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प्रशासनिक लापरवाही के चलते एक हजार मरीजों को नहीं मिल पा रहा इलाज, जानें क्या है मामला

प्रदेश में तीन बड़े सरकारी अस्पताल सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही के चलते शुरु नहीं हो पा रहे हैं. ये तीनों अस्पताल शुरू हो जाते हैं तो मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्तर की इलाज की सुविधाएं सरकारी अस्पतालों में ही मिलने लगेंगी.

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Published : Jul 13, 2019, 6:02 PM IST

प्रशासनिक लापरवाही के चलते एक हजार मरीजों को नहीं मिल पा रहा इलाज

जबलपुर| प्रशासनिक लापरवाही के चलते तीन बड़े सरकारी अस्पताल शुरु नहीं हो पा रहे हैं. कैंसर अस्पताल की बिल्डिंग अधूरी है, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं हैं और मेडिकल कॉलेज के 100 बेड के अस्पताल का काम अधूरा पड़ा है.

राष्ट्रीय स्तर का कैंसर अस्पताल

130 करोड़ रुपए की लागत से एक कैंसर अस्पताल बनाया जा रहा है. राष्ट्रीय स्तर के इस अस्पताल में 200 बिस्तर होंगे. इसके साथ ही 40 मरीजों को रखने के लिए ICU वार्ड बनाए जा रहे हैं. इस कैंसर अस्पताल में कैंसर से जुड़े इलाज के लिए 85 करोड़ के उपकरण होंगे. रेडियो थेरेपी की अत्याधुनिक सुविधाएं, कैंसर से जुड़ा हुआ रिसर्च किया जाएगा. गरीब लोगों को मुफ्त में इलाज मुहैया करवाया जाएगा. इस अस्पताल को 2018 में ही बनकर तैयार हो जाना चाहिए था. राज्य सरकार ने अपना हिस्सा आज से चार साल पहले दे दिया था. लेकिन केंद्र सरकार इस में रोड़े अटका रही थी. अब यह पैसा भी मिल गया है इसके बावजूद इस अस्पताल का निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है. मेडिकल कॉलेज के डीन नवनीत सक्सेना का कहना है कि अभी 80% काम पूरा हुआ है और अस्पताल को शुरू होते-होते साल बीत जाएगा.

प्रशासनिक लापरवाही के चलते एक हजार मरीजों को नहीं मिल पा रहा इलाज

काम करने नहीं तैयार डॉक्टर

जबलपुर में लगभग 100 करोड़ की लागत का एक अत्याधुनिक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनकर तैयार है. ये अस्पताल बीते 1 साल से अपने खुलने का इंतजार कर रहा है. इसमें भी 300 मरीजों के हिसाब से सुपर स्पेशलिटी इलाज की व्यवस्था की गई है. इसमें हार्ड न्यूरोलॉजी नेफ्रोलॉजी और अलग-अलग विधाओं के सुपर स्पेशलिटी इलाज के लिए ऑपरेशन थिएटर, पैथोलॉजी लैब और अत्याधुनिक आईसीयू वार्ड बना दिए गए हैं. लेकिन तीन लाख रुपए महीना तनख्वाह ऑफर करने के बाद भी डॉक्टर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में नौकरी करना नहीं चाहते. क्योंकि इसमें नौकरी करने के बाद डॉक्टरों को बाहर प्रैक्टिस पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा, जो डॉक्टरों को मंजूर नहीं है. इस अस्पताल के मुखिया डॉक्टर वाईआर यादव का कहना है कि एक-दो महीने के अंदर अस्पताल चालू कर दिया जाएगा.

MBBS की सीटें बढ़ाने चाहिए नया अस्पताल

जबलपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीटें बढ़ानी हैं. इसलिए बिस्तरों की संख्या बढ़ना जरूरी है. जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 100 बिस्तरों का एक अस्पताल और बनाया जा रहा है. उसका काम भी बड़ी धीमी गति से चल रहा है और जिस तरीके से काम चल रहा है उससे नहीं लगता कि बहुत जल्दी ये सुविधा आम आदमियों को मिल पाएगी.

ये तीनों अस्पताल शुरू हो जाते हैं तो मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्तर की इलाज की सुविधाएं सरकारी अस्पतालों में ही मिलने लगेंगी. लेकिन इन अस्पतालों को तुरंत शुरू करने में सरकार और प्रशासन की कोई रुचि नहीं दिखाई दे रही है.

