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मध्य प्रदेश के झाबुआ में बच्चों की पढ़ाई चौपट, ऑनलाइन क्लास फेल !

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के बच्चों की बेबसी ऐसी है कि उनके सपने तो बड़े हैं, लेकिन संसाधनों की कमी के चलते वह अकसर पूरे नहीं हो पाते. ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था राज्य के ग्रामीण अंचलों में पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. राजधानी भोपाल से झाबुआ की दूरी यूं तो केवल सात घंटे की है, लेकिन शिक्षा के मामले में यह जिला बेहद पिछड़ा हुआ है.

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झाबुआ न्यूज
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Published : Aug 11, 2020, 4:31 PM IST

झाबुआ। कोरोना संकट ने इंसानी जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है. मानव जीवन के कुछ हिस्से ज्यादा प्रभावित और कुछ कम प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन हर किसी पक्ष पर इसका कुछ न कुछ असर तो हो ही रहा है. शिक्षा जगत भी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां इसका असर देखा जा सकता है. हालात बिगड़े तो सरकार और स्कूल प्रबंधन ने ऑनलाइन क्लासेज शुरू करने का फैसला किया, लेकिन शायद यह प्रक्रिया सभी बच्चों के लिए सहज, सरल और सुगम नहीं रही.

झाबुआ में ऑनलाइन क्लास फेल

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई का हाल भी कुछ ऐसा ही है. इधर अभिभावक बच्चों की पढ़ाई के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं, लेकिन सवाल है कि वह स्मार्ट फोन और टीवी कैसे खरीदें जब घर चलाना ही मुश्किल हो रहा है.एक बच्चे के अभिभावक ने बताया कि वह मजदूरी करते हैं, छोटी-मोटी खेती का काम करते हैं. गरीब लोग हैं, टीवी, मोबाइल कहां से लाएं ?

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के बच्चों की बेबसी ऐसी है कि उनके सपने तो बड़े हैं, लेकिन संसाधनों की कमी के चलते वह अक्सर पूरे नहीं हो पाते. ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था राज्य के ग्रामीण अंचलों में पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. राजधानी भोपाल से झाबुआ की दूरी यूं तो केवल सात घंटे की है, लेकिन शिक्षा के मामले में ये जिला बेहद पिछड़ा हुआ है. आदिवासी बहुल झाबुआ में साक्षरता दर सिर्फ 43.3 फीसदी है. अब नए तरीके की शिक्षा से पढ़ाई और चौपट होती जा रही है. बच्चों का कहना है कि उनके पास मोबाइल या लैपटॉप नहीं हैं तो पढ़ें कैसे. जिन छात्रों के पास संसाधन है वे भी नेटवर्क की समस्या के कारण नहीं पढ़ पाते.

छात्रों की मानें, तो उनका कहना है कि मोबाइल-लेपटॉप नहीं हैं, तो कैसे पढ़ेंगे. ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई में रूचि भी नहीं होगी. कुछ छात्रों से जब पूछा गया कि ऑनलाइन पढ़ाई क्या है, तो उन्होंने कहा हमें नहीं मालूम.

सरकार ने इस समस्या को भी हल करने की कोशिश की और घर हमारा विद्यालय कार्यक्रम की तर्ज पर 20 जुलाई से दूरदर्शन पर क्लास से संबंधित प्रसारण शुरू किया. जिले में करीब 15 हजार बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास टीवी है ना मोबाइल. ऐसे बच्चों के लिए ग्राम पंचायत में प्रसारण देखने की व्यवस्था की गई है, हालांकि इसका फायदा भी होता नहीं दिख रहा.

मेघनगर जनपद के सीईओ वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि हम इस आदेश को जारी कर रहे हैं और प्रत्येक पंचायत के माध्यम से शुरु करवाया जाएगा.एक अभिभावक ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई कुछ खास नहीं हो रही. मेरे पास तो यह सादा (कीपैड वाला) मोबाइल है. इस मोबाइल में भी इंटरनेट नहीं चलता.

झाबुआ में कुल दो हजार 538 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें तीन लाख से ज्यादा छात्र रजिस्टर्ड हैं. प्राइवेट स्कूलों की संख्या 326 है, जिसमें करीब 63,551 बच्चे पढ़ते हैं. कोरोना काल में सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं नहीं होने से परेशानियां आ रहीं हैं, तो प्राइवेट स्कूलों में भी ऑनलाइन क्लास में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में ड्रॉपआउट रेट बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है.

शासकीय कन्या स्कूल के प्रभारी प्राचार्य फिरोज खान ने बताया कि कई बच्चों के पास मोबाइल नहीं है, किसी के पास है भी तो उनके मां-बाप के पास है. उनकी कोचिंग के समय मोबाइल उपलब्ध नहीं होता. बहुत ही कम लड़कियां इसमें जुड़ पा रही हैं.एक प्राइवेट स्कूल की प्रिंसिपल शालिनी व्यास ने बताया कि नेटवर्क इतना मजबूत नहीं है. यहां तक कि मेरे घर पर भी नेटवर्क की समस्या रहती है.

हालांकि अधिकारी इससे इत्तेफाक नहीं रखते. इनकी मानें तो कोरोना काल में भी छात्रों तक ऑनलाइन शिक्षा पहुंचाई जा रही है. समय पर किताबों का वितरण हो रहा है और शिक्षक बच्चों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं. राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त लोकेश जाटव कहते हैं कि हमने यह प्रयास किया है कि हर घर में टीवी, रेडियो और मोबाइल फोन मौजूद हो. इसी क्रम में प्रत्येक सोमवार से शनिवार को 10 से 11 बजे एक कार्यक्रम हमने प्रारंभ किया है.

