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2019 में प्रशासन और शासन के बढ़ते दावों और वादों के साथ बढ़ी लोगों की समस्यााएं - 2019

2019 का साल झाबुआ के लिए कुछ खास नहीं रहा. सरकार के दावे और उन दावों की खुलती पोल साफ देखी जा सकती है. विकास तो दूर की बात जिले की हालात साल के बीतते-बीतते और गंभीर हो गए हैं.

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दावों और वादों के साथ बढ़ी लोगों की समस्यााएं
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Published : Dec 31, 2019, 5:22 PM IST

झाबुआ। जिले में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है बावजूद यहां बेरोजगारी का आलम कम होने का नाम नहीं ले रहा. शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति भी लगातार दयनीय बनी होने से जिले के लोगों की पड़ोसी राज्य गुजरात पर निर्भरता बढ़ती जा रही है. सरकारी योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन ना होने से न तो बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है और ना ही रोजगार की स्थिति बेहतर बन पा रही है.

दावों और वादों के साथ बढ़ी लोगों की समस्यााएं

झाबुआ के मेघनगर औद्योगिक केंद्र विकास निगम की नींव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी. बावजूद यह औद्योगिक क्षेत्र बदहाली के दौर से गुजर रहा है. यहां उद्योग लगातार बंद होते जा रहे हैं. इसी क्षेत्र में रॉक फॉस्फेट की भारत की सबसे बड़ी खदान में से एक झाबुआ रोक फास्फेट की की खदान भी है, जो सरकार को करोड़ों का राजस्व देती थी, लेकिन निगम के अधिकारियों की नीती के कारण यह खदान कई सालों से बंद जैसे हालात से गुजर रही है.

झाबुआ में शिक्षा के हालात सबसे ज्यादा खराब है. सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है तो दूसरी ओर सरकार ने करोड़ों के बजट से जिन भवनों को तैयार किया है वहां समुचित संसाधन और शिक्षकों की व्यवस्था ना होने से यह अनुपयोगी साबित हो रहे है. मेघनगर महाविद्यालय को पिछले 5 सालों में बिल्डिंग बनाने के लिए जमीन तक नहीं मिल रही है.

2019 में जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में भी कोई सुधार नहीं हुआ. अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से पुरा जिला जूझ रहा है. यहां 80 फ़ीसदी डॉक्टरों के पद खाली हैं. लिहाजा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुद अपनी बीमारी का इलाज नहीं कर पा रहे. 2019 में सरकार की रोजगार मिलक योजना भी धरातल पर नाकाम साबित हुई.

भारत सरकार की मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना में पैसा ना होने के चलते मजदूरों को अब यहां से पलायन कर के अन्य राज्यों में रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है. 2019 में एक बार फिर से अपना जनाधार खो चुके कांतिलाल भूरिया को पावर सेंटर मिल के रूप में देखा जा रहा है.

झाबुआ। जिले में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है बावजूद यहां बेरोजगारी का आलम कम होने का नाम नहीं ले रहा. शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति भी लगातार दयनीय बनी होने से जिले के लोगों की पड़ोसी राज्य गुजरात पर निर्भरता बढ़ती जा रही है. सरकारी योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन ना होने से न तो बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है और ना ही रोजगार की स्थिति बेहतर बन पा रही है.

दावों और वादों के साथ बढ़ी लोगों की समस्यााएं

झाबुआ के मेघनगर औद्योगिक केंद्र विकास निगम की नींव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी. बावजूद यह औद्योगिक क्षेत्र बदहाली के दौर से गुजर रहा है. यहां उद्योग लगातार बंद होते जा रहे हैं. इसी क्षेत्र में रॉक फॉस्फेट की भारत की सबसे बड़ी खदान में से एक झाबुआ रोक फास्फेट की की खदान भी है, जो सरकार को करोड़ों का राजस्व देती थी, लेकिन निगम के अधिकारियों की नीती के कारण यह खदान कई सालों से बंद जैसे हालात से गुजर रही है.