जबलपुर| प्रशासनिक लापरवाही के चलते तीन बड़े सरकारी अस्पताल शुरु नहीं हो पा रहे हैं. कैंसर अस्पताल की बिल्डिंग अधूरी है, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं हैं और मेडिकल कॉलेज के 100 बेड के अस्पताल का काम अधूरा पड़ा है.

राष्ट्रीय स्तर का कैंसर अस्पताल

130 करोड़ रुपए की लागत से एक कैंसर अस्पताल बनाया जा रहा है. राष्ट्रीय स्तर के इस अस्पताल में 200 बिस्तर होंगे. इसके साथ ही 40 मरीजों को रखने के लिए ICU वार्ड बनाए जा रहे हैं. इस कैंसर अस्पताल में कैंसर से जुड़े इलाज के लिए 85 करोड़ के उपकरण होंगे. रेडियो थेरेपी की अत्याधुनिक सुविधाएं, कैंसर से जुड़ा हुआ रिसर्च किया जाएगा. गरीब लोगों को मुफ्त में इलाज मुहैया करवाया जाएगा. इस अस्पताल को 2018 में ही बनकर तैयार हो जाना चाहिए था. राज्य सरकार ने अपना हिस्सा आज से चार साल पहले दे दिया था. लेकिन केंद्र सरकार इस में रोड़े अटका रही थी. अब यह पैसा भी मिल गया है इसके बावजूद इस अस्पताल का निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है. मेडिकल कॉलेज के डीन नवनीत सक्सेना का कहना है कि अभी 80% काम पूरा हुआ है और अस्पताल को शुरू होते-होते साल बीत जाएगा.

प्रशासनिक लापरवाही के चलते एक हजार मरीजों को नहीं मिल पा रहा इलाज

काम करने नहीं तैयार डॉक्टर

जबलपुर में लगभग 100 करोड़ की लागत का एक अत्याधुनिक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनकर तैयार है. ये अस्पताल बीते 1 साल से अपने खुलने का इंतजार कर रहा है. इसमें भी 300 मरीजों के हिसाब से सुपर स्पेशलिटी इलाज की व्यवस्था की गई है. इसमें हार्ड न्यूरोलॉजी नेफ्रोलॉजी और अलग-अलग विधाओं के सुपर स्पेशलिटी इलाज के लिए ऑपरेशन थिएटर, पैथोलॉजी लैब और अत्याधुनिक आईसीयू वार्ड बना दिए गए हैं. लेकिन तीन लाख रुपए महीना तनख्वाह ऑफर करने के बाद भी डॉक्टर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में नौकरी करना नहीं चाहते. क्योंकि इसमें नौकरी करने के बाद डॉक्टरों को बाहर प्रैक्टिस पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा, जो डॉक्टरों को मंजूर नहीं है. इस अस्पताल के मुखिया डॉक्टर वाईआर यादव का कहना है कि एक-दो महीने के अंदर अस्पताल चालू कर दिया जाएगा.

MBBS की सीटें बढ़ाने चाहिए नया अस्पताल

जबलपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीटें बढ़ानी हैं. इसलिए बिस्तरों की संख्या बढ़ना जरूरी है. जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 100 बिस्तरों का एक अस्पताल और बनाया जा रहा है. उसका काम भी बड़ी धीमी गति से चल रहा है और जिस तरीके से काम चल रहा है उससे नहीं लगता कि बहुत जल्दी ये सुविधा आम आदमियों को मिल पाएगी.

ये तीनों अस्पताल शुरू हो जाते हैं तो मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय स्तर की इलाज की सुविधाएं सरकारी अस्पतालों में ही मिलने लगेंगी. लेकिन इन अस्पतालों को तुरंत शुरू करने में सरकार और प्रशासन की कोई रुचि नहीं दिखाई दे रही है.

