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बलिदान दिवस: शंकर शाह- रघुनाथ के आंदोलन से डर गए थे अंग्रेज, इतिहास पन्नों में गुम हो गया नाम

1857 में जबलपुर के गोंड शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरु किया था. इस बात की भनक जब अंग्रेजों को लगी, तो अंग्रेज डर गए और दोनों को तोप के सामने बांधकर उड़ा दिया. आज बलिदान दिवस पर मांग उठ रही है कि, उनका भी नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज किया जाएं.

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इतिहास के पन्नों में नहीं मिली जगह
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Published : Sep 18, 2020, 1:59 PM IST

जबलपुर। भारत को आजाद हुए 74 साल हो चुका हैं. भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया था, लेकिन ऐसे बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं, जिनके नाम इतिहास की किताबों के पन्नों से गायब हो गए हैं. उन्हीं में से एक हैं राजा रघुनाथ शाह और उनके बेटे शंकर शाह. 18 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दोनों को तोप के सामने बांधकर उड़ा दिया था. आज उनका बलिदान दिवस.

इतिहास के पन्नों में नहीं मिली जगह

1857 में जबलपुर को अंग्रेजों ने अपना बेस बनाया लिया था, लेकिन यहां पर गोंड राजाओं का एक परिवार जिसमें पिता शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह अपनी सेना के साथ अंग्रेजों का विरोध करना शुरु कर दिया, दोनों के पास इतनी सेना नहीं थी की वे अंग्रेजों से लड़ सकते. इसलिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए सामाजिक आंदोलन चलाया और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करने के लिए मुहिम शुरू की. इस बात की भनक जब अंग्रेजों को लगी, तो अंग्रेज डर गए, उन दिनों गोंड राजाओं का साम्राज्य जबलपुर से शुरू होकर पूरे महाकौशल तक फैला था. यदि ये सभी लोग विरोध करते तो अंग्रेजों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती थी.

पिता और पुत्र के आंदोलन से डर गए अंग्रेज

इसलिए अंग्रेजों ने इनकी आवाज दबाने के लिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह को मारने का षड्यंत्र रचा और इनके पाले हुए एक स्थानीय राजा ने अंग्रेजों को शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बारे में जानकारी दे दी. अंग्रेजों ने चालाकी से इन गोंड राजाओं को गिरफ्तार कर लिया और भरे बाजार जबलपुर कमिश्नरी के सामने 18 सितंबर 1857 को पिता और पुत्र को तोप के आगे बांधकर उड़ा दिया. शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके. शंकर शाह और रघुनाथ शाह की याद में दोनों की प्रतिमा की स्थापान की गई, लेकिन इन अमर बलिदानियों को इतिहास में वो जगह नहीं मिल पाई, जो स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे सेनानियों को मिली.

इतिहास में जगह देने की मांग

भोज मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक और इतिहासकार डॉ. संजय सिंह का कहना है कि, खून से लिखे इतिहास को स्याही से नहीं मिटाया जा सकता. उनका कहना है कि, अमर बलिदान के बारे में मंचों से भाषण दिए जाते हैं, लेकिन इनकी किस्से पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किए जाते. पाठ्यक्रम में अकबर, औरंगजेब और दुनिया भर के आक्रांताओं के बारे में जानकारी दी जाती है, लेकिन इस मिट्टी के लिए मर मिटने वाले अमर बलिदानियों को भुला दिया जाता है. ऐसे ही गुमनाम शंकर शाह, रघुनाथ शाह को आज याद किया जाएगा.

जबलपुर। भारत को आजाद हुए 74 साल हो चुका हैं. भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया था, लेकिन ऐसे बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं, जिनके नाम इतिहास की किताबों के पन्नों से गायब हो गए हैं. उन्हीं में से एक हैं राजा रघुनाथ शाह और उनके बेटे शंकर शाह. 18 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दोनों को तोप के सामने बांधकर उड़ा दिया था. आज उनका बलिदान दिवस.

इतिहास के पन्नों में नहीं मिली जगह

1857 में जबलपुर को अंग्रेजों ने अपना बेस बनाया लिया था, लेकिन यहां पर गोंड राजाओं का एक परिवार जिसमें पिता शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह अपनी सेना के साथ अंग्रेजों का विरोध करना शुरु कर दिया, दोनों के पास इतनी सेना नहीं थी की वे अंग्रेजों से लड़ सकते. इसलिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए सामाजिक आंदोलन चलाया और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करने के लिए मुहिम शुरू की. इस बात की भनक जब अंग्रेजों को लगी, तो अंग्रेज डर गए, उन दिनों गोंड राजाओं का साम्राज्य जबलपुर से शुरू होकर पूरे महाकौशल तक फैला था. यदि ये सभी लोग विरोध करते तो अंग्रेजों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती थी.

पिता और पुत्र के आंदोलन से डर गए अंग्रेज

इसलिए अंग्रेजों ने इनकी आवाज दबाने के लिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह को मारने का षड्यंत्र रचा और इनके पाले हुए एक स्थानीय राजा ने अंग्रेजों को शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बारे में जानकारी दे दी. अंग्रेजों ने चालाकी से इन गोंड राजाओं को गिरफ्तार कर लिया और भरे बाजार जबलपुर कमिश्नरी के सामने 18 सितंबर 1857 को पिता और पुत्र को तोप के आगे बांधकर उड़ा दिया. शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके. शंकर शाह और रघुनाथ शाह की याद में दोनों की प्रतिमा की स्थापान की गई, लेकिन इन अमर बलिदानियों को इतिहास में वो जगह नहीं मिल पाई, जो स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे सेनानियों को मिली.

इतिहास में जगह देने की मांग

भोज मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक और इतिहासकार डॉ. संजय सिंह का कहना है कि, खून से लिखे इतिहास को स्याही से नहीं मिटाया जा सकता. उनका कहना है कि, अमर बलिदान के बारे में मंचों से भाषण दिए जाते हैं, लेकिन इनकी किस्से पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किए जाते. पाठ्यक्रम में अकबर, औरंगजेब और दुनिया भर के आक्रांताओं के बारे में जानकारी दी जाती है, लेकिन इस मिट्टी के लिए मर मिटने वाले अमर बलिदानियों को भुला दिया जाता है. ऐसे ही गुमनाम शंकर शाह, रघुनाथ शाह को आज याद किया जाएगा.

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