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कोविड गाइडलाइन से गलत दिशा में जा रहा मरीजों का उपचार: डॉक्टर - Corona virus in Jabalpur

जबलपुर में पिछले तीस वर्षों से प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टर का दावा है कि सरकार की कोरोना गाइडलाइन गलत है. केंद्र सरकार भी गलत दिशा में काम कर रही है. कोरोना के इलाज के लिए दवाएं दी जा रही है वह भी गलत है. डॉक्टर ने कहा कि मुझे भी कोरोना हुआ था, लेकिन मैंने सरकार द्वारा जारी दवाओं को नहीं लिया बल्कि एंटीकोगुलेंट दवाओं से ठीक हो गया.

Dr. Pradeep Arora
डॉ. प्रदीप अरोड़ा
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Published : Apr 30, 2021, 11:15 AM IST

Updated : Apr 30, 2021, 1:39 PM IST

जबलपुर। बीते 30 सालों से जबलपुर में प्रैक्टिस कर रहे डॉ. प्रदीप अरोड़ा का दावा है कि कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते संक्रमण की एक बड़ी वजह सरकार की गाइडलाइन है. सरकार कोरोना मरीजों के इलाज के लिए एक गाइडलाइन जारी करती है. जिसमें उन दवाओं का जिक्र होता है, जो संक्रमित मरीजों को और संदिग्ध मरीजों को दी जाती हैं. लेकिन डॉक्टर प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि सरकार एंटीकोगुलेंट और एंटी इनफैमिलीट्री दवा इस समय पर नहीं दे रही है. इसकी वजह से कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजों की हालत खराब हो रही है.

डॉ. प्रदीप अरोड़ा
  • एंटीकोगुलेंट दवाओं से होगा ये फायदा

डॉ. प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि जब वायरस शरीर में फेफड़ों के जरिए पहुंचता है, तो शरीर वायरस के खिलाफ लड़ने की तैयारी करने लगता है, इसकी वजह से फेफड़ों में सूजन आ जाती है, इसी सूजन की वजह से फेफड़े में थक्का जमना शुरू हो जाता है. एंटीकोगुलेंट दवाइयां थक्का जमने की प्रक्रिया को रोकती है और इसकी वजह से फेफड़ों में सूजन नहीं आती. ऑक्सीजन शरीर को मिलती रहती है और यदि समय पर यह दवाएं शुरू कर दी जाएं, तो ज्यादातर मरीजों को अस्पताल ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यदि फेफड़े ऑक्सीजन लेते रहेंगे तो ना तो मरीज गंभीर होंगे और ना ही उनकी मौत होगी. इसी तरीके से एंटी इनफैमिलीट्री दवाओं के बारे में भी डॉ. अरोड़ा का कहना है कि इन दवाओं को देने के बारे में अलग-अलग राय हैं. वायरस के मामले में कुछ लोग तीसरे दिन और कुछ लोग सातवें दिन इन दवाओं को संक्रमित मरीज को देने की अनुशंसा करते हैं. इन दवाओं के असर से शरीर मजबूत होता है, फिर मरीज वायरस के खिलाफ लड़ पाता है.

  • सरकारी गाइडलाइन में नहीं है यह दवाएं

प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि गाइडलाइन में इस बात का जिक्र नहीं है कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों को यह दवाएं दी जाएं. जबकि कुछ डॉक्टर जो निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं. इन दवाओं का इस्तेमाल करके लोगों को ठीक कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने अपनी गाइडलाइन में इन दवाओं का जिक्र क्यों नहीं किया? यह एक सवाल खड़ा करता है. इसके पीछे सरकार की क्या मंशा है, सरकार सरकारी चिकित्सालयों में इसको उपलब्ध क्यों नहीं करवा रही है?

