मंडला। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कहर बरपा रखा है. इस मुश्किल दौर में उस वक्त की यादें ताजा हो गयी हैं. जब दुनिया में कोरोना की तरह प्लेग बीमारी ने कहर बरपाया था. मंडला शहर में रहने वाली 102 साल की बुजुर्ग विद्या देवी शुक्ला के दिलोदिमाग को कोरोना ने एक बार फिर झिंझोड़ा है, 1920 में प्लेग बीमारी ने देश में दस्तक दी थी. तो आज कोरोना से उनके जख्म एक बार फिर हरे हो गए हैं. उस वक्त विद्या देवी युवा थी, जिनके पांच परिजनों की फ्लेग से मौत हो गयी थी.
ताजा हैं प्लेग की यादें, कोरोना को भी देखा
विद्या देवी खुद प्लेग की चपेट में आ गयी थी. लेकिन उन्होंने हौसले से काम लिया, और बीमारी से खुद को उबार लिया. आज सामने कोरोना है तो वह इससे लड़ने के लिए अपनी पीढ़ी और आस-पास के लोगों की हिम्मत बढ़ा रही हैं. सबसे कहती हैं, डरो मत. तब तो डॉक्टर भी नहीं थे. आज तो सबकुछ मौजूद है. खास बात यह है कि उम्र का रिकार्ड बना चुकी विद्या देवी की याददाश्त 102 साल में भी ठीकठाक है. 1920 में फैली प्लेग बीमारी को याद करते हुए वे बताती है. जिस भी घर में किसी व्यक्ति को प्लेग होता उस घर से चार से पांच लोगों की लाश जरूर निकलती थी. आलम यह हो गया था कि लाश को कांधा देने वाले या फिर अंतिम संस्कार करने वाले लोग भी नहीं मिलते थे.
कोरोना से हिम्मत से लड़ो
प्लेग को देख चुकी विद्या का कहना है कि कोरोना और प्लेग दोनों ही देश दुनिया के लिए खतरनाक साबित हुए. उस वक्त भी लोग डर के साये में जीते थे. आज भी डर के साये में जी रहे हैं. लेकिन उन्होंने प्लेग को हराया था. तो कोरोना को भी हराया जा सकता है. समय कोई भी रहा हो खुद की सुरक्षा और संयम के साथ बरती गई सावधनियां ही लोगों को सुरक्षित रखने में सहायक होती है. भले ही आज के दौर में मेडिकल साइंस बेहतर हो गया है. लेकिन कठिन समय में इंसान का हौसला ही उसकी सबसे बड़ी ताकत होता है. एक बार फिर समय बहुत कठिन दौर से गुजर रहा. लेकिन हम सबको को डटकर इस मुश्किल वक्त का सामना करना है.
अंग्रेजो की गुलामी और आजादी की पहली किरण भी देखी
विद्या देवी का कहना है कि अंग्रेजी हुकूमत में उन लोगों को ज्यादा परेशानी और अंग्रेजों की कठोरता निर्दयता झेलनी पड़ती थी जो उनके खिलाफ खड़े होते थे. उस वक्त विद्या का परिवार जबलपुर में रहता था तब उन्होंने बहुत सी रैलियों के साथ ही आज़ादी के जुलूस और अंग्रेजों का विरोध करते हुई निकलती टोलियां भी देखी. सुभाष चंद्र बोस से लेकर महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की सभाओं में उमड़ने वाला जन समुदाय अंग्रेजों के लिए हमेशा चिंता बढाने वाला होता था. विद्या देवी को 1947 का वो दिन भी याद है जब देश में पहली बार आजादी का सूरज उगा और हर किसी हिंदुस्तानी ने खुली हवा में सांस ली थी.
नवंबर में खोया पति का साथ
102 साल में भी खुद ही अपने सारे काम करने और चलने फिरने में सक्षम विद्या देवी के पति लक्ष्मी कांत शुक्ला का देहांत 104 साल की उम्र में में हुआ था. दोनों ने करीब 90 साल का दाम्पत्य जीवन हंसी खुशी से बिताया. विद्या खुद उस जमाने में मेट्रिक तक पढाई कर चुकी हैं और उनके पति मण्डला के कलेक्टर कार्यालय में पदस्थ थे.
प्लेग ने बरपाया था भारत में कहर
जिस तरह आज कोरोना कहर बरपा रहा है, उसी तरह प्लेग ने भी भारत में कहर बरपाया था. डब्लूएचओ में अनुसार 1959 तक इसके वायरस लगातार सक्रिय रहे और इस दौरान सवा करोड़ लोगों की जान इस महामारी में गयी थी. एक बार फिर दुनिया में कोरोना महामारी का कहर है और करोड़ों लोग फिर इसकी गिरफ्त में आ चुके है.