जबलपुर। दिवाली पर मां लक्ष्मी की विशेष आराधना होती है. जबलपुर में 1100 वर्ष पुराने महालक्ष्मी मंदिर में दीपावली के दिन 24 घंटे की विशेष पूजा-अर्चना होती है. यहां मां का ऐसा अद्भुत रूप है जो 24 घंटे में तीन बार रूप बदलती हैं. सुबह सफेद, दोपहर में पीली तो शाम को नीली हो जाती हैं. सूर्य की पहली किरण मां के चरणों को छूती है. कहा जाता है कि इस मंदिर में सात शुक्रवार को सच्चे मन से कोई आता है तो उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है. माना ये भी जाता है कि इस मंदिर में तांत्रिक साधना करने लोग पहुंचते हैं. इस प्राचीन मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब ने खंडित करने की कोशिश की थी, लेकिन कहा जाता है कि मां लक्ष्मी की प्रतिमा को वो छू भी नहीं पाया था. (diwali 2022)
पचमठा नाम से भी प्रसिद्ध: जबलपुर शहर के अधारताल तालाब के पास स्थित यह मंदिर पचमठा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. 5 गुंबद की रचना के आधार पर इस मंदिर को पचमठा माता मंदिर कहा जाता है. यह वर्गाकार मंदिर अधिष्ठान पर निर्मित है, यानी कि 8 स्तंभों पर यह पूरा मंदिर टिका हुआ है. कहा यह जाता है कि यह मंदिर अष्ट पलकों पर यानी कमल की आकृति पर बना हुआ है. गर्भ ग्रह के चारों ओर परिक्रमा का पथ बना हुआ है, और यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसकी चारों दिशाओं में मुख्य द्वार बने हुए हैं. मंदिर के अंदर श्री यंत्र की आकृति स्पष्ट नजर आती है. इस मंदिर का निर्माण श्री यंत्र के आधार पर किया गया है. 12 राशियों को प्रदर्शित करते हुए स्तंभ बनाए गए हैं, साथ ही नौ ग्रह भी विराजमान है. (diwali 2022)
कंगाल भी मां की कृपा से धनवान बन जाते हैं: मां की महिमा के बारे में लोगों में ऐसी श्रद्धा है कि यहां कंगाल भी मां की कृपा से धनवान बन जाते हैं. मुख्य द्वार के एक ओर अनुचर और भक्तों के साथ गंगा तो दूसरी ओर यमुना का चिन्ह है, जो गजपीठ पर खड़ी हैं. इस मंदिर ने भी मुगल शासक आरंगजेब की क्रूरता झेली है. हालांकि मंदिर के अंदर की मां लक्ष्मी की मूर्ति को वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया. मंदिर के चारों ओर योगनियां बनी हैं, जिसे औरंगजेब ने खंडित कर दिया. बताया जाता है कि मंदिर के नीचे अपार धन संपदा है जिसकी रक्षा विषैले सर्प करते हैं, अधारताल तालाब की गहराई में एक मंदिर है इस मंदिर के नीचे एक तलघर है, लेकिन इसे सैकड़ों साल पहले ही उसे बंद किया जा चुका है. (jabalpur mahalakshmi temple)
जहरीले सर्प करते हैं यहां धन की रक्षा: पौराणिक महत्व के मुताबिक महालक्ष्मी के इस मंदिर के नीचे खजाना छुपा हुआ है, जिसकी रक्षा कर रहे हैं कई विषैले सर्प. मंदिर के पुजारी बताते हैं, इस मंदिर में कई सालों पहले जहरीले सर्प नजर आते थे. आज भी मंदिर के आसपास सैकड़ों की तादात में सांप दिखते हैं. मान्यता यह भी है कि जहां पर धन होता है वहीं उसकी रक्षा के लिए जहरीले सर्प तैनात होते हैं. एक बार जब मंदिर क्षतिग्रस्त हुआ तो निर्माण कार्य के दौरानविभिन्न प्रजाति के सर्प यहां देखे गए थे.
तंत्र साधना का मंदिर: मान्यता तो यह भी है कि महालक्ष्मी का यह मंदिर तंत्र साधना के लिए सबसे उचित स्थान है. इस मंदिर में अक्सर सिद्धियों को हासिल करने के लिए बहुत सारे लोग तंत्र साधनाएं करते हैं. शासन प्रशासन की सख्ती की वजह से अब मंदिर के अंदर तो लोग तंत्र साधना नहीं कर पाते, लेकिन आसपास स्थित जंगल में लोग तंत्र साधना करते नजर आ जाते हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं, यह मंदिर अलौकिक शक्तियों से घिरा हुआ है. यहां सकारात्मक ऊर्जा बस्ती है. मंदिर के गर्भ गृह में जाते ही एक अद्भुत ऊर्जा का अनुभव होता है. (jabalpur lakshmi maa temple worship 24 hours)
दीवाली पर 24 घंटे होती है पूजा: महालक्ष्मी का मंदिर इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहां स्थित मां भगवती की प्रतिमा बाकी प्रतिमाओं से बेहद अलग है. मंदिर के पुजारी बताते हैं, यहां महालक्ष्मी स्वयं विराजमान हैं. महालक्ष्मी के मंदिर में वैसे तो सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन शुक्रवार के दिन भक्तों के लिए विशेष दिन माना जाता है. इस मंदिर में हर शुक्रवार हजारों की तादात में भक्त आकर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, लेकिन दीप उत्सव में 5 दिनों तक मां भगवती का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है. मंदिर के पुजारी बताते हैं, दीपावली के दिन मां भगवती की 24 घंटे पूजा होती है. पूरी रात मंदिर खुला होता है और हर पहर पर महालक्ष्मी की पूजन अर्चन किया जाता है. सुबह 4:00 बजे महालक्ष्मी का पंचगव्य से अभिषेक किया जाता है, और फिर श्रृंगार किया जाता है. (mother lakshmi changes form three times)
महालक्ष्मी का चमत्कारी मंदिर: इस मंदिर में आने वाले भक्तों का भी कहना है कि महालक्ष्मी का यह मंदिर चमत्कारी मंदिर है. यहां आकर उनकी हर मनोकामना पूरी होती है. वैसे तो हर शुक्रवार यहां पर मां भगवती की विशेष आराधना की जाती है, लेकिन दीपावली की पूरी रात यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, क्योंकि महालक्ष्मी के मंदिर में दीप जलाने की परंपरा है. मान्यता है कि अमावस की रात को मां भगवती के चरणों पर दीपक जलाने से धन धन्य की पूर्ति होती है.