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  • निजी अस्पताल लालच के चलते नहीं करते प्रयोग

निजी अस्पताल में इन दवाओं को अपने मरीजों पर इस्तेमाल नहीं कर रही है, क्योंकि इससे मरीज जल्दी ठीक हो जाता है. अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती. इससे अस्पताल संचालकों का घाटा है, जबकि डॉक्टर इन दवाओं के बारे में जानते हैं. कुछ गंभीर मामलों में डॉक्टर इन दवाओं का प्रयोग करते हैं, इसलिए निजी अस्पतालों में मरीज ठीक भी हो रहे हैं.

  • संक्रमित मरीज के परिजनों के लिए संजीवनी

डॉ. प्रदीप अरोड़ा खुद कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे. उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के लिए इन्हीं दवाओं का इस्तेमाल किया. इसकी वजह से उनके परिवार के दूसरे सदस्य संक्रमण के बाद होने वाली दूसरी परेशानियों से बच गए. सभी लोग स्वस्थ हैं, जबकि ज्यादातर मामलों में ऐसा हो रहा है कि यदि परिवार का एक सदस्य वायरस की चपेट में आ जाता है, तो उससे दूसरे लोगों को भी वायरस का संक्रमण होने लगता है. डॉ. प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि यदि किसी के परिवार में कोई संक्रमित है, तो परिवार के दूसरे लोगों का सीबीसी टेस्ट करवाना चाहिए. जो बेहद सरल और सस्ता है. इससे शरीर में खून में होने वाले परिवर्तन की जानकारी मिल जाती है. जिससे यह तय हो जाता है कि शरीर किसी बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन से ग्रसित हो गया है. ऐसे हालात में यदि वह एंटीकवागलेट दवाई लेने लगता है, तो उसे संक्रमण होने के बाद भी गंभीर परिणाम नहीं भोगने पड़ेंगे.

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  • बेहद सस्ती है ये दवाएं

यह दोनों ही दवाएं बहुत सस्ती हैं. बाजार में इनकी मारामारी भी नहीं है, हालांकि इन्हें बिना चिकित्सकीय परामर्श के नहीं लेना चाहिए. लेकिन सरकार को इन्हें अपनी गाइडलाइन में शामिल करना चाहिए. डॉ. प्रदीप अरोड़ा का दावा है कि वे इस नुस्खे पर जरूरी शोध पत्र प्रेषित कर सकते हैं. इसका प्रयोग करने से ऑक्सीजन अस्पताल रेमडेसिविर सभी की जरूरतों को खत्म किया जा सकता है.

जबलपुर। बीते 30 सालों से जबलपुर में प्रैक्टिस कर रहे डॉ. प्रदीप अरोड़ा का दावा है कि कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते संक्रमण की एक बड़ी वजह सरकार की गाइडलाइन है. सरकार कोरोना मरीजों के इलाज के लिए एक गाइडलाइन जारी करती है. जिसमें उन दवाओं का जिक्र होता है, जो संक्रमित मरीजों को और संदिग्ध मरीजों को दी जाती हैं. लेकिन डॉक्टर प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि सरकार एंटीकोगुलेंट और एंटी इनफैमिलीट्री दवा इस समय पर नहीं दे रही है. इसकी वजह से कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजों की हालत खराब हो रही है.

डॉ. प्रदीप अरोड़ा
  • एंटीकोगुलेंट दवाओं से होगा ये फायदा

डॉ. प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि जब वायरस शरीर में फेफड़ों के जरिए पहुंचता है, तो शरीर वायरस के खिलाफ लड़ने की तैयारी करने लगता है, इसकी वजह से फेफड़ों में सूजन आ जाती है, इसी सूजन की वजह से फेफड़े में थक्का जमना शुरू हो जाता है. एंटीकोगुलेंट दवाइयां थक्का जमने की प्रक्रिया को रोकती है और इसकी वजह से फेफड़ों में सूजन नहीं आती. ऑक्सीजन शरीर को मिलती रहती है और यदि समय पर यह दवाएं शुरू कर दी जाएं, तो ज्यादातर मरीजों को अस्पताल ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यदि फेफड़े ऑक्सीजन लेते रहेंगे तो ना तो मरीज गंभीर होंगे और ना ही उनकी मौत होगी. इसी तरीके से एंटी इनफैमिलीट्री दवाओं के बारे में भी डॉ. अरोड़ा का कहना है कि इन दवाओं को देने के बारे में अलग-अलग राय हैं. वायरस के मामले में कुछ लोग तीसरे दिन और कुछ लोग सातवें दिन इन दवाओं को संक्रमित मरीज को देने की अनुशंसा करते हैं. इन दवाओं के असर से शरीर मजबूत होता है, फिर मरीज वायरस के खिलाफ लड़ पाता है.

