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सरकारी अस्पतालों में है डॉक्टरों की भारी कमी, 26 लाख की आबादी में सिर्फ 29 डॉक्टर

जबलपुर जिले में डॉक्टरों की भारी कमी को देखते हुए जिले के CMHO का कहना है की अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं और सरकारी अस्पताल में तुरंत डॉक्टरों की भर्ती करनी चाहिए. जहां 26 लाख की आबादी में मात्र 29 डॉक्टर ही है.

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Published : Jan 26, 2020, 8:33 AM IST

huge shortage of doctors in government hospitals
सरकारी अस्पतालों में है डाक्टरों की भारी कमी

जबलपुर। जिले में डॉक्टरों की भारी कमी है, जिला अस्पताल में जिसे विक्टोरिया के नाम से जाना जाता है इसमें कुल 41 पद स्वीकृत हैं और इसमें मात्र 21 डॉक्टर हैं. वहीं महिलाओं के अस्पताल में 13 पोस्ट हैं और सिर्फ 5 डॉक्टर हैं. जिला अस्पताल और लेडी एल्गिन हॉस्पिटल में मिलाकर सिर्फ एक विशेषज्ञ हैं और रांझी के एक सरकारी अस्पताल में 4 पद स्वीकृत हैं. जिसमें एक भी डॉक्टर नहीं है.

सरकारी अस्पतालों में है डाक्टरों की भारी कमी

वहीं सबसे ज्यादा बुरा हाल ग्रामीण इलाकों का है और सिहोरा में 14 पद स्वीकृत हैं जिसमें एक ही डॉक्टर है. मझौली में 6 पद स्वीकृत हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है और पाटन में 6 पद स्वीकृत हैं और एक ही डॉक्टर है. पनागर और कुंडम में कुल 8 पद हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है. ग्रामीण इलाकों में 34 डॉक्टरों की कमी है और जबलपुर की आबादी लगभग 26 लाख है जिसमें सिर्फ 29 डॉक्टर हैं. वहीं एक लाख की आबादी में मात्र एक सरकारी डॉक्टर ही है.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जबलपुर की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी होगी. हालांकि जबलपुर जिला अस्पताल की बिल्डिंग लगभग सवा सौ साल पहले अंग्रेजों ने बनवाई थी और अब इसका बड़ी खूबसूरती से रंग रोगन किया गया है. प्रदेश में इस समय सरकारी अस्पतालों की कायाकल्प की योजना चल रही है और अस्पतालों को सुविधाजनक बनाया जा रहा है, लेकिन जब इसमें डॉक्टर ही नहीं होंगे तो इन को सुविधाजनक बनाने से क्या फायदा होगा.

जबलपुर जिले के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मनीष तिवारी कहते हैं कि सरकार को डाक्टरों की भर्ती को लेकर कोई योजना बनानी चाहिए, क्योंकि डॉक्टरों की भारी कमी है और सरकार को कोई ऐसी योजना बनानी चाहिए ताकि हफ्ते में कम से कम 2 दिन विशेषज्ञों से लोगों का इलाज करवाया जा सकें.

जबलपुर। जिले में डॉक्टरों की भारी कमी है, जिला अस्पताल में जिसे विक्टोरिया के नाम से जाना जाता है इसमें कुल 41 पद स्वीकृत हैं और इसमें मात्र 21 डॉक्टर हैं. वहीं महिलाओं के अस्पताल में 13 पोस्ट हैं और सिर्फ 5 डॉक्टर हैं. जिला अस्पताल और लेडी एल्गिन हॉस्पिटल में मिलाकर सिर्फ एक विशेषज्ञ हैं और रांझी के एक सरकारी अस्पताल में 4 पद स्वीकृत हैं. जिसमें एक भी डॉक्टर नहीं है.

सरकारी अस्पतालों में है डाक्टरों की भारी कमी

वहीं सबसे ज्यादा बुरा हाल ग्रामीण इलाकों का है और सिहोरा में 14 पद स्वीकृत हैं जिसमें एक ही डॉक्टर है. मझौली में 6 पद स्वीकृत हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है और पाटन में 6 पद स्वीकृत हैं और एक ही डॉक्टर है. पनागर और कुंडम में कुल 8 पद हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है. ग्रामीण इलाकों में 34 डॉक्टरों की कमी है और जबलपुर की आबादी लगभग 26 लाख है जिसमें सिर्फ 29 डॉक्टर हैं. वहीं एक लाख की आबादी में मात्र एक सरकारी डॉक्टर ही है.

