जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति में आरक्षण का पालन न होने को चुनौती देने वाले मामले को गंभीरता से लिया है. जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने कई अवसरों के बावजूद भी सरकार की ओर से जवाब न आने को आड़े हाथों लेते हुए ओआईसी पर दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. इसके साथ ही एकलपीठ ने सामान्य प्रशासन विभाग व विधि विभग के प्रमुख सचिव को मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल को व्यक्तिगत तौर पर हाजिर होने के निर्देश दिए है, हालांकि विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतक्षा है।
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका : उल्लेखनीय है कि यह मामला ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से दायर किया गया था. इसमें शासकीय अधिवक्ताओ की नियुक्तियों में आरक्षण नियम लागू करने की राहत मांगी गई थी. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने जानकारी देते हुए बताया कि उक्त याचिका में आठ अवसरों के बावजूद सामान्य प्रशासन विभाग व विधि विभाग ने जवाब दाखिल नही किया. इस पर न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त करते हुए आफीसर इन चार्ज (ओआईसी) के विरुद्ध 10 हज़ार की कास्ट लागाते हुए आदेशित किया गया कि उक्त राशि ओआईसी अपनी सैलरी से लीगल एड में जमा करें. इसके साथ ही आगामी तारीख 18 अप्रैल को सामान्य प्रशासन विभाग एवं विधि विभाग के प्रमुख सचिव व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित रहेंगे, हालांकि विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतीक्षा है.
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हाल ही में 140 अधिवक्ताओं की नियुक्ति हुई : गौरतलब है कि विगत 17 फरवरी 2022 को महाधिवक्ता कार्यालय जबलपुर, इंदौर व ग्वालियर में शासकीय अधिवक्ताओं के विभिन्न पदों पर 140 अधिवक्ताओं की नियुक्ति की गई हैं. हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर दलील दी गई थी कि उक्त नियुक्तियों मे अनुसूचित जाति वर्ग से एक भी अधिवक्ता को शासकीय अधिवक्ता के रूप मे नियुक्ति नहीं दी गई है. याचिका में नियुक्तियों को संविधान के अनुछेद 14,15 व 16 से असंगत बताते हुए मध्य प्रदेश, लोक सेवा आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा चार का उल्लंघन बताया. याचिका में अधिनियम की धारा 14 के तहत उक्त नियुक्तियों को शून्य घोषित करने की राहत चाही गई है. लंबे समय से हाई कोर्ट के वकीलों के बीच शासकीय अधिवक्ता नियुक्ति मामले में आरक्षण को लेकर बहस चलती आई है. (appointment of government advocates) (High Court fined of 10 thousand)