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हवाईजहाज से घूम चुकी कलाकर को नहीं मिल रहा काम, अब काम के इंतजार में हुनर - no work for people making craft

हाथों में छींद की पत्तियां और सुंदर-सुंदर सजावती सामान बनाने वाली मंडला की महिलाएं रोजगार के लिए इन दिनों गुहार लगा रही हैं. उनका कहना है कि शील्ड, प्रमाण पत्र से तो कई पेटियां भरी रखी हैं, लेकिन रोजगार नहीं है.

-craft-
काम के इंतजार में हुनर
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Published : Jun 28, 2020, 2:28 PM IST

मंडला। हाथों में कला का हुनर हो तो गांव-शहर मायने नहीं रखता और हुनर हो तो सफलता का परचम दूर नहीं होता. लेकिन यही कला पहचान दिलाने के बाद जब दाने-दाने के लिए मोहताज करने लगो तो शील्ड, प्रमाण पत्र और इनामों से तो पेटी भरी पड़ी है, लेकिन इनसे पेट नहीं भरता साहब, हमें तो सिर्फ रोजगार चाहिए नहीं तो हमारा परिवार बर्बाद हो जाएगा. ये कहना है उस महिला कलाकार का जिसने अपनी कलाकारी के झंडे विदेशी धरती तक गाड़े हैं, लेकिन अब बेरोजगारी के आलम से गुजर रही है.

काम के इंतजार में हुनर
ट्रेन से हुआ सफर शुरू

जिले पिंडरई जनपद में रहने वाली कांता बाई का पूरा परिवार पुराने समय से छींद की पत्तियों से झाड़ू बनाने का काम करता आ रहा है. ये झाड़ू और उसके अलावा कई सजावटी सामान इतने सुंदर होते हैं कि हाथों में लेते ही उसे शख्स रखना बिल्कुल न पसंद करें. कांता ने ये सामान बेचने का सफर छोटी ट्रेन के यात्रियों के साथ ही लोकल बाजारों से शुरु किया. जहां बेचने के बाद परिवार का गुजर-बसर हो जाता था. इस काम में कांता के कला के प्रयोग को जो देखता उनके सामानों को हाथों हाथ लेता.

बन गया समूह

कला छुपकर नहीं रह सकती ऐसे में जब कांता के कला की डिमांड बढ़ी को गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने कांता से मिलकर एक महिला समूह बना लिया और कर काम करने की बात कही. जिसके एक शख्स के कारवां से ये एक समूह का कारवां बन गया और यहीं से शुरू हुआ आपस मे सीखने-सिखाने और नए प्रयोगों का वो सिलसिला जो आज 118 प्रकार के सामान उस छींद की पत्तियों से बनाता है.

ये भी पढ़ें- गुम रही माटीकला को नया आयाम देने में जुटीं सिवनी की कविता-बबिता, कलाकृति देख अचंभित हो जाते हैं लोग


विदेश जाने का मिला मौका

छोटे से गांव की बिना पढ़ी-लिखी महिला कांता ने अपनी कला की ऐसी छाप छोड़ी है कि उनका बनाया हुआ घर की सजावट का सामान, कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की सफाई से लेकर बहुत तरह से उपयोग होने वाले सामान दुबई तक पहुंचे हैं. भारत में लगने वाले ऐसा कोई भी क्राफ्ट मेला नहीं होगा जहां कांता बाई न पहुंचे या उन्हें न बुलाया जाए. देशभर के तमाम बड़े मेलों में शिरकत करने वाली कांता दुबई के शारजाह मेले में भी अपनी कलाकारी का प्रदर्शन कर विदेशी धरती पर झंडे गाढ़ चुकी हैं.

शील्ड से नहीं भरता पेट

ये उस कलाकार की मजबूरी है जो कहती है कि प्रमाणपत्रों, शील्ड और इनामों से तो पेटी भरी पड़ी हुई है लेकिन जनवरी से उनके उत्पाद इसलिए जाम पड़े हैं क्योंकि कहीं मेला ही नहीं लगा. वहीं स्थानीय स्तर पर इनके खरीदने वाले भी नहीं, न ही उतना दाम मिल पाता है. ऐसे में उनके बनाए हुए उत्पाद घर पर रखे-रखे खराब हो रहे हैं. वहीं लॉकडाउन के चलते वे न कच्चा मैटीरियल ला पा रहीं न ही और सामान बनाने की हिम्मत जुटा पा रही हैं. हालात ये हैं कि पुरानी जमा पूंजी सब खत्म हो गई है और आगे का खर्च चला पाना मुश्किल हो रहा है क्योंकि पूरा परिवार यही काम करता है.

ये भी पढ़ें- योग के प्रति बच्चें हों आकर्षित, इसलिए एथलीट सीखा रही योगा विद डांस

हवाई जहाज में घूमने वाली कैसे करे ईंट-गारे का काम

कांता बाई बताती हैं कि घर-परिवार का खर्च चलाने के लिए वे दूसरा काम तो करना चाहती हैं लेकिन हवाई जहाज से विदेश तक घूम आई हैं, इसलिए कोई उन्हें काम नहीं देता है, कहता है कि हवाईजहाज से घूमकर आई हो ये काम कैसे करोगी. ऐसे में बस अब सरकार से ही मदद की उम्मीद है.

