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अनलॉक में बढ़ा बाल मजदूरों का आंकड़ा, अधिकारी नहीं ले रहे सुध

झाबुआ में अनलॉक के बाद बाल श्रमिकों के आंकड़े में इजाफा हुआ है. जिनको बाल मजदूरी रोकने की जिम्मेदारी दी गई है, वे ऑफिस में बैठ शिकायत आने का इंतजार कर रहे हैं.

child labor
बाल मजदूरी
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Published : Jul 23, 2020, 11:39 AM IST

Updated : Jul 24, 2020, 9:48 AM IST

झाबुआ। हाथों में किताब और कंधे पर स्कूल का बस्ता बच्चों पर कितना जंचता है, लेकिन जब उन्हीं हाथों पर बर्तन-तगरी और कंधों पर काम करने की जिम्मेदारी हो, तो वे कहीं धंसते नजर आते हैं. कुछ ऐसे ही हालात इन दिनों कोरोना महामारी के कारण आदिवासी बहुल जिला झाबुआ में देखने को मिल रहा है. कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन ने बुरी तरह से समाज के मध्यम और निम्न वर्ग की कमर तोड़ कर रख दी है, जिस वजह से इस वर्ग को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में अब मासूमों के कंधों पर भी अपने पेट का बोझ आ गया है, जिस वजह से वे मजदूरी करने चल दिए हैं.

बाल मजदूरी का बढ़ा आंकड़ा

अनलॉक होते ही जहां सभी व्यवसाय खुलने लगे हैं, वहीं दिनों-दिन बालश्रम भी बढ़ता जा रहा है. जिले में ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में बड़ी संख्या में बाल मजदूरी करते बच्चे नजर आते हैं. एक ओर खेतों में जाकर जहां बच्चें मेहनत कर रहे हैं, वहीं चाय की दुकानों में जलती भट्टी पर भी काम करते हैं.

जिले में ये काम कर रहे बाल मजदूर

  • खेतों में काम करने के लिए
  • मवेशियों को चराने ले जाने के लिए
  • होटलों में काम करने के लिए
  • घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन की साफ-सफाई के लिए
  • कृषि कार्य के दौरान कपास बीनने के लिए
  • निर्माण स्थल पर मजदूरी करने के लिए
  • गैराज पर मजदूरी करने के लिए
  • चाय-समोसे की दुकानों में काम के लिए
    child labor
    किताबों की जग हाथों में औजार

सस्ता है बालश्रम
बाल श्रम बढ़ने का एक कारण ये भी है कि, ये सस्ता है. जिले में मजदूरों को एक दिन की मजदूरी जहां 250 से 300 रुपए तक मिलती है, वहीं बाल श्रमिकों को महज 100 से 120 रुपए 10 घंटे तक काम करने के लिए मिलते हैं. फिलहाल आर्थिक संकट होने के कारण जिले में लोगों को आसानी से बाल मजदूर भी मिल रहे हैं, जिस वजह से यहां बाल श्रम बड़े पैमाने पर हो रहा है.

शिकायत करने पर प्रशासन लेगा सुध

जिन जिम्मेदारों को बाल मजदूरी रोकने की जिम्मेदारी दी गई है, वे तो अब तक इस बात से बेखबर हैं कि, आखिर जिले में किन इलाकों में कितने बच्चे क्या- क्या काम कर रहे हैं. इसके अलावा जिले में ऐसी कोई संस्था भी नहीं है, जो बच्चों के अधिकारों के लिए काम करती हो. हैरानी की बात यह है कि, जिस श्रम विभाग पर बाल श्रम रोकने की जिम्मेदारी है, वहां के अधिकारी भी शिकायत मिलने पर कार्रवाई की बात करते हैं.

child labor
चिलचिलाती धूप में मजदूरी

बीते पांच सालों में जिले भर में महज 9 बाल श्रम के प्रकरण दर्ज किए गए हैं. ऐसे में बाल श्रम रोकने की मुहिम कैसे चल रही है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. इसके अलावा जिले में कलेक्टर की अध्यक्षता में 13 सदस्यीय टास्क फोर्स बनी हुई है, जिसका काम 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मजदूरी करने से रोकना है, लेकिन ये टास्क फोर्स कब एक्टिव हुई थी और कब इनएक्टिव हो गई, ये किसी को नहीं पता.

बाल कल्याण समिति की चेयरमैन निवेदिता सक्सेना बताती हैं कि, झाबुआ में बाल श्रमिक संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों से वंचित हो रहे हैं. लिहाजा प्रशासन को जागरूक होने की जरूरत है. जिस चाइल्डलाइन संस्था पर बाल श्रम रोकने की जिम्मेदारी है, उसके अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम दिख रहे हैं, जिसके चलते हजारों की संख्या में बच्चे मवेशी चराते हुए नजर आते हैं.

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आग से खेलने की पड़ रही आदत

2011 में थे 34 हजार बाल मजदूर

यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा जारी डाटा के मुताबिक 2011 की जनगणना के अनुसार झाबुआ जिले में 34 हजार वर्किंग चाइल्ड मौजूद थे, जिसमें से 200 बच्चे दूसरे जिलों से झाबुआ में केवल भिक्षावृत्ति के लिए आते थे. हालांकि, इस आंकड़े को लेकर पिछले सालों में सार्वजनिक सेमिनार भी आयोजित किए गए और बाल श्रम को रोकने के लिए सरकारी योजनाओं का हवाला दिया गया, लेकिन इस आंकड़े के इतर सरकार ने कितने बाल श्रमिकों को मुक्त कराया, यह भी सामने है.

