झाबुआ। सुरक्षा और जनसेवा का नारा बुलंद करने वाला पुलिस प्रशासन ही परिवारों की सुरक्षा के साथ किस तरह खिलवाड़ कर रहा है, इसका नजारा झाबुआ के मेघनगर में देखने को मिला. जहां पुलिस लाइन में रहने वाले पुलिस अधिकारी और कर्मचारियों के परिजन हर दिन डर के साए में रहने को मजबूर हैं. अनुशासन में बंधी पुलिस अपनी इस तकलीफ की शिकायत भी वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं करते. जिसकी कीमत इन पुलिस कर्मचारियों के परिजनों को उठानी पड़ रही है.
मेघनगर पुलिस लाइन में सालों पहले बनाए गए पुलिस आवास जर्जर और खंडहर हो गए हैं. यह जर्जर भवन कब धराशाई हो जाए कोई नहीं जानता. बरसात के मौसम में यहां रहने वाले पुलिसकर्मियों उनके परिजनों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन मकानों में रहने वाले पुलिसकर्मी अपने निजी खर्च पर इन मकानों में मरम्मत का काम कई मर्तबा करवा चुके हैं. लेकिन हालत वही जस की तस हो जाती है.
इस मरम्मत में विभाग की ओर से उन्हें कोई सहायता नहीं मिलती है. लिहाजा अब अकेले रहने वाले पुलिसकर्मियों ने भी इन मकानों को अपने हाल पर छोड़ दिया है. बीते कई सालों से मेघनगर पुलिस आवास निर्माण की मांग उठती रही है. लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों और सरकार की रजामंदी के बिना यह काम कई सालों से फाइलों में ही अटका पड़ा है. यहां रहने वाले पुलिस परिवार के लोग बरसात के दिनों में खुद को ओर मकान को सुरक्षित रखने के लिए बरसाती का सहारा लेते हैं.
इन सरकारी मकानों की दीवारें इतनी कमजोर हो चुकी हैं, कि कब अनहोनी दुर्घटना हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है. इस मामले में पुलिस अधीक्षक शासन स्तर पर मांग पत्र भेजकर स्वीकृति मिलने पर आवास बनाने की बात कर रहे हैं. हालांकि इस तरह के शर्मनाक हालात महज झाबुआ के नहीं बल्कि होशंगाबाद के सातवीं बटालियन में भी देखने मिला है. जहां जवानों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ हो रहा है.