देश-विदेश में परचम फैलाने की हिम्मत देने वाली इस कला ने आज कांता, उसके परिवार और समूह की महिलाओं के लिए परेशानी खड़ी दी है. इतना नाम कमाने के बाद न तो उन्हें कहीं काम मिल रहा है और न हीं कमाई का कोई और जरिया दिख रहा है. ऐसे में इनके पास अब सरकार से मदद के अलावा और कोई चारा नहीं दिख रहा है.

मंडला। हाथों में कला का हुनर हो तो गांव-शहर मायने नहीं रखता और हुनर हो तो सफलता का परचम दूर नहीं होता. लेकिन यही कला पहचान दिलाने के बाद जब दाने-दाने के लिए मोहताज करने लगो तो शील्ड, प्रमाण पत्र और इनामों से तो पेटी भरी पड़ी है, लेकिन इनसे पेट नहीं भरता साहब, हमें तो सिर्फ रोजगार चाहिए नहीं तो हमारा परिवार बर्बाद हो जाएगा. ये कहना है उस महिला कलाकार का जिसने अपनी कलाकारी के झंडे विदेशी धरती तक गाड़े हैं, लेकिन अब बेरोजगारी के आलम से गुजर रही है.

काम के इंतजार में हुनर
ट्रेन से हुआ सफर शुरू

जिले पिंडरई जनपद में रहने वाली कांता बाई का पूरा परिवार पुराने समय से छींद की पत्तियों से झाड़ू बनाने का काम करता आ रहा है. ये झाड़ू और उसके अलावा कई सजावटी सामान इतने सुंदर होते हैं कि हाथों में लेते ही उसे शख्स रखना बिल्कुल न पसंद करें. कांता ने ये सामान बेचने का सफर छोटी ट्रेन के यात्रियों के साथ ही लोकल बाजारों से शुरु किया. जहां बेचने के बाद परिवार का गुजर-बसर हो जाता था. इस काम में कांता के कला के प्रयोग को जो देखता उनके सामानों को हाथों हाथ लेता.

बन गया समूह

कला छुपकर नहीं रह सकती ऐसे में जब कांता के कला की डिमांड बढ़ी को गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने कांता से मिलकर एक महिला समूह बना लिया और कर काम करने की बात कही. जिसके एक शख्स के कारवां से ये एक समूह का कारवां बन गया और यहीं से शुरू हुआ आपस मे सीखने-सिखाने और नए प्रयोगों का वो सिलसिला जो आज 118 प्रकार के सामान उस छींद की पत्तियों से बनाता है.

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विदेश जाने का मिला मौका

छोटे से गांव की बिना पढ़ी-लिखी महिला कांता ने अपनी कला की ऐसी छाप छोड़ी है कि उनका बनाया हुआ घर की सजावट का सामान, कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की सफाई से लेकर बहुत तरह से उपयोग होने वाले सामान दुबई तक पहुंचे हैं. भारत में लगने वाले ऐसा कोई भी क्राफ्ट मेला नहीं होगा जहां कांता बाई न पहुंचे या उन्हें न बुलाया जाए. देशभर के तमाम बड़े मेलों में शिरकत करने वाली कांता दुबई के शारजाह मेले में भी अपनी कलाकारी का प्रदर्शन कर विदेशी धरती पर झंडे गाढ़ चुकी हैं.

शील्ड से नहीं भरता पेट

ये उस कलाकार की मजबूरी है जो कहती है कि प्रमाणपत्रों, शील्ड और इनामों से तो पेटी भरी पड़ी हुई है लेकिन जनवरी से उनके उत्पाद इसलिए जाम पड़े हैं क्योंकि कहीं मेला ही नहीं लगा. वहीं स्थानीय स्तर पर इनके खरीदने वाले भी नहीं, न ही उतना दाम मिल पाता है. ऐसे में उनके बनाए हुए उत्पाद घर पर रखे-रखे खराब हो रहे हैं. वहीं लॉकडाउन के चलते वे न कच्चा मैटीरियल ला पा रहीं न ही और सामान बनाने की हिम्मत जुटा पा रही हैं. हालात ये हैं कि पुरानी जमा पूंजी सब खत्म हो गई है और आगे का खर्च चला पाना मुश्किल हो रहा है क्योंकि पूरा परिवार यही काम करता है.

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हवाई जहाज में घूमने वाली कैसे करे ईंट-गारे का काम

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देश-विदेश में परचम फैलाने की हिम्मत देने वाली इस कला ने आज कांता, उसके परिवार और समूह की महिलाओं के लिए परेशानी खड़ी दी है. इतना नाम कमाने के बाद न तो उन्हें कहीं काम मिल रहा है और न हीं कमाई का कोई और जरिया दिख रहा है. ऐसे में इनके पास अब सरकार से मदद के अलावा और कोई चारा नहीं दिख रहा है.

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