झाबुआ। हाथों में किताब और कंधे पर स्कूल का बस्ता बच्चों पर कितना जंचता है, लेकिन जब उन्हीं हाथों पर बर्तन-तगरी और कंधों पर काम करने की जिम्मेदारी हो, तो वे कहीं धंसते नजर आते हैं. कुछ ऐसे ही हालात इन दिनों कोरोना महामारी के कारण आदिवासी बहुल जिला झाबुआ में देखने को मिल रहा है. कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन ने बुरी तरह से समाज के मध्यम और निम्न वर्ग की कमर तोड़ कर रख दी है, जिस वजह से इस वर्ग को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में अब मासूमों के कंधों पर भी अपने पेट का बोझ आ गया है, जिस वजह से वे मजदूरी करने चल दिए हैं.

बाल मजदूरी का बढ़ा आंकड़ा

अनलॉक होते ही जहां सभी व्यवसाय खुलने लगे हैं, वहीं दिनों-दिन बालश्रम भी बढ़ता जा रहा है. जिले में ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में बड़ी संख्या में बाल मजदूरी करते बच्चे नजर आते हैं. एक ओर खेतों में जाकर जहां बच्चें मेहनत कर रहे हैं, वहीं चाय की दुकानों में जलती भट्टी पर भी काम करते हैं.

जिले में ये काम कर रहे बाल मजदूर

  • खेतों में काम करने के लिए
  • मवेशियों को चराने ले जाने के लिए
  • होटलों में काम करने के लिए
  • घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन की साफ-सफाई के लिए
  • कृषि कार्य के दौरान कपास बीनने के लिए
  • निर्माण स्थल पर मजदूरी करने के लिए
  • गैराज पर मजदूरी करने के लिए
  • चाय-समोसे की दुकानों में काम के लिए
    child labor
    किताबों की जग हाथों में औजार

सस्ता है बालश्रम
बाल श्रम बढ़ने का एक कारण ये भी है कि, ये सस्ता है. जिले में मजदूरों को एक दिन की मजदूरी जहां 250 से 300 रुपए तक मिलती है, वहीं बाल श्रमिकों को महज 100 से 120 रुपए 10 घंटे तक काम करने के लिए मिलते हैं. फिलहाल आर्थिक संकट होने के कारण जिले में लोगों को आसानी से बाल मजदूर भी मिल रहे हैं, जिस वजह से यहां बाल श्रम बड़े पैमाने पर हो रहा है.

शिकायत करने पर प्रशासन लेगा सुध

जिन जिम्मेदारों को बाल मजदूरी रोकने की जिम्मेदारी दी गई है, वे तो अब तक इस बात से बेखबर हैं कि, आखिर जिले में किन इलाकों में कितने बच्चे क्या- क्या काम कर रहे हैं. इसके अलावा जिले में ऐसी कोई संस्था भी नहीं है, जो बच्चों के अधिकारों के लिए काम करती हो. हैरानी की बात यह है कि, जिस श्रम विभाग पर बाल श्रम रोकने की जिम्मेदारी है, वहां के अधिकारी भी शिकायत मिलने पर कार्रवाई की बात करते हैं.

child labor
चिलचिलाती धूप में मजदूरी

बीते पांच सालों में जिले भर में महज 9 बाल श्रम के प्रकरण दर्ज किए गए हैं. ऐसे में बाल श्रम रोकने की मुहिम कैसे चल रही है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. इसके अलावा जिले में कलेक्टर की अध्यक्षता में 13 सदस्यीय टास्क फोर्स बनी हुई है, जिसका काम 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मजदूरी करने से रोकना है, लेकिन ये टास्क फोर्स कब एक्टिव हुई थी और कब इनएक्टिव हो गई, ये किसी को नहीं पता.

बाल कल्याण समिति की चेयरमैन निवेदिता सक्सेना बताती हैं कि, झाबुआ में बाल श्रमिक संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों से वंचित हो रहे हैं. लिहाजा प्रशासन को जागरूक होने की जरूरत है. जिस चाइल्डलाइन संस्था पर बाल श्रम रोकने की जिम्मेदारी है, उसके अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम दिख रहे हैं, जिसके चलते हजारों की संख्या में बच्चे मवेशी चराते हुए नजर आते हैं.

child labor
आग से खेलने की पड़ रही आदत

2011 में थे 34 हजार बाल मजदूर

यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा जारी डाटा के मुताबिक 2011 की जनगणना के अनुसार झाबुआ जिले में 34 हजार वर्किंग चाइल्ड मौजूद थे, जिसमें से 200 बच्चे दूसरे जिलों से झाबुआ में केवल भिक्षावृत्ति के लिए आते थे. हालांकि, इस आंकड़े को लेकर पिछले सालों में सार्वजनिक सेमिनार भी आयोजित किए गए और बाल श्रम को रोकने के लिए सरकारी योजनाओं का हवाला दिया गया, लेकिन इस आंकड़े के इतर सरकार ने कितने बाल श्रमिकों को मुक्त कराया, यह भी सामने है.

Last Updated : Jul 24, 2020, 9:48 AM IST
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