झाबुआ। प्रदेश में अतिवृष्टि से पहले ही किसानों की कमर टूटी हुई है, जबकि किसान सरकार के झूठे दावों से परेशान हैं. आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में मक्का और सोयाबीन की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है. किसानों को उनकी उपज का लाभ तो दूर, लागत भी नहीं निकली है. अत्यधिक बारिश के चलते खराब हुई फसलों का सर्वे कब हुआ और किसने किया, किसानों को इसकी कोई जानकारी नहीं है.
बारिश से बर्बाद फसलों से जूझ रहे किसानों के लिए अधूरी कर्ज माफी भी किसी मुसीबत से कम नहीं है. 10 दिनों में जिस सरकार ने प्रदेश के तमाम किसानों का दो लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने का वादा किया था, करीब एक साल बाद भी किसान कर्ज माफी की राह देख रहा है. झाबुआ विधानसभा उपचुनाव के पहले यहां के किसानों का तेजी से कर्ज माफ कर सरकार ने किसानों को थोड़ी राहत जरूर दी, लेकिन चुनाव जीतने के बाद बाकी बचे 23 हजार किसानों की कर्ज माफी की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई है.
जिन किसानों को दोनों ही राजनीतिक दलों ने सियासी गलियारों का खिलौना समझ रखा है, उस अन्नदाता की माली हालत खराब है. बावजूद इसके सरकारें अपना राग अलाप रही हैं. वरिष्ठ अधिकारी कार्यालय से आदेश आने पर स्थिति साफ करने की बात कह रहे हैं.