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सियासी दलों से नाराज 1957 से अब तक के चुनावों के गवाह, कहा- अबकी बार 'NOTA' वार

बुजुर्ग मतदाता दिनेश तिवारी मंडला लोकसभा के इतिहास और बदलते हुए समीकरणों के गवाह हैं. उनका कहना है कि मंडला विकास के मामले में काफी पीछे छूट गया है.

दिनेश तिवारी, बुजुर्ग मतदाता
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Published : Apr 21, 2019, 2:12 PM IST

मंडला। 'जिले का जितना विकास होना था, उतना हुआ नहीं है.' ये उस मतदाता का बयान है, जिसने 1957 से हुए अब तक विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. बुजुर्ग मतदाता दिनेश तिवारी मंडला लोकसभा के इतिहास और बदलते हुए समीकरणों के गवाह हैं. उनका कहना है कि मंडला विकास के मामले में काफी पीछे छूट गया है.

'मंडला, विकास के मामले में काफी पिछड़ा है'

बुजर्ग मतदाता दिनेश तिवारी का कहना है कि क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या है. व्यापार को बढ़ावा देने के लिये भी कोई कदम नहीं उठाए गए. 85 साल के दिनेश तिवारी कहते हैं कि एशिया का सबसे बड़ा नैरोगेज जंक्शन होने के बाद भी नैनपुर की बजाय नागपुर को डिवीजन ऑफिस बनाया गया, यही वजह है कि मंडला जिला पिछड़ा है. जिससे क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है. दिनेश तिवारी को किसी भी दल और प्रत्याशी से उम्मीद नहीं बची है. लिहाजा उन्होंने इस बार नोटा दबाने की बात कही है.

उनका कहना है कि वह प्रत्याशी और पार्टियों से नाराज हैं. शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए दिनेश तिवारी ने पहले चुनाव से लेकर अपनी रिटायरमेंट के पहले तक बहुत से मतदान देखे और सम्पन्न भी कराए हैं. उनका आरोप है कि उन्होंने मंडला को हमेशा उपेक्षित होते देखा है. इसके लिये दिनेश तिवारी सभी जनप्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों को जिम्मेदार मानते हैं.

उनका कहना है कि यहां के जनप्रतिनिधियों ने प्राकृतिक संपदा से भरपूर इस आदिवासी अंचल को कुछ खास दिया ही नहीं. जबलपुर से अलग होकर मंडला अस्तित्व में आया. यहां पहली बार 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए. जिसमें कांग्रेस के मंगरू बाबू उइके ने जीत हासिल की. इसके पहले मंडला और जबलपुर-दक्षिण मिलाकर एक लोकसभा सीट हुआ करती थी, जिसमें 1952 में निर्दलीय और निर्विरोध मंगरू बाबू उइके ही सांसद चुने गए थे. उसके बाद बाद लगातार 1977 तक कांग्रेस का कब्जा रहा. इस बार यहां से बीजेपी ने वर्तमान सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और कांग्रेस ने कमल सिंह मरावी पर दांव लगाया है.

मंडला। 'जिले का जितना विकास होना था, उतना हुआ नहीं है.' ये उस मतदाता का बयान है, जिसने 1957 से हुए अब तक विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग किया है. बुजुर्ग मतदाता दिनेश तिवारी मंडला लोकसभा के इतिहास और बदलते हुए समीकरणों के गवाह हैं. उनका कहना है कि मंडला विकास के मामले में काफी पीछे छूट गया है.

'मंडला, विकास के मामले में काफी पिछड़ा है'

बुजर्ग मतदाता दिनेश तिवारी का कहना है कि क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या है. व्यापार को बढ़ावा देने के लिये भी कोई कदम नहीं उठाए गए. 85 साल के दिनेश तिवारी कहते हैं कि एशिया का सबसे बड़ा नैरोगेज जंक्शन होने के बाद भी नैनपुर की बजाय नागपुर को डिवीजन ऑफिस बनाया गया, यही वजह है कि मंडला जिला पिछड़ा है. जिससे क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है. दिनेश तिवारी को किसी भी दल और प्रत्याशी से उम्मीद नहीं बची है. लिहाजा उन्होंने इस बार नोटा दबाने की बात कही है.