Intro:कैंसर हॉस्पिटल सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और 100 बिस्तरों का अत्याधुनिक हॉस्पिटल प्रशासनिक लेटलतीफी का शिकार करोड़ों रुपया खर्च करने के बाद भी जनता को नहीं मिल पा रही इन की सुविधा
तीन लाख रुपया मासिक वेतन में भी काम करने को तैयार नहीं है डॉक्टर


Body:जबलपुर में प्रशासनिक लापरवाही के चलते 3 बड़े सरकारी अस्पताल नहीं हो पा रहे हैं चालू कैंसर अस्पताल की बिल्डिंग अधूरी है सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं है और मेडिकल कॉलेज के सौ बेड के अस्पताल का काम रुका पड़ा है

राष्ट्रीय स्तर का कैंसर अस्पताल

130 करोड़ रुपए की लागत से एक कैंसर अस्पताल बनाई जा रही है राष्ट्रीय स्तर के इस अस्पताल में 200 बिस्तर होंगे इसके साथ ही 40 मरीजों को रखने के लिए आईसीयू वार्ड बनाए जा रहे हैं इस कैंसर अस्पताल में कैंसर से जुड़े इलाज के लिए 85 करोड़ के उपकरण होंगे रेडियो थेरेपी की अत्याधुनिक सुविधाएं कैंसर से जुड़ा हुआ रिसर्च किया जाएगा गरीब लोगों को मुफ्त में इलाज मुहैया करवाया जाएगा इस अस्पताल को 2018 में ही बनकर चालू हो जाना चाहिए था राज्य सरकार ने अपना हिस्सा आज से 4 साल पहले दे दिया था लेकिन केंद्र सरकार इस में रोड़े अटका रही थी अब यह पैसा भी मिल गया है लेकिन इसके बावजूद इस अस्पताल का निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है मेडिकल कॉलेज के डीन नवनीत सक्सेना का कहना है कि अभी 80% कार्य पूरा हुआ है और अस्पताल को शुरू होते-होते साल बीत जाएगा

तीन लाख रुपया महीने की तनख्वाह में नहीं है डॉक्टर

वही जबलपुर में लगभग 100 करोड़ की लागत का एक अत्याधुनिक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनकर तैयार है यह अस्पताल बीते 1 साल से अपने खुलने का इंतजार कर रहा है इसमें भी 300 मरीजों के हिसाब से सुपर स्पेशलिटी इलाज की व्यवस्था की गई है इसमें हार्ड न्यूरोलॉजी नेफ्रोलॉजी और अलग-अलग विधाओं की सुपर स्पेशलिटी इलाज के लिए ऑपरेशन थिएटर पैथोलॉजी लैब और अत्याधुनिक आईसीयू वार्ड बना दिए गए हैं लेकिन बीते 1 साल से तीन लाख रुपया महीना तनख्वाह ऑफर करने के बाद भी डॉक्टर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल मैं नौकरी करना नहीं चाहते क्योंकि इसमें नौकरी करने के बाद डॉक्टरों को बाहर प्रैक्टिस पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा जो डॉक्टरों को मंजूर नहीं है फिलहाल इस अस्पताल के नर्स वार्ड बॉय और पैरामेडिकल स्टाफ की भर्ती चल रही है लेकिन यह अस्पताल भी फिलहाल चालू नहीं है इस अस्पताल के मुखिया डॉक्टर वाईआर यादव का कहना है कि एक 2 महीने के भीतर यह अस्पताल चालू कर दिया जाएगा

एमबीबीएस की सीटें बढ़ाने के लिए चाहिए नया अस्पताल

दरअसल मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीटें बढ़ानी है इसलिए बिस्तरों की संख्या बढ़ना जरूरी है जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 100 बिस्तरों का एक अस्पताल और बनाया जा रहा है उसका काम भी बड़ी धीमी गति से चल रहा है और जिस तरीके से काम चल रहा है उससे नहीं लगता कि बहुत जल्दी यह सुविधा आम आदमियों को मिल पाएगी


Conclusion:यदि यह तीनों अस्पताल शुरू हो जाते हैं तो मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्तर की इलाज की सुविधाएं सरकारी अस्पतालों में ही मिलने लगेंगी लेकिन इन अस्पतालों को तुरंत शुरू करने में सरकार और प्रशासन की कोई रुचि नहीं दिखती इसलिए आम आदमियों की यह विशेष सुविधा उन्हें नहीं मिल पा रही ह
byte डॉ नवनीत सक्सेना डीन मेडिकल कॉलेज जबलपुर
byte डॉक्टर वाईआर यादव प्रमुख सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल जबलपुर
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