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जबलपुर की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी होगी. हालांकि जबलपुर जिला अस्पताल की बिल्डिंग लगभग सवा सौ साल पहले अंग्रेजों ने बनवाई थी और अब इसका बड़ी खूबसूरती से रंग रोगन किया गया है. प्रदेश में इस समय सरकारी अस्पतालों की कायाकल्प की योजना चल रही है और अस्पतालों को सुविधाजनक बनाया जा रहा है, लेकिन जब इसमें डॉक्टर ही नहीं होंगे तो इन को सुविधाजनक बनाने से क्या फायदा होगा.

जबलपुर जिले के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मनीष तिवारी कहते हैं कि सरकार को डाक्टरों की भर्ती को लेकर कोई योजना बनानी चाहिए, क्योंकि डॉक्टरों की भारी कमी है और सरकार को कोई ऐसी योजना बनानी चाहिए ताकि हफ्ते में कम से कम 2 दिन विशेषज्ञों से लोगों का इलाज करवाया जा सकें.

Intro:जबलपुर जिले के सीएमएचओ का कहना डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं सरकारी अस्पताल सरकार को तुरंत करनी चाहिए डाक्टरों की भर्ती 26 लाख की आबादी पर मात्र 29 सरकारी डॉक्टर


Body:जबलपुर में डाक्टरों की भारी कमी जबलपुर जिला अस्पताल में जिसे विक्टोरिया के नाम से जाना जाता है इसमें कुल 41 पद स्वीकृत हैं और मात्र 21 डॉक्टर हैं महिलाओं के अस्पताल में 13 पोस्ट हैं और मात्र 5 डॉक्टर हैं जिला अस्पताल और लेडी एल्गिन हॉस्पिटल में मिलाकर मात्र एक विशेषज्ञ हैं जबलपुर के रांझी एक सरकारी अस्पताल है इसमें 4 पद स्वीकृत हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है सबसे ज्यादा बुरा हाल ग्रामीण इलाकों का है सिहोरा में 14 पद स्वीकृत हैं और मात्र एक डॉक्टर है मझौली में 6 पद स्वीकृत हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है पाटन में 6 पद स्वीकृत हैं और मात्र एक डॉक्टर है पनागर और कुंडम में कुल 8 पद स्वीकृत हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है मतलब ग्रामीण इलाकों में 34 डॉक्टरों की कमी है जबलपुर की आबादी लगभग 26 लाख है और मात्र 29 डॉक्टर हैं मतलब एक लाख की आबादी पर मात्र एक सरकारी डॉक्टर इससे खुद ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है की जबलपुर की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी होगी हालांकि जबलपुर जिला अस्पताल की बिल्डिंग लगभग सवा सौ साल पहले अंग्रेजों ने बनाई थी अब इसका बड़ी खूबसूरती से रंग रोगन किया गया है प्रदेश में इस समय सरकारी अस्पतालों की कायाकल्प की योजना चल रही है और अस्पतालों को सुविधाजनक बनाया जा रहा है लेकिन जब इसमें डॉक्टर ही नहीं होंगे तो इन को सुविधाजनक बनाने से क्या फायदा जबलपुर जिले के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मनीष तिवारी कहते हैं कि सरकार को डाक्टरों की भर्ती को लेकर कोई योजना बनानी चाहिए क्योंकि डॉक्टरों की भारी कमी है सरकार को कोई ऐसी योजना बनानी चाहिए ताकि हफ्ते में कम से कम 2 दिन विशेषज्ञों से लोगों का इलाज करवाया जा सके


Conclusion:डॉक्टरों की कमी का रोना बीते कई दशकों से चल रहा है लेकिन नाकाम सरकारें डॉक्टरों की उपलब्धता नहीं बढ़ा पाए हैं काबिल और होनहार छात्र पढ़ना चाहते हैं तो सीटें उपलब्ध नहीं है जबकि सरकार के पास असीमित संसाधन है फिर भी समाज में डॉक्टरों की कमी है और लोग परेशान हैं वाइट डॉक्टर मनीष जिला स्वास्थ्य अधिकारी जबलपुर
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