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अंधविश्वास के चलते पिता ने बच्चे को 4 दिन तक घर में रखा कैद

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Published : Nov 8, 2019, 4:09 PM IST

अंधविश्वास और दैवीय प्रकोप के चलते पिता ने अपने ही बच्चे को चार दिनों तक कैद करके रखा. जब आशा कार्यकर्ता ने पुलिस का डर दिखाया तो पिता इलाज के लिए तैयार हुआ.

अंधविश्वास के चलते अपने ही बच्चे को किया कैद

खंडवा। हम भले ही चांद पर पहुंचने की बात करते हों, लेकिन आज भी लोग अंधविश्वास के चंगुल से निकल नहीं पा रहे हैं. खबर खालवा इलाके की है जहां एक पिता अपने बीमार बच्चे को अस्पताल में भर्ती करने की बजाय कई दिनों तक घर पर ही कैद करके रखता है. दैवीय प्रकोप मानकर पिता अपने बच्चे को बिना खाना दिए 4 दिनों तक घर पर ही कैद रखा. इस बारे में जब आशा कार्यकर्ता को मालूम चल तो उसने पिता को पुलिस का डर दिखाया. जिसके बाद बच्चे को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया.

अंधविश्वास के चलते अपने ही बच्चे को किया कैद

क्या है पूरा मामला

पूरा मामला खालवा तहसील के कालापाठा गांव का हैं. यहां आदिवासी परिवार के संतराम के 5 साल के बेटे नानू को सिर में चोट लगी थी. समय पर इलाज नहीं मिलने पर घाव में कीड़े पड़ गए. अंधविश्वास के चलते परिवार के लोगों ने इसे दैवीय प्रकोप मानकर उसका इलाज नहीं कराया, बल्कि 4 दिनों तक बिना खाना दिए कमरे में कैद करके रखा. यही नहीं बच्चे के पिता ने उसके घाव पर तंबाकू भर दिया. इससे बच्चे की तबीयत और बिगड़ गई. गांव की आशा कार्यकर्ता नर्मदा राय और सहयोगी उर्मिला सोलंकी को इस बात की सूचना लगी तो उन्होंने संतराम के घर पहुंचकर बच्चे को इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र चलने को कहा, लेकिन पिता से साफ मना कर दिया. जब आशा कार्यकर्ता ने पुलिस का डर दिखाया, तब जाकर वो बच्चे के इलाज के लिए राजी हुआ.

खंडवा। हम भले ही चांद पर पहुंचने की बात करते हों, लेकिन आज भी लोग अंधविश्वास के चंगुल से निकल नहीं पा रहे हैं. खबर खालवा इलाके की है जहां एक पिता अपने बीमार बच्चे को अस्पताल में भर्ती करने की बजाय कई दिनों तक घर पर ही कैद करके रखता है. दैवीय प्रकोप मानकर पिता अपने बच्चे को बिना खाना दिए 4 दिनों तक घर पर ही कैद रखा. इस बारे में जब आशा कार्यकर्ता को मालूम चल तो उसने पिता को पुलिस का डर दिखाया. जिसके बाद बच्चे को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया.

अंधविश्वास के चलते अपने ही बच्चे को किया कैद

क्या है पूरा मामला

पूरा मामला खालवा तहसील के कालापाठा गांव का हैं. यहां आदिवासी परिवार के संतराम के 5 साल के बेटे नानू को सिर में चोट लगी थी. समय पर इलाज नहीं मिलने पर घाव में कीड़े पड़ गए. अंधविश्वास के चलते परिवार के लोगों ने इसे दैवीय प्रकोप मानकर उसका इलाज नहीं कराया, बल्कि 4 दिनों तक बिना खाना दिए कमरे में कैद करके रखा. यही नहीं बच्चे के पिता ने उसके घाव पर तंबाकू भर दिया. इससे बच्चे की तबीयत और बिगड़ गई. गांव की आशा कार्यकर्ता नर्मदा राय और सहयोगी उर्मिला सोलंकी को इस बात की सूचना लगी तो उन्होंने संतराम के घर पहुंचकर बच्चे को इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र चलने को कहा, लेकिन पिता से साफ मना कर दिया. जब आशा कार्यकर्ता ने पुलिस का डर दिखाया, तब जाकर वो बच्चे के इलाज के लिए राजी हुआ.

Intro:खंडवा - खंडवा के आदिवासी तहसील खालवा में अंधविश्वास के चलते एक पिता ने अपने बच्चे के बीमार होने पर उसे चिकित्सकीय उपचार नहीं करवाने के बजाय दैवीय प्रकोप मानकर चार दिनों तक बिना भोजन घर में ही कैद कर दिया. जिससे बच्चे की हालात सुधरने के बजाय ज्यादा बिगड़ गई. इसकी सूचना जब गांव की आशा कार्यकर्ता को चली तो उसने तुरंत बच्चे के पिता को नजदीकी स्वास्थ केंद्र लाने को कहा.लेकिन पिता ने साफ मना कर दिया. जब आशा कार्यकर्ता ने पुलिस का भय दिखाया तो पिता इलाज के लिए राजी हुआ. उसे खालवा स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया जहां फ़िलहाल वो स्वस्थ्य हैं.

Body:दरअसल मामला खालवा तहसील के कालापाठा गाँव का हैं यहां आदिवासी परिवार के संतराम का 5 साल के बेटे नानू को सिर में चोट लगी थी समय पर ईलाज नही मिलने पर घाव में कीड़े पड़ गए. अंधविश्वास के चलते परिवार के लोगों ने इसे दैवीय प्रकोप मानकर उसका इलाज नहीं कराया बल्कि चार दिनों तक बिना भोजन के कमरे में कैद करके रखा. यही नहीं बच्चे के पिता ने उसके घाव पर तंबाकू भर दिया. इससे बच्चे की तबियत ओर ज्यादा बिगड़ गई. गाँव की आशा कार्यकर्ता नर्मदा राय और सहयोगी उर्मिला सोलंकी को इस बात की सूचना लगी तो उन्होंने संतराम के घर पहुंचकर बच्चे को इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र चलने को कहा लेकिन पिता से साफ मना कर दिया. जब आशा कार्यकर्ता द्वारा पुलिस बुलाने का भय दिखाया गया तब वह बच्चे के इलाज के लिए राजी हुआ.
Byte - पुष्पा, बच्चे की माँ
Byte - संतराम, बच्चे के पिता

जहां से बच्चे को तुरंत खालवा स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया. यहां डॉक्टर के मुताबिक बच्चे के सिर में मेगट्स (कीड़े) पड़ गए. डॉक्टर के अनुसार चार दिनों तक इलाज नही मिलने पर ऐसा हुआ. इलाज में एक दो दिन की देरी हो जाती तो शायद बच्चे की मौत हो सकती थी.
Byte - डॉ शैलेंद्र कटारिया, बीएमओ खालवा

Conclusion:इस घटना से साफ जाहिर होता हैं आज भी दूर दराज आदिवासी क्षेत्रों में अंधविश्वास की जड़े कितनी गहरी पैठ बनाए हुए हैं. विज्ञान की इतनी तरक्की के बावजूद आदिवासी परिवारों में रूढ़िवादीता और अंधविश्वास खत्म नही हुआ हैं. वो तो आशा कार्यकर्ता और उसकी सहयोगी की हिम्मत और जिद के चलते बच्चे की जान जाने से बच गई.
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