जबलपुर। आर्थिक वर्ग से कमजोर और सामान्य वर्ग के लोगों को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एके मित्तल और जस्टिस व्ही के शुक्ला की पीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, वहीं याचिका पर अगली सुनवाई 13 मार्च को निर्धारित की गई है.
50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए आरक्षण
अधिवक्ता अभिषेक कुमार पटेल, शिक्षक देवेंद्र सिंह, कृषक गुरूचरण सिंह सहित दो अन्य याचिकाकर्ताओं की तरफ से दायर की गयी याचिका में प्रदेश सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के संबंध में 2 जुलाई 2019 को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी. याचिका में कहा गया था कि सर्वोच्च न्यायालय के इंदिरा साहनी मामले में स्पष्ट आदेश दिया गया है कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए.
वहीं वर्तमान में ओबीसी वर्ग के लिए 14 प्रतिशत और एसटीएससी वर्ग के लिए 36 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित है. प्रदेश सरकार के ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने के संबंध में एक्ट पारित किया है, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. जिनकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू किये जाने के संबंध में रोक लगा रखी है.
ईओडब्ल्यू आरक्षण के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में कई एसोसिएशन ने याचिका दायर की है. वर्तमान में ओबीसी आरक्षण लागू किये जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा रखी है और याचिका में कहा गया था कि इस आरक्षण का लाभ आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को मिलेगा. आर्थिक रूप से कमजोर ओबीसी,एसटी व एससी वर्ग के लोगों को नहीं मिलेगा, जो संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंधन है. याचिका में केन्द्र व राज्य सरकार के विधि विभाग,मप्र हाईकोर्ट, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और प्रमुख सचिव ओबीसी व अल्पसंख्या कल्याण विभाग को अनावेदक बनाया गया था. याचिका की सुनवाई के बाद युगलपीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है व याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह ने पैरवी की.