जबलपुर। हाईकोर्ट ने पीएससी 2015 के नियमों में किए गए संशोधन को अवैधानिक करार दिया है. हाईकोर्ट ने 2015 के पूर्व नियम अनुसार पीएससी 2019 की रिजल्ट करने के निर्देश दिए थे. मुख्य परीक्षा में चयनित छात्रों ने इस मामले में इंटरविनर याचिका दायर कर कोर्ट से अपने उक्त आदेश पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है. याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस डीडी बसंल ने इंटरविनर याचिकाकर्ताओं को याचिका दायर करने का लोकस बताने के लिए समय प्रदान किया है. याचिका पर अगली सुनवाई 18 नवम्बर को निर्धारित की गयी है.
गौरतलब है कि किशोरी चौधरी ,डी एल चौधरी सहित 55 याचिकाकर्ताओं की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा नियम 2015 में 17 फरवरी 2020 को किये गये संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती दी गयी थी. याचिका में कहा गया था कि संशोधित नियम आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यार्थियों का अनारक्षित वर्ग में चयन से रोकते हैं. यह निर्णय इंद्रा साहनी केस के निर्णय से असंगत है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 तथा 21 का उल्लंघन करते हुए कम्युनल आरक्षण लागू करता है.
याचिकाओं में कहा गया था कि अनारक्षित वर्ग में सिर्फ अनारक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों को ही रखा गया जबकि पुराने नियमों के अनुसार अनारक्षित वर्ग में आरक्षित एवं अनारक्षित वर्ग के प्रतिभावान छात्रों का ही चयन किया जाता था. याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से न्यायालय को बताया गया था कि नियमों को निरस्त किये जाने के बावजूद भी मुख्य परीक्षा का रिजल्ट पुराने नियम के अनुसार ही जारी किया गया है. इसके अलावा पीएसपी द्वारा इंटरव्यू की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गयी है. जिससे आरक्षित वर्ग के सीट पर उसी वर्ग के छात्र का चयन हो सके. युगलपीठ ने 7 अप्रैल को जारी अपने आदेश में संशोधित नियमों को निरस्त करते हुए पीएससी 2015 के पूर्व नियम अनुसार रिजल्ट जारी करने के निर्देश दिये थे. हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भी पीएससी 2019 तथा पीएससी 2021 की मुख्य परीक्षा का रिजल्ट संशोधित नियम अनुसार जारी किये जाने को हाईकोर्ट में याचिका दायर की चुनौती दी गयी थी. याचिका पर शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान मुख्य परीक्षा में चयनित छात्रों की तरफ से इंटरविनर याचिका प्रस्तुत की गई. जिसमें पूर्व में पारित आदेश पर पुनर्विचार करने की प्रार्थना की गई है.
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SC के निर्देशों का हो पालन: बलात्कार,पास्को सहित अन्य मामले की सुनवाई के संबंध में सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा निर्भया मामले में पारित आदेश का पालन नहीं किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी है. याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय में ऐसे प्रकरणों की सुनवाई का प्रसारण यू-टयूब में किया जाता है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी गाईड लाईन के परिपालन के निर्देश पूर्व में जारी किये जा चूके हैं. याचिकाकर्ता को कोई आपत्ति है तो वह अभ्यावेदन पेश कर सकती है.
ग्वालियर की अधिवक्ता संगीता पचौरी की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि निर्भया तथा अर्पणा भट्ट के मामले में सर्वाेच्च न्यायालय ने आदेश जारी किए हैं कि बलात्कार, पॉस्को, छेडछाड सहित अन्य मामले में पीडितों का नाम व पहचान उजागर नहीं होना चाहिए. ऐसा करना धारा 354 डी के तहत अपराध माना गया है. याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय में ऐसे प्रकरणों की सुनवाई का प्रसारण यू-टयूब में किया जाता है. सुनवाई के दौरान जो टिप्पणी की जाती है उसकी रिकॉर्डिग कर उसे सोशल मीडिया में वायरल कर दिया जाता है. ऑन लाइन सुनवाई के कारण पीडिता की पहचान सामने आ जाती है. याचिका में पीआर व आईसी सेल ग्वालियर हाईकोर्ट, प्रमुख सचिव गृह विभाग,डीजीपी तथा एसपी ग्वालियर को अनावेदक बनाया गया है. युगलपीठ ने शुक्रवार को सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया.