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चिली फेस्टिवल के जरिए खरगोन के मिर्च की ब्रांडिंग, नागपुर के संतरे और कोटा के स्टोन की तरह पहचान दिलाने की कवायद

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Published : Mar 2, 2020, 8:36 AM IST

Updated : Mar 2, 2020, 9:51 AM IST

राज्य सरकार द्वारा छिंदवाड़ा में मक्का की ब्रांडिंग के तर्ज पर खरगोन की मिर्च को नई पहचान दिलाने के मकसद से 'चिली फेस्टिवल' का आयोजन किया गया.

Khargone's 'Mirchi' branding
खरगोन की मिर्च की ब्रांडिंग

खरगोन। कमलनाथ सरकार किसानों की आय बढ़ाने और स्थानीय उत्पादों को नई पहचान के साथ बाजार दिलाने के लिए नवाचारों का सहारा ले रही है. पिछले दिनों छिंदवाड़ा में मक्का की ब्रांडिंग के लिए 'कॉर्न फेस्टिवल' आयोजित किया गया था, वहीं अब खरगोन की मिर्च को नई पहचान दिलाने के मकसद से 'चिली फेस्टिवल' का आयोजन किया गया.

खरगोन के मिर्च की ब्रांडिंग

मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के खरगोन की मिर्च खाने के जायके को लाजवाब बना देती है, बावजूद इसके अभी तक इसे देश-दुनिया में वह पहचान नहीं मिल पाई है, जिसकी वह हकदार है. मध्यप्रदेश में मिर्च उत्पादन की स्थिति पर गौर करें, तो पता चलता है कि प्रदेश में मिर्च का कुल रकबा 87,743 हैक्टेयर है, जिसमें से 65.57 फीसदी हिस्सा निमाड़ क्षेत्र में है. निमाड़ अंचल में 14 तरह की मिर्च की पैदावार होती है.

प्रदेश में कुल मिर्च का उत्पादन 2 लाख 18 हजार 307 मेट्रिक टन उत्पादन का 54.35 फीसदी उत्पादन यहां होता है, जबकि प्रदेश में अकेले खरगोन की मिर्च का रकबा 29 फीसदी और उत्पादन भागीदारी भी 29 प्रतिशत है. निमाड़ क्षेत्र में खरगोन, धार, खंडवा, बड़वानी और अलीराजपुर में मिर्च का उत्पादन होता है. कृषि विभाग प्रयास कर रहा है कि किसानों को अपने उत्पाद का दाम और बाजार मिले, साथ ही खाद्य प्रसंस्करण के जरिए किसान अधिक आय अर्जित करें.

आर्थिक रूप से समृद्ध हों किसान: सरकार

राज्य के कृषि मंत्री सचिन यादव का कहना है, 'प्रदेश सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति में बदलाव लाना चाहती है, यही कारण है कि राज्य सरकार का जोर किसानों को बेहतर सुविधाओं के साथ बाजार उपलब्ध कराने पर है. कृषि आधारित उद्योगों की जरूरत की पूर्ति सिर्फ किसान ही कर सकता है. खरगोन और निमाड़ में मिर्च का उत्पादन होता है, किसानों के लिए यह चिली फेस्टिवल बड़ा मददगार साबित हो सकता है.

समय की मांग 'चिली फेस्टिवल'

कृषि मंत्री सचिन यादव का कहना है कि "इस फेस्टिवल को किसान की जरूरत के अनुसार ही आयोजित किया गया है, जिससे वे बहुत कुछ जान और समझ सकते हैं. किसान आपस में जुड़ें और एक ही किस्म की उपज लें. किसानों के पास किसी कंपनी की जरूरत के मुताबिक उपज और क्वॉलिटी है, तो कंपनी उनके पास आएगी और वह उनकी उपज खरीदने के लिए मजबूर होगी."

