झाबुआ। जिले में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है बावजूद यहां बेरोजगारी का आलम कम होने का नाम नहीं ले रहा. शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति भी लगातार दयनीय बनी होने से जिले के लोगों की पड़ोसी राज्य गुजरात पर निर्भरता बढ़ती जा रही है. सरकारी योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन ना होने से न तो बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है और ना ही रोजगार की स्थिति बेहतर बन पा रही है.
झाबुआ के मेघनगर औद्योगिक केंद्र विकास निगम की नींव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रखी थी. बावजूद यह औद्योगिक क्षेत्र बदहाली के दौर से गुजर रहा है. यहां उद्योग लगातार बंद होते जा रहे हैं. इसी क्षेत्र में रॉक फॉस्फेट की भारत की सबसे बड़ी खदान में से एक झाबुआ रोक फास्फेट की की खदान भी है, जो सरकार को करोड़ों का राजस्व देती थी, लेकिन निगम के अधिकारियों की नीती के कारण यह खदान कई सालों से बंद जैसे हालात से गुजर रही है.
झाबुआ में शिक्षा के हालात सबसे ज्यादा खराब है. सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है तो दूसरी ओर सरकार ने करोड़ों के बजट से जिन भवनों को तैयार किया है वहां समुचित संसाधन और शिक्षकों की व्यवस्था ना होने से यह अनुपयोगी साबित हो रहे है. मेघनगर महाविद्यालय को पिछले 5 सालों में बिल्डिंग बनाने के लिए जमीन तक नहीं मिल रही है.
2019 में जिले की स्वास्थ्य सेवाओं में भी कोई सुधार नहीं हुआ. अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से पुरा जिला जूझ रहा है. यहां 80 फ़ीसदी डॉक्टरों के पद खाली हैं. लिहाजा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुद अपनी बीमारी का इलाज नहीं कर पा रहे. 2019 में सरकार की रोजगार मिलक योजना भी धरातल पर नाकाम साबित हुई.
भारत सरकार की मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना में पैसा ना होने के चलते मजदूरों को अब यहां से पलायन कर के अन्य राज्यों में रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है. 2019 में एक बार फिर से अपना जनाधार खो चुके कांतिलाल भूरिया को पावर सेंटर मिल के रूप में देखा जा रहा है.