जबलपुर। कोरोना वायरस के बाद से एक के बाद एक बिमारियों का दौर जारी है. इसी क्रम में अब कोरोना से स्वस्थ हुए लोगों में तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याएं देखी जा रही हैं, जिनमें मस्तिष्क से रक्तस्राव यानी ब्रेन हेमरेज (Brain haemorrhage) के मामले भी शामिल हैं. दरअसल, एक ताजा रिसर्च में इस बात का खुलासा किया गया है.
60 प्रतिशत मरीज कोरोना से ठीक हुए
बता दें कि कोरोना से स्वस्थ हुए मरिजों पर की गई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि हॉस्पिटल के ओपीडी में 60 प्रतिशत तक मरीजों में अकेलापन, सुसाइड करने का विचार, थकान, अवसाद जैसी मानसिक या मस्तिष्क से संबंधी समस्याएं बढ़ने लगी हैं. ऐसे मरीजों में अधिकतर मरीज कोरोना से ठीक हो चुके लोग हैं.शहर में भले ही कोरोना वायरस का संकट कम होता नजर आ रहा है और कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या घटती नजर आ रही है, लेकिन वायरस ने जो साइड इफेक्ट छोड़े हैं, उनकी वजह से नई-नई बीमारियां लोगों को परेशान कर रही हैं.
लकवे के मरीज बढ़े
जबलपुर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर राजेश पटेल का कहना है कि कोरोना की वजह से खून के गाढ़े होने की परेशानी सामने आई है. इसकी वजह से कोरोना के मरीजों की तादाद भी बढ़ रही है. इस बीमारी में खून पतली ब्लड वेसल से आगे नहीं बढ़ पाता है. जिसके कारण दिमाग के कुछ हिस्से में खून नहीं पहुंच पाता है. और जिस हिस्से में खून नहीं पहुंचता है, उससे जुड़ी हुई बीमारी मरीज में दिखने लगती है. जिसे सामान्य तौर पर लकवा कहा जाता है. यह बीमारी ब्रेन हेमरेज से ठीक उल्टी है ब्रेन हेमरेज खून में प्रेशर बढ़ने के बाद नस के फटने की वजह से होता है और इसमें खून ना पहुंचने की वजह से शरीर का वह हिस्सा काम करना बंद कर देता है और मरीज लकवे का शिकार हो जाता है. हालाकि् ब्रेन हेमरेज के मामले में मरीजों में दर्ज किए जा रहे हैं.
बचाई जा सकती थी जान
डॉक्टरों का कहना है कोरोना वायरस के इलाज में खून पतली करने वाली दवाइयां बहुत जरूरी थी, यदि वे उस समय भी दे दी जाती तो भी बहुत सारे मरीजों की जान जो हार्टअटैक की वजह से गई है, वह बचाई जा सकती थी. उन्होंने कहा कि अभी भी जिन लोगों को एक बार कोरोना हो चुका है. उन्हें डॉक्टर की सलाह के बाद खून पतली करने वाली दवाइयां लेनी चाहिए. इससे वे इन नई बीमारियों से भी बच सकते हैं.
मेडिकल साइंस अभी तैयार नहीं
दरअसल, कोरोना के साइड इफेक्ट को लेकर मेडिकल साइंस भी अभी पूरी तरह से तैयार नजर नहीं आ रही है, क्योंकि यह बीमारी नहीं है इसके शरीर पर पड़ने वाले साइड इफेक्ट में हैं और इस पर अभी भी अध्ययन चल रहा है. इसलिए इसकी भयावहता को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि हो सकता है कि अबकी बार जो वेरिएंट आए वह नई किस्म की समस्याएं लेकर आएगा.