भोपाल। गुरूवार को JDU के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का निधन हो गया है, उन्होंने 75 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. बता दें कि भारत में समाजवादी राजनीति के सूरज कहे जा सकने वाले शरद यादव ने राजनीति का क, ख, ग, घ भी जबलपुर में पढ़ा और उन्हें लेकर राजनीति के प्रयोग भी जबलपुर में ही हुआ. जबलपुर से ही वो पहली बार 1975 में चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे, फिर 1980 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद MP से ऐसा रूख किया कि लौटे तो सिर्फ अपनी जड़ों को सींचने और यार-दोस्तों से मिलने. इस सबके बावजूद जबलपुर की हर जिम्मेदारी को लेकर उन्होंने ऐसे ही फर्ज निभाया कि जैसे घर से दूसरे शहर गया बेटा निभाता है. आज जबलपुर को पहली सीधी ट्रेन देने की बात हो या हवाई सुविधा की जबलपुर की कायाकल्प में शरद यादव का अहम योगदान है.
जबलपुर को देश-दुनिया से जोड़ा: ये सही है कि शरद यादव ने 1980 के चुनाव में मिली हार के बाद फिर जबलपुर में राजनीतिक दृष्टि से रुख नहीं किया, लेकिन ये शहर हमेशा उनके दिल में रहा. यही वजह रही कि उन्होंने जबलपुर के विकास को हमेशा प्राथामिकता में रखा. जबलपुर को सीधी ट्रेन दिलाने से लेकर एयर कनेक्टिविटी तक, जबलपुर में रेल जोन बन पाना भी उन्हीं के प्रयासों से मुमकिन हो सका. जबलपुर एयरपोर्ट के विस्तार का प्रपोजल भी शरद यादव ही लेकर आए, और इसके लिए साढे 4 सौ करोड सरकार से दिलवाए. इसके अलावा जबलपुर के बरगी डैम के लिए राशि भी शरद यादव ने ही दिलवाई थी.
सर्वदलीय प्रत्याशी का पहला प्रयोग शरद यादव पर: होशंगाबाद के बाबई इलाके के आंखमऊ में जन्में शरद यादव कॉलेज पहुंचने के बाद जबलपुर पढ़ने आए थे, इंजीनियरिंग की पढाई उन्होने जबलपुर से ही की और फिर जबलपुर यूनिवर्सिटी में अध्यक्ष का चुनाव जीत गए. यहीं से उनके अंदर राजनीति के बीज पड़े. जनता के हक की आवाज बनने की नींव उस वक्त से पड़ गई, जब वे जबलपुर के हित में आंदोलन किया करते थे. 1974 में लोकसभा के चुनाव हुए 1975 में नतीजे आए, इस चुनाव में सर्वदलीय प्रत्याशी का पहली बार भारतीय राजनीति में प्रयोग हुआ, अटल जी और जय प्रकाश नारायण ने ये प्रयोग किया था. (sharad yadav connection with mp) शरद यादव की जीत के साथ ये प्रयोग सफल भी हुआ, 1980 में जब शरद यादव जबलपुर से चुनाव हारे तो उन्होंने एक तरीके से MP से ही विदा ले ली और उनकी राजनीति का मैदान यूपी बिहार बन गया.
जबलपुर में मालवीय चौक शरद यादव का अड्डा: जबलपुर में मालवीय चौक इलाका एक तरीके से शरद यादव का अड्डा कहा जाता था, यहां वो राजनीतिक गैर राजनीतिक डॉक्टर इंजीनियर वकील ट्रेड यूनियन के लीडर से मुलाकात किया करते थे. वरिष्ठ पत्रकार और शरद यादव के बेहद नजदीक रहे. काशीनाथ शर्मा कहते हैं, "उनकी ये खासियत रही कि उन्होंने उस दौर के छात्रों से लेकर अब तक युवाओँ को समाजवादी राजनीति की तरफ मोड़ा भी और जोड़ा भी. जिस तरह से अब सियासत में ऊगते सूरज को सलाम होते हैं, शरद यादव की खासियत थी कि वे छोटे से छोटे कार्यकर्ता से आत्मीयता से मिलते थे. हमें तो खूब डांटते थे और एक बात जो कहते थे खास तौर पर राजनीति में आने वालों के लिए ये मंत्र है. वे कहते थे, 'राजनीति और तुलसी का पौधा दोनों में हर दिन पानी डालना जरुरी है, एक दिन भी भूले तो मुश्किल हो जाएगी.' जबलपुर में सराफे में कचौड़ी वाले दादा, फुहारे में देवा मुंगौड़े वाले के यहां..जबलपुर में तो कहिए शरद यादव की रुह बसती थी."
सामाजिक न्याय के मसीहा थे शरद यादव: काशीनाथ कहते हैं कि, "शरद यादव का अवसान भारतीय राजनीति से सिध्दातों की राजनीति करने वाले सामाजिक न्याय के एक मसीहा का अवसान है, जिसने अपनी राजनीति में अपने सिध्दांतों और मर्यादा से कभी समझौता नहीं किया. पूरा जीवन जिस शख्स ने केवल संघर्ष किया, आसान नहीं था जबलपुर से निकलकर उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में खुद को जमा पाना. वो जिस पार्टी में थे, उसका वजूद उस ढंग का नहीं था, बावजूद इसके उन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी लकीर खींच दी."