंडला जिले में माध्यमिक स्कूल के महज 31 प्रतिशत बच्चे ही वैकल्पिक शिक्षा से जुड़ पाए हैं, जबकि हाई और हायर सेकेंडरी स्कूल के 67 प्रतिशत बच्चों तक पाठ्य सामग्री पहुंच पा रही है. जिसकी मुख्य वजह है, बच्चों के या उनके पालकों के पास एंड्रॉयड मोबाइल फोन का ना होना. शिक्षा विभाग के अधिकारी खुद मानते है कि, बिना स्कूल खोले बच्चों को पढ़ाना बड़ा चैलेंज है.

Books to be distributed to students
छात्रों को बांटी जाने वाली किताबें

इन दिनों स्कूल के बच्चों को मोबाइल, टीवी और रेडियों से पढ़ाया जा रहा है, ये पढ़ाई ग्रामीण क्षेत्रों में कितना कारगर साबित हो रही है, इसकी तस्दीक कर रहे हैं जिला शिक्षा विभाग के द्वारा दिए गए आंकड़े, माध्यमिक स्तर पर सिर्फ 31 प्रतिशत बच्चे, वहीं हाई और हायर सेकेंडरी स्तर पर 67 प्रतिशत बच्चे ही पढ़ाई से जुड़ पा रहे हैं. साथ ही हजारों बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास किताबें तक नहीं पहुंच पाई हैं.

Rural students studying
पढ़ाई करते ग्रामीण छात्र

क्या कहते हैं आंकड़े ?

प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के कितने बच्चों को मिला लाभ

कक्षा पहली से आठवीं से तक मंडला जिले में कुल 10,0399 बच्चे रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से सिर्फ 31,957 बच्चे ही सोशल मीडिया ग्रुप से जुड़ पाए हैं. जिसका प्रतिशत सिर्फ 31.83 आता है. जबकि ऐसे बच्चे जिनके पालकों या उनके पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं है, उनकी संख्या 68,442 है. ऐसे में समझा जा सकता है कि, करीब 69 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई से दूर हैं. वहीं अगर आठवीं पास बच्चों की बात की जाए तो, इसकी संख्या 15,979 है. जिसमें से महज 20.83 प्रतिशत बच्चे, यानी सिर्फ 3329 विद्यार्थी ही सोशल मीडिया ग्रुप से जुड़ पाए हैं. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि, मोबाइल, टीवी और रेडियो से बच्चों की पढ़ाई का माध्यम किसी हाल में व्यावहारिक नहीं है.

Assistant Project Coordinator Taking Information Online
ऑनलाइन जानकारी लेते सहायक परियोजना समन्वयक

हाई और हायर सेकेंडरी के आंकड़े नहीं संतोषजनक

9वीं से 12वीं कक्षा की बात की जाए तो, जिले में कुल 39,148 बच्चे रजिस्टर्ड हैं. जिनमें से सिर्फ 14,574 विद्यार्थियों या उनके पालकों के नम्बर सोशल मीडिया ग्रुप में जुड़ पाए हैं और ये पढ़ाई से संबंधित नोट्स प्राप्त कर रहे हैं. वहीं शिक्षा विभाग का कहना है कि, बाकी के 3326 बच्चे टीवी और 7 विकासखंड के 8645 केबल नेटवर्क के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं, जो वास्तविकता में कम हैं, लेकिन आंकड़ों की कहानी ज्यादा लगती है. क्योंकि जिन बच्चों के घर पर टीवी है, वे भी दावे से नहीं कहा जा सकता कि, पढ़ाई कर रहे होंगे.

Teachers count books
किताबों को गिनती करते शिक्षक

कितनी किताबें उपलब्ध ?

विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए सरकार किताबें भी दे रही है, जिसमें वे घर बैठे पढ़ाई कर सकें. साथ ही स्कूल के छात्र 'हमारा घर हमारा विद्यालय' के जरिए शिक्षकों के मार्ग दर्शन में पढ़ सकें. जिसमें प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर 98 प्रतिशत बच्चों तक किताबें पहुंचा दी गई हैं, लेकिन सवाल ये है कि, अगर खुद-ब-खुद किताबों से बच्चे पढ़ लेते, तो ना स्कूल की जरूरत होती और ना ही शिक्षकों की. वहीं दूसरी ओर अगर कक्षा 9वीं से 12वीं तक की बात की जाए, तो जिले में 4 लाख 73 हजार 746 किताबों की मांग थी. जिसमें से अब तक 2 लाख 58 हजार 276 किताबें मिली हैं, जबकि 2 लाख 15 हजार 470 किताबों की अब भी कमी है, जो ये बताती है कि, बच्चों की जो पढ़ाई चल रही है, वह काम की कम और नाम की ज्यादा है.

ऑनलाइन पढ़ाई बनी चुनौती

क्या कहते हैं जिम्मेदार ?

पहली से आठवीं तक के डीपीसी हीरेन्द्र वर्मा का कहना है कि, ग्रामीण क्षेत्रों में बिना स्कूल के पढ़ाई बहुत बड़ा चैलेंज है, क्योंकि बच्चों और उनके पालकों के पास एंड्रॉइड फोन नहीं है और जिनके पास है भी, तो नेटवर्क की समस्या के चलते वे पाठ्य सामग्री नहीं देख पाते हैं. साथ ही टीवी और रेडियो सेट से पढ़ाई करवा पाना भी ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल है. ऐसे में शिक्षक बच्चों के घरों तक जाते हैं और उन्हें पढ़ाई कराने की कोशिश किया जाता है, लेकिन ये भी बहुत मुश्किल भरा कार्य है.

दूसरी तरफ कक्षा 9वीं से 12वीं तक के सहायक परियोजना समन्वयक मुकेश पांडे का कहना है कि, बच्चों को घर जाकर पढ़ाने के निर्देश नहीं हैं, ऐसे में पूरी कोशिश की जा रही है कि, डीजी लैब और दूरदर्शन या केबल नेटवर्क के जरिए बच्चों को पढ़ाई से जोड़ा जाए. जिसमें सफलता भी मिल रही है, लेकिन जिन बच्चों के पास साधन नहीं है उन बच्चों को पढ़ाना मुश्किल ही दिकाई दे रहा है.

ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को पढ़ाना मुश्किल कार्य

कोरोना के चलते स्कूल नहीं खुल रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग ने बच्चों की पढ़ाई का पूरा खाका तैयार कर लिया है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को पढ़ाना कितना मुश्किल भरा है, इसकी बानगी पूरे मंडला जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जा सकती है, जहां बच्चों और उसके पालकों के पास ना तो मोबाइल है, ना टीवी और ना ही केबल नेटवर्क.

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