झाबुआ में शिक्षा के हालात सबसे ज्यादा खराब है. सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है तो दूसरी ओर सरकार ने करोड़ों के बजट से जिन भवनों को तैयार किया है वहां समुचित संसाधन और शिक्षकों की व्यवस्था ना होने से यह अनुपयोगी साबित हो रहे है. मेघनगर महाविद्यालय को पिछले 5 सालों में बिल्डिंग बनाने के लिए जमीन तक नहीं मिल रही है.

2019 में जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में भी कोई सुधार नहीं हुआ. अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से पुरा जिला जूझ रहा है. यहां 80 फ़ीसदी डॉक्टरों के पद खाली हैं. लिहाजा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुद अपनी बीमारी का इलाज नहीं कर पा रहे. 2019 में सरकार की रोजगार मिलक योजना भी धरातल पर नाकाम साबित हुई.

भारत सरकार की मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना में पैसा ना होने के चलते मजदूरों को अब यहां से पलायन कर के अन्य राज्यों में रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है. 2019 में एक बार फिर से अपना जनाधार खो चुके कांतिलाल भूरिया को पावर सेंटर मिल के रूप में देखा जा रहा है.

Intro:झाबुआ : जाने वाले वर्ष 2019 में कौनसी खबरें बनी थी
सुर्खियां जानिए हमारी स्पेशल रिपोर्ट में ।
झाबुआ: झाबुआ में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है बावजूद यहां बेरोजगारी का आलम कम होने का नाम नहीं ले रहा। शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति भी लगातार कमी होने से जिले के लोगो की पड़ोसी राज्य गुजरात पर निर्भरता बढ़ती जा रही है । सरकारी योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन ना होने से न तो बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है और ना ही रोजगार की स्थिति बेहतर बन पा रही है।


Body:झाबुआ जिले के मेघनगर औद्योगिक केंद्र विकास निगम की नींव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी, बावजूद यह औद्योगिक क्षेत्र बदहाली के दौर से गुजर रहा है । यहाँ उद्योग लगातार बंद होते जा रहे हैं । इसी क्षेत्र में रॉक फॉस्फेट की भारत की सबसे बड़ी खदान में से एक झाबुआ रोक फास्फेट की की खदान भी है जो सरकार को करोड़ों का राजस्व देती थी मगर निगम के अधिकारियों ढुलमुल नीती के कारण यह खदान कई सालों से बंद जैसे हालात से गुजर रही है।

झाबुआ में शिक्षा के हालात सबसे ज्यादा खराब है सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है तो दूसरी ओर सरकार ने करोड़ों के बजट से जिन भवनों को तैयार किया है वहाँ समुचित संसाधन और शिक्षकों की व्यवस्था ना होने से यह अनुपयोगी साबित हो रहे है तो दूसरी ओर मेघनगर महाविद्यालय को पिछले 5 सालों में बिल्डिंग बनाने के लिए जमीन तक मिल रही ,जिसके 5 सालो से महाविद्यालय प्राइमरी स्कूल से संचालित हो रहा है। 2019 में जिले की स्वास्थ्य सेवाओ में भी कोई सुधार नही हुआ। अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से पुरा जिला जूझ रहा है। यहां 80 फ़ीसदी डॉक्टरों के पद रिक्त है लिहाजा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुद अपनी बीमारी का इलाज नहीं कर पा रहे। 2019 में सरकार की रोजगार मिलक योजना भी धरातल पर फिसड्डी साबित हुई, भारत सरकार की मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना में पैसा ना होने के चलते मजदूरों को अब यहां से पलायन कर के अन्य राज्यों में रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है ।


Conclusion: 2019 में एक बार फिर से अपना जनाधार खो चुके कांतिलाल भूरिया को पावर सेंटर मिल के रूप में देखा जा रहा है कांग्रेस की सरकार आने और विधानसभा उपचुनाव में जीत के बाद कांतिलाल भूरिया झाबुआ में सर्वे सर्वा है इसके पहले कांतिलाल भूरिया के बेटे विधानसभा का चुनाव हारे थे और खुद कांतिलाल भूरिया भाजपा के गुमान सिंह डामोर से लोकसभा का चुनाव हार चुके थे लिहाजा विधानसभा में उनकी जीत 2019 की सबसे बड़ी सुर्खियों वाली खबर रही थी ।

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