जबलपुर । विक्टोरिया अस्पताल में एक बेटे ने मां की गोद में दम तोड़ दिया. कारण ये रहा कि उसे पहले पर्ची बनवानी थी. पर्ची के लिए लंबी लाइन लगी थी. बच्चा सीरियस था. अस्पताल स्टाफ ने कहा, लाइन में ही लगना होगा. बच्चे की हालत बिगड़ती गई और मां की गोद में ही उसने दम तोड़ दिया.
कुछ लोग कहते हैं कि गरीबी अपने आप में बीमारी है. बहुत से लोग ऐसा नहीं भी मानते. लेकिन एक गरीब लाचार मां के साथ ऐसा कुछ हुआ, कि गरीबी और लालफीताशाही दोनों उस पर कहर बनकर टूटे. इतना टूटे कि गरीब मां की दुनिया ही उजड़ गई. इस गरीब मां का बच्चा बीमार था. इलाज के लिए वो जिला विक्टोरिया अस्पताल पहुंचीं. अस्पताल में डॉक्टर तक पहुंचने से पहले पर्ची कटवानी पड़ती है. और पर्ची के लिए सरकारी अस्पतालों में लंबी लाइनें नई बात नहीं है. गरीब मां ने कहा, मेरा बेटा सीरियस है, इसे पहले देख लो. बड़ी मेहरबानी होगी.
अब सरकारी अस्पताल में गरीब की कौन सुने. गरीब थी, सो कोई पहुंच भी नहीं थी. पर्ची कटवाने के लिए वो लाइन में लगी रही. बेटा तड़पता रहा. मां गड़गिड़ाती रही. लेकिन सुनने वाला कोई नहीं थी. गरीब मां अपने जिगर के टुकड़े को गोद में उठाए घंटों तक खड़ी रही. किसी का दिल नहीं रोया उसकी हालत देखकर. मां का नंबर आया, पर्ची कटी. लेकिन तब तक गरीब मां का लाडला दम तोड़ चुका था. उसे समय पर इलाज नहीं मिल सका. मां की गोद में बेटे की जान चले जाना किसी वज्रपात से कम नहीं होता. जिगर का टुकड़ा ठंडी लाश बन गया था. मां की चीख निकल पड़ी. जिसे सुनकर आसपास खड़े लोगों के रौंगटे खड़े हो गए.
कहते हैं जीना मरना ऊपर वाले के हाथ में होता है. लेकिन यहां अस्पताल की 'जिद' ने एक गरीब मां से उसका बेटा छीन लिया. अस्पताल वाले कहते हैं नियम तो नियम है. अधिकारियों को सांप सूंघ गया. उनसे जवाब देते नहीं बना. कहने लगे हमें कुछ मालूम नहीं. हम अभी गांव में विजिट पर हैं.
विक्टोरिया अस्पताल से ईटीवी भारत के सवाल
- गरीब मां के बेटे की मौत का जिम्मेदार कौन है ?
- क्या मासूम की मौत के जिम्मेदारों को सजा मिलेगी ?
- क्या अस्पताल प्रशासन बच्चे की मौत का जिम्मेदार नहीं है ?
- मौके पर मौजूद स्टाफ ने गरीब मां और उसके बेटे की पुकार क्यों नहीं सुनी ?
- क्या सरकारी अस्पताल में सिर्फ पहुंच से ही गरीब मरीजों को सही और समय पर इलाज मिलेगा ?