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राम मंदिर आंदोलन में शामिल हुए शख्स से मिलिए, अन्ना महाराज की जुबानी उस आंदोलन की कहानी - मंडला सुनील दुबे उर्फ्यू अन्ना महराज

अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है, मंदिर निर्माण के भूमि पूजन का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इसी को लेकर मंडला के सुनील दुबे यानी अन्ना महाराज ने खुशी जाहिर की. अन्ना महाराज वो शख्स हैं जिन्होंने राम मंदिर निर्माण आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी.

Anna Maharaj
अन्ना महाराज
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Published : Jul 31, 2020, 12:00 PM IST

मंडला। 5 अगस्त को अयोध्या में बनने वाले भव्य राम मंदिर की नींव रखी जाएगी. इसके लिए तैयारियां जोरों पर हैं. मंदिर निर्माण भूमि पूजन का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के पीछे कई लोगों ने आंदोलन किया. जिसमें मंडला के सुनील दुबे भी शामिल थे, जिन्हें लोग अन्ना महाराज के नाम से जानते हैं.

अन्ना महाराज ने बताई आंदोलन की कहानी

देश की राजनीति करवट ले रही थी और राजनीति में कब राम मंदिर जुड़ता गया पता ही नहीं चला. धरना, प्रदर्शन और बहुत से आंदोलन हुए, लेकिन यह विवाद सुलझा सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सुनाए गए निर्णय के बाद, लेकिन राम मंदिर निर्माण का वो आंदोलन आज भी सबके जहन में है. जब यहां का विवादित ढांचा 6 दिसम्बर 1992 को गिराया गया था. उनमें मंडला के भी एक कार सेवक शामिल थे सुनील दुबे. जिन्हें मंडला में अन्ना महाराज के नाम से जाना जाता.

उस वक्त पूरे देश में था राम का माहौल

अन्ना महाराज बताते हैं कि सारे देश में राम की लहर थी और लोग अपने मन और श्रद्धा से ही राम मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़ रहे थे. जिसकी लहर गांवों तक जा पहुंची थी. अन्ना महाराज भी 1992 में दिसम्बर की पहली तारीख को अयोध्या जा पहुंचे.

अन्ना महाराज की जुबानी राम आंदोलन की कहानी

जिनके साथ मण्डला के दो अन्य लोग और थे. सारी रात ठंड में कुकड़ते हुए कुर्सी पर बैठ कर कटी. जिसके बाद सुबह सरयू नदी में स्नान के बाद. वहीं किसी संत से चर्चा के बाद आश्रम में जगह मिली और ऐसे ही 5 दिन बीत गए.

जिसके बाद अयोध्या में कार सेवकों का हुजूम जुटने लगा. ऐसे ही 6 दिसंबर को गहमागहमी के माहौल के बीच रस्से के सहारे कारसेवक ढांचे पर चढ़ गए और उसे गिराना चालू कर दिया और इसके बाद जो माहौल बना वह बहुत ही ज्यादा तनाव का था.

जिससे पूरा देश प्रभावित हुआ और कर्फ्यू धारा 144 के साथ ही हर जगह दंगा बंद, अयोध्या से अब कारसेवकों का ढांचा तोड़ने के बाद वापस लौटने का सिलसिला शुरू हो गया. अन्ना महाराज वहां से करीब दो दिन बाद मण्डला के लिए ट्रेन से रवाना हुए और अपने घर पहुंच गए.

प्रशासन कर रहा था तलाश

अन्ना महाराज बताते हैं कि उन्हें ठीक से याद नहीं, लेकिन लगभग 4-5 दिन बाद वे मण्डला लौटे तो उन्हें बताया गया कि जिला प्रशासन और पुलिस उन्हें बार बार पकड़ने के लिए घर आकर छापेमारी कर रही है. क्योंकि उनके मंडला में होने से तनाव और बढ़ सकता था. अन्ना महाराज मण्डला लौटे लेकिन पुलिस के हाथ नहीं आए. हालांकि कुछ दिन बाद उनकी गिरफ्तारी हुई 10 से 15 दिन जेल में बंद रखने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. लेकिन इस दौरान मंडला शहर का माहौल भी देश के अन्य हिस्से की तरह तनावपूर्ण ही रहा और लगातार पुलिस की गश्ती और सायरन की ही गूंज सुनाई देती रही.

देशवासियों के आदर्श हैं 'राम'

राम को परिभाषित करना आसान नहीं, लेकिन इन्हें हमारे देश में आदर्श माना जाता है. यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोग इस आंदोलन में किसी न किसी रूप में शामिल थे और यही प्रेरणा उन्हें अयोध्या तक ले गयी. अन्ना किसी पार्टी या संस्था से नहीं हैं और उनका कहना है कि राम सबके हैं उन्हें राजनीति से जोड़ना उचित नहीं और न्याय पालिका का जो फैसला है. उसके आधार पर जो भूमि पूजन हो रहा इसका सम्मान सभी को करना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी की भावनाएं भी आहत न हो.

ऐतिहासिक घड़ी का था इंतजार

मंदिर आंदोलन से जुड़े अन्ना महाराज का कहना है कि यह ऐतिहासिक लम्हा है और इसी दिन का इंतजार हिदुओं को सैकड़ो साल से रहा है. अब वह घड़ी आयी है और उन्हें गर्व है कि वे इस आंदोलन का हिस्सा रहे हैं. अन्ना महाराज कहते हैं कि सामाजिक शौहार्द के बीच इसका भूमि पूजन और भव्य मंदिर का निर्माण हो यही सबकी चाहत थी.