  • सरकारी गाइडलाइन में नहीं है यह दवाएं

प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि गाइडलाइन में इस बात का जिक्र नहीं है कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों को यह दवाएं दी जाएं. जबकि कुछ डॉक्टर जो निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं. इन दवाओं का इस्तेमाल करके लोगों को ठीक कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने अपनी गाइडलाइन में इन दवाओं का जिक्र क्यों नहीं किया? यह एक सवाल खड़ा करता है. इसके पीछे सरकार की क्या मंशा है, सरकार सरकारी चिकित्सालयों में इसको उपलब्ध क्यों नहीं करवा रही है?

जबलपुर के तीन अस्पतालों को नोटिस, अनुमति के बावजूद नहीं किया कोरोना मरीजों का इलाज

  • निजी अस्पताल लालच के चलते नहीं करते प्रयोग

निजी अस्पताल में इन दवाओं को अपने मरीजों पर इस्तेमाल नहीं कर रही है, क्योंकि इससे मरीज जल्दी ठीक हो जाता है. अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती. इससे अस्पताल संचालकों का घाटा है, जबकि डॉक्टर इन दवाओं के बारे में जानते हैं. कुछ गंभीर मामलों में डॉक्टर इन दवाओं का प्रयोग करते हैं, इसलिए निजी अस्पतालों में मरीज ठीक भी हो रहे हैं.

  • संक्रमित मरीज के परिजनों के लिए संजीवनी

डॉ. प्रदीप अरोड़ा खुद कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे. उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों के लिए इन्हीं दवाओं का इस्तेमाल किया. इसकी वजह से उनके परिवार के दूसरे सदस्य संक्रमण के बाद होने वाली दूसरी परेशानियों से बच गए. सभी लोग स्वस्थ हैं, जबकि ज्यादातर मामलों में ऐसा हो रहा है कि यदि परिवार का एक सदस्य वायरस की चपेट में आ जाता है, तो उससे दूसरे लोगों को भी वायरस का संक्रमण होने लगता है. डॉ. प्रदीप अरोड़ा का कहना है कि यदि किसी के परिवार में कोई संक्रमित है, तो परिवार के दूसरे लोगों का सीबीसी टेस्ट करवाना चाहिए. जो बेहद सरल और सस्ता है. इससे शरीर में खून में होने वाले परिवर्तन की जानकारी मिल जाती है. जिससे यह तय हो जाता है कि शरीर किसी बैक्टीरियल या वायरल इन्फेक्शन से ग्रसित हो गया है. ऐसे हालात में यदि वह एंटीकवागलेट दवाई लेने लगता है, तो उसे संक्रमण होने के बाद भी गंभीर परिणाम नहीं भोगने पड़ेंगे.

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  • बेहद सस्ती है ये दवाएं

यह दोनों ही दवाएं बहुत सस्ती हैं. बाजार में इनकी मारामारी भी नहीं है, हालांकि इन्हें बिना चिकित्सकीय परामर्श के नहीं लेना चाहिए. लेकिन सरकार को इन्हें अपनी गाइडलाइन में शामिल करना चाहिए. डॉ. प्रदीप अरोड़ा का दावा है कि वे इस नुस्खे पर जरूरी शोध पत्र प्रेषित कर सकते हैं. इसका प्रयोग करने से ऑक्सीजन अस्पताल रेमडेसिविर सभी की जरूरतों को खत्म किया जा सकता है.

Last Updated : Apr 30, 2021, 1:39 PM IST
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