जबलपुर। भारत के लगभग हर पैरेंट्स का सपना होता है कि उसका बच्चा पढ़-लिखकर लायक हो जाए. बहुत सारे बच्चे तो बचपन में ही कलेक्टर बनने के सपने देखते हैं. जबलपुर के मध्यमवर्गीय परिवार की स्वाति व उनके परिवार के परिवार के लोगों ने भी यही सपना देखा था. प्राइवेट नौकरी करके परिवार चलाने वाले धीरेंद्र शर्मा ने अपनी बेटी को कलेक्टर बनाने का ख्वाब संजोया था. हालांकि ये सपना उनकी हैसियत से बहुत बड़ा था. लेकिन जहां चाह है, वहां राह है. धीरेंद्र शर्मा और ममता शर्मा ने अपनी बेटी स्वाति को अपना खर्चा काटकर पाला. स्वाति का मोहल्ले के एक सामान्य इंग्लिश स्कूल रॉयल सीनियर सेकेंडरी में एडमिशन करवा दिया.
स्कूली जीवन में फीस भरने की दिक्कत : मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि की वजह से कई बार फीस भरने में लेटलतीफी भी हो जाती थी. इस बात की जानकारी स्वाति को भी होती थी लेकिन इसके बाद भी उन्होंने क्लास में हमेशा दूसरी और तीसरी पोजीशन बनाए रखी. स्वाति कहती हैं "स्कूल का कंप्टीशन उस समय की पढ़ाई के लिए ठीक था, लेकिन उसका बहुत फायदा यूपीएससी की तैयारी में नहीं मिला. लेकिन वह अपनी पढ़ाई के प्रति पूरी तरह से गंभीर थीं." स्वाति ने आईआईटी जेईई की परीक्षा दी लेकिन परिणाम उनके अनुकूल नहीं आया और वे पास नहीं हो सकी. इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जबलपुर के हितकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन ले लिया. हालांकि इंजीनियरिंग के सेकंड सेमेस्टर के बाद ही उन्हें लगने लगा था कि यह पढ़ाई उनके लिए नहीं है और उन्हें कहीं और जाना है.
ग्रेजुएशन के बाद तैयारी शुरू की : स्वाति ने ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद 2020 में यूपीएससी की तैयारी शुरू की. परिवार के लोगों ने जैसे-तैसे उनके दिल्ली में कोचिंग की फीस और रहने का इंतजाम किया. स्वाति के परिवार के लिए यह राशि भी बहुत ज्यादा था लेकिन इसका दबाव स्वाति की तैयारी पर नहीं दिखा. उन्होंने मन लगाकर कोचिंग की और यूपीएससी का पहला एंट्रेंस दिया. लेकिन किस्मत ने यहां उनका साथ नहीं दिया और वह पहले अटेम्प्ट में परीक्षा पास नहीं कर पाईं. स्वाति वापस जबलपुर लौट आईं और उन्होंने अपने घर से ही यूपीएससी की तैयारी को जारी रखने का फैसला लिया. इसके बाद उन्होंने अपने घर के ऊपर के एक कमरे को पढ़ाई का केंद्र बनाया. हालांकि उनके पास इंटरनेट की मोबाइल तक की फैसिलिटी थी. इसी से उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और मोबाइल पर न्यूज़ की वेबसाइट देखकर खुद को अपडेट रखना, एनसीईआरटी की पुस्तकों को बार-बार पढ़ना, इंटरव्यू का अभ्यास करना लगातार जारी रखा.
दो बार फेल होने के बाद भी नहीं हारी : स्वाति का कहना है "वह रोजाना 10 घंटे मेहनत करती थीं और लगातार चीजों को दोहराती थीं. ऐसा नहीं है कि उनके मन में कभी हीनभावना ना आई हो. कई बार स्वाति को लगा कि यह परीक्षा उनसे ना निकाली जाएगी, क्योंकि इसमें ज्यादातर बड़े संस्थानों के बड़ी परीक्षाओं को निकालने वाले उम्मीदवार ही पास होते हैं. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. इस बीच उन्होंने सृष्टि देशमुख को अपना आदर्श बना लिया. क्योंकि सृष्टि देशमुख की पारिवारिक पृष्ठभूमि और आर्थिक पृष्ठभूमि बहुत कुछ स्वाति शर्मा से मिलती-जुलती थी." पिछली बार जब स्वाति ने पूरी तैयारी के साथ यूपीएससी की परीक्षा दी, तब मात्र 12 नंबर से परीक्षा पास करने से चूक गईं. यहां सामान्य संकल्प शक्ति वाला व्यक्ति हार जाता. लेकिन यहीं पर स्वाति ने अपने लक्ष्य को और मजबूत किया और अपनी तैयारी फिर से शुरू की.
सोशल मीडिया से दूरी नहीं बनाई : ऐसा नहीं है कि स्वाति ने खुद को दुनिया से काट लिया हो. वह सोशल मीडिया पर भी एक्टिव रहती थीं. स्वाति का कहना है कि यूपीएससी की तैयारी में खुद को समाज से काट कर रखना सही नहीं है. क्योंकि अंततः आपको इसी समाज में आना होता है. इसलिए उन्होंने फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपनी सक्रियता बनाए रखी. लेकिन इस बात का ध्यान रखा कि इससे समय बर्बाद ना हो.अपनी पढ़ाई को उन्होंने यूट्यूब पर आने वाले लेक्चर से पूरा किया और पूरी तैयारी के साथ 2022 में जब उन्होंने यूपीएससी दी तो परिणाम सबके सामने है. आज देश में वह उन 15 स्टूडेंट्स में से हैं, जिन्होंने सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को पास किया है.
स्वाति से ये सीख लें : स्वाति शर्मा देश की उन लाखों छात्र-छात्राओं के लिए एक उदाहरण हैं, जो छोटी सी बात को अपने मन में बैठाकर हार जाते हैं. कोई इस बात से चिंतित है कि उसके पास पैसा नहीं है. किसी को लग रहा है कि वह अंग्रेजी अच्छे से नहीं बोल पाता. इसलिए परीक्षा पास नहीं कर पाएगा. किसी को अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर रंज होता है. कोई किस्मत का कोसता है. लेकिन स्वाति इन सभी का जवाब है. स्वाति को आदर्श मानकर छात्रों को अपने सवालों का जवाब खोजना चाहिए. ऊंची उड़ान के लिए तैयार होना चाहिए.