जबलपुर। जिले में डॉक्टरों की भारी कमी है, जिला अस्पताल में जिसे विक्टोरिया के नाम से जाना जाता है इसमें कुल 41 पद स्वीकृत हैं और इसमें मात्र 21 डॉक्टर हैं. वहीं महिलाओं के अस्पताल में 13 पोस्ट हैं और सिर्फ 5 डॉक्टर हैं. जिला अस्पताल और लेडी एल्गिन हॉस्पिटल में मिलाकर सिर्फ एक विशेषज्ञ हैं और रांझी के एक सरकारी अस्पताल में 4 पद स्वीकृत हैं. जिसमें एक भी डॉक्टर नहीं है.
वहीं सबसे ज्यादा बुरा हाल ग्रामीण इलाकों का है और सिहोरा में 14 पद स्वीकृत हैं जिसमें एक ही डॉक्टर है. मझौली में 6 पद स्वीकृत हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है और पाटन में 6 पद स्वीकृत हैं और एक ही डॉक्टर है. पनागर और कुंडम में कुल 8 पद हैं और एक भी डॉक्टर नहीं है. ग्रामीण इलाकों में 34 डॉक्टरों की कमी है और जबलपुर की आबादी लगभग 26 लाख है जिसमें सिर्फ 29 डॉक्टर हैं. वहीं एक लाख की आबादी में मात्र एक सरकारी डॉक्टर ही है.
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जबलपुर की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी होगी. हालांकि जबलपुर जिला अस्पताल की बिल्डिंग लगभग सवा सौ साल पहले अंग्रेजों ने बनवाई थी और अब इसका बड़ी खूबसूरती से रंग रोगन किया गया है. प्रदेश में इस समय सरकारी अस्पतालों की कायाकल्प की योजना चल रही है और अस्पतालों को सुविधाजनक बनाया जा रहा है, लेकिन जब इसमें डॉक्टर ही नहीं होंगे तो इन को सुविधाजनक बनाने से क्या फायदा होगा.
जबलपुर जिले के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मनीष तिवारी कहते हैं कि सरकार को डाक्टरों की भर्ती को लेकर कोई योजना बनानी चाहिए, क्योंकि डॉक्टरों की भारी कमी है और सरकार को कोई ऐसी योजना बनानी चाहिए ताकि हफ्ते में कम से कम 2 दिन विशेषज्ञों से लोगों का इलाज करवाया जा सकें.