सरकारी दावों से ऐसा लगता है कि देश में शिक्षा पलक झपकते ही ऑफलाइन से ऑनलाइन मोड में चली जाएगी. ये बातें सुनने में बड़ी ही आकर्षक हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों का बदलहाल शैक्षणिक ढांचा ऑनलाइन क्लास के दावों पर सवाल खड़े कर देता है.

झाबुआ। कोरोना संकट ने इंसानी जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है. मानव जीवन के कुछ हिस्से ज्यादा प्रभावित और कुछ कम प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन हर किसी पक्ष पर इसका कुछ न कुछ असर तो हो ही रहा है. शिक्षा जगत भी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां इसका असर देखा जा सकता है. हालात बिगड़े तो सरकार और स्कूल प्रबंधन ने ऑनलाइन क्लासेज शुरू करने का फैसला किया, लेकिन शायद यह प्रक्रिया सभी बच्चों के लिए सहज, सरल और सुगम नहीं रही.

झाबुआ में ऑनलाइन क्लास फेल

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई का हाल भी कुछ ऐसा ही है. इधर अभिभावक बच्चों की पढ़ाई के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं, लेकिन सवाल है कि वह स्मार्ट फोन और टीवी कैसे खरीदें जब घर चलाना ही मुश्किल हो रहा है.एक बच्चे के अभिभावक ने बताया कि वह मजदूरी करते हैं, छोटी-मोटी खेती का काम करते हैं. गरीब लोग हैं, टीवी, मोबाइल कहां से लाएं ?

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के बच्चों की बेबसी ऐसी है कि उनके सपने तो बड़े हैं, लेकिन संसाधनों की कमी के चलते वह अक्सर पूरे नहीं हो पाते. ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था राज्य के ग्रामीण अंचलों में पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. राजधानी भोपाल से झाबुआ की दूरी यूं तो केवल सात घंटे की है, लेकिन शिक्षा के मामले में ये जिला बेहद पिछड़ा हुआ है. आदिवासी बहुल झाबुआ में साक्षरता दर सिर्फ 43.3 फीसदी है. अब नए तरीके की शिक्षा से पढ़ाई और चौपट होती जा रही है. बच्चों का कहना है कि उनके पास मोबाइल या लैपटॉप नहीं हैं तो पढ़ें कैसे. जिन छात्रों के पास संसाधन है वे भी नेटवर्क की समस्या के कारण नहीं पढ़ पाते.

छात्रों की मानें, तो उनका कहना है कि मोबाइल-लेपटॉप नहीं हैं, तो कैसे पढ़ेंगे. ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई में रूचि भी नहीं होगी. कुछ छात्रों से जब पूछा गया कि ऑनलाइन पढ़ाई क्या है, तो उन्होंने कहा हमें नहीं मालूम.

सरकार ने इस समस्या को भी हल करने की कोशिश की और घर हमारा विद्यालय कार्यक्रम की तर्ज पर 20 जुलाई से दूरदर्शन पर क्लास से संबंधित प्रसारण शुरू किया. जिले में करीब 15 हजार बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास टीवी है ना मोबाइल. ऐसे बच्चों के लिए ग्राम पंचायत में प्रसारण देखने की व्यवस्था की गई है, हालांकि इसका फायदा भी होता नहीं दिख रहा.

मेघनगर जनपद के सीईओ वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि हम इस आदेश को जारी कर रहे हैं और प्रत्येक पंचायत के माध्यम से शुरु करवाया जाएगा.एक अभिभावक ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई कुछ खास नहीं हो रही. मेरे पास तो यह सादा (कीपैड वाला) मोबाइल है. इस मोबाइल में भी इंटरनेट नहीं चलता.

झाबुआ में कुल दो हजार 538 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें तीन लाख से ज्यादा छात्र रजिस्टर्ड हैं. प्राइवेट स्कूलों की संख्या 326 है, जिसमें करीब 63,551 बच्चे पढ़ते हैं. कोरोना काल में सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं नहीं होने से परेशानियां आ रहीं हैं, तो प्राइवेट स्कूलों में भी ऑनलाइन क्लास में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में ड्रॉपआउट रेट बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है.

शासकीय कन्या स्कूल के प्रभारी प्राचार्य फिरोज खान ने बताया कि कई बच्चों के पास मोबाइल नहीं है, किसी के पास है भी तो उनके मां-बाप के पास है. उनकी कोचिंग के समय मोबाइल उपलब्ध नहीं होता. बहुत ही कम लड़कियां इसमें जुड़ पा रही हैं.एक प्राइवेट स्कूल की प्रिंसिपल शालिनी व्यास ने बताया कि नेटवर्क इतना मजबूत नहीं है. यहां तक कि मेरे घर पर भी नेटवर्क की समस्या रहती है.

हालांकि अधिकारी इससे इत्तेफाक नहीं रखते. इनकी मानें तो कोरोना काल में भी छात्रों तक ऑनलाइन शिक्षा पहुंचाई जा रही है. समय पर किताबों का वितरण हो रहा है और शिक्षक बच्चों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं. राज्य शिक्षा केंद्र आयुक्त लोकेश जाटव कहते हैं कि हमने यह प्रयास किया है कि हर घर में टीवी, रेडियो और मोबाइल फोन मौजूद हो. इसी क्रम में प्रत्येक सोमवार से शनिवार को 10 से 11 बजे एक कार्यक्रम हमने प्रारंभ किया है.

सरकारी दावों से ऐसा लगता है कि देश में शिक्षा पलक झपकते ही ऑफलाइन से ऑनलाइन मोड में चली जाएगी. ये बातें सुनने में बड़ी ही आकर्षक हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों का बदलहाल शैक्षणिक ढांचा ऑनलाइन क्लास के दावों पर सवाल खड़े कर देता है.

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