मंडला। 5 अगस्त को अयोध्या में बनने वाले भव्य राम मंदिर की नींव रखी जाएगी. इसके लिए तैयारियां जोरों पर हैं. मंदिर निर्माण भूमि पूजन का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के पीछे कई लोगों ने आंदोलन किया. जिसमें मंडला के सुनील दुबे भी शामिल थे, जिन्हें लोग अन्ना महाराज के नाम से जानते हैं.

अन्ना महाराज ने बताई आंदोलन की कहानी

देश की राजनीति करवट ले रही थी और राजनीति में कब राम मंदिर जुड़ता गया पता ही नहीं चला. धरना, प्रदर्शन और बहुत से आंदोलन हुए, लेकिन यह विवाद सुलझा सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सुनाए गए निर्णय के बाद, लेकिन राम मंदिर निर्माण का वो आंदोलन आज भी सबके जहन में है. जब यहां का विवादित ढांचा 6 दिसम्बर 1992 को गिराया गया था. उनमें मंडला के भी एक कार सेवक शामिल थे सुनील दुबे. जिन्हें मंडला में अन्ना महाराज के नाम से जाना जाता.

उस वक्त पूरे देश में था राम का माहौल

अन्ना महाराज बताते हैं कि सारे देश में राम की लहर थी और लोग अपने मन और श्रद्धा से ही राम मंदिर निर्माण आंदोलन से जुड़ रहे थे. जिसकी लहर गांवों तक जा पहुंची थी. अन्ना महाराज भी 1992 में दिसम्बर की पहली तारीख को अयोध्या जा पहुंचे.

अन्ना महाराज की जुबानी राम आंदोलन की कहानी

जिनके साथ मण्डला के दो अन्य लोग और थे. सारी रात ठंड में कुकड़ते हुए कुर्सी पर बैठ कर कटी. जिसके बाद सुबह सरयू नदी में स्नान के बाद. वहीं किसी संत से चर्चा के बाद आश्रम में जगह मिली और ऐसे ही 5 दिन बीत गए.

जिसके बाद अयोध्या में कार सेवकों का हुजूम जुटने लगा. ऐसे ही 6 दिसंबर को गहमागहमी के माहौल के बीच रस्से के सहारे कारसेवक ढांचे पर चढ़ गए और उसे गिराना चालू कर दिया और इसके बाद जो माहौल बना वह बहुत ही ज्यादा तनाव का था.

जिससे पूरा देश प्रभावित हुआ और कर्फ्यू धारा 144 के साथ ही हर जगह दंगा बंद, अयोध्या से अब कारसेवकों का ढांचा तोड़ने के बाद वापस लौटने का सिलसिला शुरू हो गया. अन्ना महाराज वहां से करीब दो दिन बाद मण्डला के लिए ट्रेन से रवाना हुए और अपने घर पहुंच गए.

प्रशासन कर रहा था तलाश

अन्ना महाराज बताते हैं कि उन्हें ठीक से याद नहीं, लेकिन लगभग 4-5 दिन बाद वे मण्डला लौटे तो उन्हें बताया गया कि जिला प्रशासन और पुलिस उन्हें बार बार पकड़ने के लिए घर आकर छापेमारी कर रही है. क्योंकि उनके मंडला में होने से तनाव और बढ़ सकता था. अन्ना महाराज मण्डला लौटे लेकिन पुलिस के हाथ नहीं आए. हालांकि कुछ दिन बाद उनकी गिरफ्तारी हुई 10 से 15 दिन जेल में बंद रखने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. लेकिन इस दौरान मंडला शहर का माहौल भी देश के अन्य हिस्से की तरह तनावपूर्ण ही रहा और लगातार पुलिस की गश्ती और सायरन की ही गूंज सुनाई देती रही.

देशवासियों के आदर्श हैं 'राम'

राम को परिभाषित करना आसान नहीं, लेकिन इन्हें हमारे देश में आदर्श माना जाता है. यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोग इस आंदोलन में किसी न किसी रूप में शामिल थे और यही प्रेरणा उन्हें अयोध्या तक ले गयी. अन्ना किसी पार्टी या संस्था से नहीं हैं और उनका कहना है कि राम सबके हैं उन्हें राजनीति से जोड़ना उचित नहीं और न्याय पालिका का जो फैसला है. उसके आधार पर जो भूमि पूजन हो रहा इसका सम्मान सभी को करना चाहिए और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी की भावनाएं भी आहत न हो.

ऐतिहासिक घड़ी का था इंतजार

मंदिर आंदोलन से जुड़े अन्ना महाराज का कहना है कि यह ऐतिहासिक लम्हा है और इसी दिन का इंतजार हिदुओं को सैकड़ो साल से रहा है. अब वह घड़ी आयी है और उन्हें गर्व है कि वे इस आंदोलन का हिस्सा रहे हैं. अन्ना महाराज कहते हैं कि सामाजिक शौहार्द के बीच इसका भूमि पूजन और भव्य मंदिर का निर्माण हो यही सबकी चाहत थी.

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