जबलपुर। आपातकाल लोकतंत्र का काला अध्याय माना जाता है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद पर आपत्ति आते हुए देख आपातकाल की घोषणा कर दी थी, मीसा कानून लगा दिया गया था. आपातकाल की वजह से देशभर में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को जबरन रातों- रात जेल में डाल दिया गया था. जबलपुर में भी बड़ी तादाद में गिरफ्तारियां हुई थी. इन्हीं में से एक मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री अजय विश्नोई भी हैं.
अजय विश्नोई उन दिनों जनसंघ का काम किया करते थे. विश्नोई बताते हैं कि, उन्हें बिना किसी पूर्व जानकारी के अचानक पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया. बाद में उन्हें इस बात की जानकारी लगी कि, जेल में जिन लोगों को बंद किया गया था, वो सभी के सभी राजनीतिक लोग या पत्रकार थे, इनके साथ अपराधियों जैसा सलूक किया जा रहा था.
अजय विश्नोई बताते हैं कि, उन्हें रोज अलग- अलग बैरक में रखा जाता था. कुछ दिनों जबलपुर से बाहर भी भेजा गया और उसके बाद राजस्थान की जेल में डाल दिया गया. दरअसल इंदिरा गांधी खुद समस्या में फंस गई थीं और उन्होंने अपनी समस्या को खत्म करने के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी.
लोकतंत्र में विपक्ष और निष्पक्ष आवाज को भी उतनी ही तरजीह दी जाती है, जितनी तरजीह पक्ष में बैठे लोगों को दी जाती है. विरोध करना लोकतंत्र का हिस्सा माना जाता है, लेकिन यदि विरोध की आवाज पूरी तरह से खत्म कर दी जाए, तो इससे बुरा लोकतंत्र में कुछ नहीं हो सकता. इसलिए आपातकाल को लोकतंत्र का काला अध्याय माना जाता है.
अजय विश्नोई ने कहा कि, 'आपातकाल के दौरान जिन लोगों को भी जेल हुई थी. उनमें से ज्यादातर लोग बाद में सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे. कांग्रेस इंदिरा गांधी के एक निर्णय की वजह से अब तक परेशान है और मीसाबंदी के अपने संघर्ष को जिंदा रखते हुए आज कांग्रेस को सत्ता से हटा चुके हैं. राजनीति में एक छोटी सी घटना भी कैसे बड़े-बड़े परिवर्तन लाती है, इसका जीता जागता उदाहरण है'.