स्थानीय किसानों के अनुसार, कृषि और उद्यानिकी विभाग को लगता है कि जब नागपुर के संतरे, कोटा का स्टोन और आंध्रप्रदेश के गुंटुर की मिर्च देश-दुनिया में अपनी पहचान बना सकती है, तो खरगोन की मिर्च यह पहचान क्यों हासिल नहीं कर सकती.

खरगोन। कमलनाथ सरकार किसानों की आय बढ़ाने और स्थानीय उत्पादों को नई पहचान के साथ बाजार दिलाने के लिए नवाचारों का सहारा ले रही है. पिछले दिनों छिंदवाड़ा में मक्का की ब्रांडिंग के लिए 'कॉर्न फेस्टिवल' आयोजित किया गया था, वहीं अब खरगोन की मिर्च को नई पहचान दिलाने के मकसद से 'चिली फेस्टिवल' का आयोजन किया गया.

खरगोन के मिर्च की ब्रांडिंग

मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के खरगोन की मिर्च खाने के जायके को लाजवाब बना देती है, बावजूद इसके अभी तक इसे देश-दुनिया में वह पहचान नहीं मिल पाई है, जिसकी वह हकदार है. मध्यप्रदेश में मिर्च उत्पादन की स्थिति पर गौर करें, तो पता चलता है कि प्रदेश में मिर्च का कुल रकबा 87,743 हैक्टेयर है, जिसमें से 65.57 फीसदी हिस्सा निमाड़ क्षेत्र में है. निमाड़ अंचल में 14 तरह की मिर्च की पैदावार होती है.

प्रदेश में कुल मिर्च का उत्पादन 2 लाख 18 हजार 307 मेट्रिक टन उत्पादन का 54.35 फीसदी उत्पादन यहां होता है, जबकि प्रदेश में अकेले खरगोन की मिर्च का रकबा 29 फीसदी और उत्पादन भागीदारी भी 29 प्रतिशत है. निमाड़ क्षेत्र में खरगोन, धार, खंडवा, बड़वानी और अलीराजपुर में मिर्च का उत्पादन होता है. कृषि विभाग प्रयास कर रहा है कि किसानों को अपने उत्पाद का दाम और बाजार मिले, साथ ही खाद्य प्रसंस्करण के जरिए किसान अधिक आय अर्जित करें.

आर्थिक रूप से समृद्ध हों किसान: सरकार

राज्य के कृषि मंत्री सचिन यादव का कहना है, 'प्रदेश सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति में बदलाव लाना चाहती है, यही कारण है कि राज्य सरकार का जोर किसानों को बेहतर सुविधाओं के साथ बाजार उपलब्ध कराने पर है. कृषि आधारित उद्योगों की जरूरत की पूर्ति सिर्फ किसान ही कर सकता है. खरगोन और निमाड़ में मिर्च का उत्पादन होता है, किसानों के लिए यह चिली फेस्टिवल बड़ा मददगार साबित हो सकता है.

समय की मांग 'चिली फेस्टिवल'

कृषि मंत्री सचिन यादव का कहना है कि "इस फेस्टिवल को किसान की जरूरत के अनुसार ही आयोजित किया गया है, जिससे वे बहुत कुछ जान और समझ सकते हैं. किसान आपस में जुड़ें और एक ही किस्म की उपज लें. किसानों के पास किसी कंपनी की जरूरत के मुताबिक उपज और क्वॉलिटी है, तो कंपनी उनके पास आएगी और वह उनकी उपज खरीदने के लिए मजबूर होगी."

स्थानीय किसानों के अनुसार, कृषि और उद्यानिकी विभाग को लगता है कि जब नागपुर के संतरे, कोटा का स्टोन और आंध्रप्रदेश के गुंटुर की मिर्च देश-दुनिया में अपनी पहचान बना सकती है, तो खरगोन की मिर्च यह पहचान क्यों हासिल नहीं कर सकती.

Last Updated : Mar 2, 2020, 9:51 AM IST
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