जबलपुर। भारत सरकार का खरपतवार अनुसंधान निदेशालय मैक्सिकन बीटल को राष्ट्रीय उद्यानों में छोड़ने को तैयार नहीं है. गाजर घास के उन्मूलन के लिए वैज्ञानिकों ने मैक्सिकन बीटल की खोज की थी, लेकिन भारत सरकार का ही दूसरा विभाग वैज्ञानिकों की इस खोज को मानने से इंकार कर रहा है.
मैक्सिकन बीटल की खोज: खरपतवार से सबसे ज्यादा परेशान किसान होता है. खेती में अनाज की फसल के बीच में कुछ अनचाहे पेड़-पौधे उग जाते हैं, इन्हें खरपतवार कहा जाता है और इन खरपतवारों की वजह से न केवल किसान को बल्कि देश को भी बहुत नुकसान उठाना पड़ता है. खरपतवारों की वजह से अनाज का उत्पादन प्रभावित होता है.
ज्यादा परेशानी की वजह गाजर घास है: गाजर घास बहुत तेजी से फैलती है. जबलपुर में भारत सरकार का खरपतवार अनुसंधान निदेशालय है. यह अपने आप में न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में ऐसा दूसरा निदेशालय है, जहां पर खरपतवार को खत्म करने के लिए शोध किया जाता है. इसी निदेशालय ने गाजर घास के उन्मूलन के लिए एक कीट को विकसित किया है. इसे मैक्सिकन बीटल के नाम से जाना जाता है. यह मैक्सिकन बीटल खरपतवार अनुसंधान निदेशालय ने मेक्सिको से बुलवाया है.
गाजर घास के पीछे की कहानी: प्राकृतिक रूप से गाजर घास मेक्सिको का ही पौधा है, जो भारत में लाल गेहूं के साथ आ गया था. 1955 में पहली बार पुणे में देखा गया था, लेकिन भारत के कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक सभी जगह पर गाजर घास नजर आती है. यूं तो गाजर घास कुछ केमिकल के इस्तेमाल से नष्ट की जा सकती है. लेकिन यदि कोई किसान अपने खेत की गाजर घास खत्म भी कर ले, तब भी वो उस से बच नहीं सकता. क्योंकि किसी खुले मैदान में, शहर की किसी कॉलोनी में, रेलवे और सड़क के किनारे कहीं भी गाजर घास के पौधे बच गए तो वे दोबारा से किसानों के खेत में पहुंच जाएंगे. इसलिए इस खरपतवार को नष्ट करने के लिए किसी प्राकृतिक उपाय का इंतजाम करना जरूरी था.
मैक्सिकन बीटल की खोज की गई: मैक्सिकन बीटल मेक्सिको में पाया जाता था और इसे भारत लाया गया. इस पर लगातार कई वर्षों तक रिसर्च की गई. यह गाजर घास के अलावा दूसरे किसी पेड़-पौधे जीव जंतु के लिए नुकसानदायक नहीं है और केवल गाजर घास को ही नष्ट करता है.
राष्ट्रीय उद्यान तैयार नहीं: गाजर घास का एक दूसरा बड़ा नुकसान जैव विविधता को भी उठाना पड़ रहा है और जहां भी गाजर घास होती है वहां दूसरे पेड़-पौधे नहीं पनप पाते. धीरे-धीरे गाजर घास जंगलों की तरफ भी बढ़ चली है. देश के कई बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में भी इसने अपने पैर पसार लिए हैं. लेकिन जब खरपतवार अनुसंधान निदेशालय से मैक्सिकन बीटल को इन राष्ट्रीय उद्यानों में छोड़ने के लिए अनुमति मांगी गई, तो राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन ने मना कर दिया. वह खरपतवार निदेशालय के वैज्ञानिकों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं और उन्हें इस बात का डर है कि कहीं ऐसा न हो कि मैक्सिकन बीटल जंगल के दूसरे पर पौधों को भी नष्ट कर दे.