जबलपुर। यह एक आम धारणा है कि चुनाव में हजारों करोड़ रुपए खर्च किया जाता है और महंगे चुनाव लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. इसीलिए चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों को खर्च की सीमा तय की है. इस खर्च पर बारीकी से नजर रखने के लिए तीन स्तर पर मॉनिटरिंग टीम बनाई है. चुनाव आयोग आम आदमी से भी अपील कर रहा है कि यदि आम आदमी कहीं पैसे के जरिए चुनाव प्रभावित होने की स्थिति देख रहा है, तो वह सूचना दे सकता है.
चुनाव में एक चर्चा हमेशा गरम रहती है कि वे ही नेता चुनाव जीतते हैं, जिनकी जेब में बहुत पैसा होता है और इस पैसे का ये लोग दुरुपयोग करते हैं. गरीब मतदाताओं को पैसे के जरिए लुभाने की कोशिश की जाती है, तो फिर सवाल उठता है कि आखिर अमीर प्रत्याशियों को पैसे बांटने से कैसे रोका जाए. 2023 के विधानसभा चुनाव आयोग ने इस मामले में बड़े पुख्ता प्रबंध किए हैं.
रोज का चुनावी आय और व्यय का ब्यौरा: चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के लिए 40 लाख की सीमा तय की है. कोई भी प्रत्याशी 40 लाख से ज्यादा का खर्च नहीं कर सकता है. वहीं दूसरी तरफ हर प्रत्याशी को अपने पास आने वाले और जाने वाले पैसे का रोज हिसाब देना है. इसके लिए बाकायदा फार्म बनाए गए हैं. जिन फार्मों को भर कर चुनाव आयोग में ऑनलाइन या भौतिक तरीके से जमा करना है.
एक्सपेंडिचर ऑब्जर्वर: अब सवाल यह खड़ा होता है कि यदि कोई प्रत्याशी फर्जी आवक और फर्जी खर्च दिखाकर खाता भी कर ले, तो फिर इसे कौन रखेगा. चुनाव आयोग ने इसका भी इंतजाम करवाया है. जिसके लिए एक्सपेंडिचर ऑब्जर्व्स आए हुए हैं और यह कोई सामान्य लोग नहीं है, बल्कि यह आईआरएस अधिकारी हैं. जबलपुर में हर एक अधिकारी के पास दो विधानसभाओं का जिम्मा सौंपा गया है. चुनाव आयोग ने प्रदेश के बाहर के अधिकारियों की ड्यूटी यहां लगाई है. एक्सपेंडिचर ऑब्जर्वर बहीखाता को देखेंगे और इनका भौतिक सत्यापन भी करेंगे. यदि बहीखाता के अनुसार क्षेत्र में कुछ अलग खर्च किया जाता है, तो प्रत्याशी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
हेल्पलाइन और चेकिंग पॉइंट: दूसरी तरफ चुनाव आयोग ने आम आदमी को भी यह सुविधा दी है कि वह यदि कहीं गैर कानूनी तरीके से पैसा बढ़ाते हुए या खर्च होते हुए देखा जाता है, तो वह भी हेल्पलाइन नंबर पर सूचना दे सकता है. जबलपुर में यह सूचना आयकर विभाग के पास पहुंचेगी. सूचना देने वाले की जानकारी गुप्त रखी जाएगी. वहीं दूसरी तरफ शहर में जगह-जगह कई चेकिंग पॉइंट बनाए गए हैं. इनमें एक पुलिस कर्मचारियों के साथ एक अधिकारी और कुछ दूसरे लोग भी हैं. जो संदिग्ध वाहनों और लोगों को रोक कर भी उनसे पूछताछ कर सकते हैं. पुलिस भी सार्वजनिक स्थल पर लगातार निगाहें रख रही है. आने जाने वाले लोगों से पूछताछ की जा रही है. उनके सामान की चेकिंग की जा रही है.
सोशल मीडिया का खर्च बनी समस्या: इस बार विधानसभा चुनाव का प्रचार सबसे ज्यादा सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहा है. सोशल मीडिया पर दो तरह के प्रचार चल रहे हैं. एक थर्ड पार्टी है और दूसरा जिसमें उम्मीदवार बाकायदा पैसा खर्च करके अपना ऐड चल रहा है, तो जिसमें पैसा खर्च किया जा रहा है. उसको तो आसानी से पकड़ा जा सकता है, लेकिन जो प्रचार थर्ड पार्टी के जरिए करवाया जा रहा है. उसको पकड़ना चुनाव आयोग के लिए कठिन है. एक एक्सपेंडिचर आब्जर्वर ने ऑफ द रिकॉर्ड हमें बताया कि "सोशल मीडिया पर जो खर्च किया जा रहा है. उस पर निगाह रखने के लिए अभी भी चर्चा जारी है."
खर्च की सीमा तय करना चुनाव आयोग का काम है. जरूरत से ज्यादा खर्च ना हो इस बात का ध्यान रखना भी चुनाव आयोग का काम है, लेकिन यहां जिम्मेदारी आम आदमी की भी बनती है. जो लोग पैसा लेते हैं, वह भी गैर कानूनी काम कर रहे हैं, तो बांटने वाला जितना दोषी है, उतना लेने वाला भी दोषी है. इसलिए थोड़ी जिम्मेदारी आम आदमी को भी निभानी चाहिए, ताकि भ्रष्ट नेताओं को सत्ता में पहुंचने से रोका जा सके.