उनका कहना है कि वह प्रत्याशी और पार्टियों से नाराज हैं. शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए दिनेश तिवारी ने पहले चुनाव से लेकर अपनी रिटायरमेंट के पहले तक बहुत से मतदान देखे और सम्पन्न भी कराए हैं. उनका आरोप है कि उन्होंने मंडला को हमेशा उपेक्षित होते देखा है. इसके लिये दिनेश तिवारी सभी जनप्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों को जिम्मेदार मानते हैं.

उनका कहना है कि यहां के जनप्रतिनिधियों ने प्राकृतिक संपदा से भरपूर इस आदिवासी अंचल को कुछ खास दिया ही नहीं. जबलपुर से अलग होकर मंडला अस्तित्व में आया. यहां पहली बार 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए. जिसमें कांग्रेस के मंगरू बाबू उइके ने जीत हासिल की. इसके पहले मंडला और जबलपुर-दक्षिण मिलाकर एक लोकसभा सीट हुआ करती थी, जिसमें 1952 में निर्दलीय और निर्विरोध मंगरू बाबू उइके ही सांसद चुने गए थे. उसके बाद बाद लगातार 1977 तक कांग्रेस का कब्जा रहा. इस बार यहां से बीजेपी ने वर्तमान सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और कांग्रेस ने कमल सिंह मरावी पर दांव लगाया है.

Intro:जबलपुर से अलग होकर मंडला लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया और यहां पहली बार 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए,जिसमे कांग्रेस पार्टी के मंगरू बाबू उइके ने यहां से जीत हासिल की इसके पहले मंडला और जबलपुर दक्षिण मिलाकर एक लोकसभा सीट हुआ करती थी जिसमें 1952 में निर्दलीय और निर्विरोध मंगरू बाबू उइके ही सांसद चुने गए थे जिसके बाद लगातार मंडला में 1977 तक कांग्रेस का कब्जा रहा,लोकसभा का पहला चुनाव हो या 2019 का चुनाव एक ऐसे शख्स जिन्होंने अब तक के सारे चुनाव ना केवल देखे हैं बल्कि बहुत से आम चुनाव संपन्न भी कराए हैं और वे गवाह हैं मंडला लोकसभा क्षेत्र के इतिहास और बदलते हुए समीकरण के


Body:मंडला में रहने वाले दिनेश प्रसाद तिवारी जो आज लगभग 85 साल के हो चले हैं उनका कहना है कि मंडला का जिस तरह से विकास होना था उस तरह से विकास नहीं हो सका क्योंकि यहां के नेताओं में इतिहास से लेकर अब तक इच्छा शक्ति का आभाव देखा गया है बात करें मंडला लोक सभा क्षेत्र के विकास की तो दिनेश तिवारी बताते हैं कि एशिया का सबसे बड़ा नैरो गेज का जंकशन होने के बाद भी नैनपुर की बजाय नागपुर को डिवीजन ऑफ़िस बनाने के बाद मण्डला जिंला बहुत पिछड़ गया जिसके चलते बेरोजगारी की समस्या और व्यापार को बढ़वा नहीं मिल सका


Conclusion:लोकसभा चुनावों के वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो ये बुजुर्ब मतदाता सभी प्रत्याशियों और पार्टियों से खाशे नाराज हैं और वे नोटा का बटन दबाने की बात कर रहे हैं,शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुए तिवारी ने पहले चुनाव से लेकर अपनी रिटायरमेंट के पहले तक बहुत से मतदान देखे भी और सम्पन्न भी कराए लेकिन मण्डला को हमेसा ही उपेक्षित देखने के साथ ही उनका आरोप सभी जन प्रतिनिधियों पर है जिन्होंने प्राकृतिक संपदा से भरपूर इस आदिवासी अंचल को कुछ खास दिया ही नहीं

बाईट-;दिनेश प्रसाद तिवारी,बुजुर्ग मतदाता
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