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श्रद्धालुओं स्नान के बाद की गई घाटों की सफाई, निकाला गया तीन टन कचरा

जबलपुर के ग्वारीघाट पर श्रद्धालुओं के स्नान के बाद सफाई की गई, घाटों की सफाई के बाद कुल तीन टन कचरा निकाला गया.

कार्तिक पूर्णिमा
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Published : Nov 13, 2019, 12:03 AM IST

जबलपुर। कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर नर्मदा के पवित्र ग्वारीघाट पर हजारों लोगों ने स्नान और पूजा पाठ किया. लेकिन लोग अपने पीछे हजारों किलो कचरा छोड़कर चले गए. हर पूर्णिमा और अमावस्या पर नर्मदा के ग्वारीघाट से 3 टन कचरा निकलता है. लोग पूजा पाठ करने के बाद घाटों पर कूड़ा- कचरा छोड़कर चले जाते हैं. ऐसे में सफाई करने वालों ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि पूजा की वो पद्धति अपनाएं गंदगी कम हो.

ग्वारीघाट से निकला तीन टन कचरा

ग्वारीघाट जबलपुर का एक पवित्र घाट है, लेकिन इसकी पवित्रता बनाए रखना बहुत कठिन काम है. सुबह 4:00 बजे से लक्ष्मण और सुषमा की टीम अपने 30 साथियों के साथ पूरे 18 घंटे काम करती है, तब जाकर ग्वारीघाट पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को घाट पवित्र मिल पाता है.

लक्ष्मण और सुषमा का कहना है कि वो तो अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं, लेकिन लोगों में नदी की पवित्रता और साफ- सफाई को लेकर बिल्कुल भी जागरूकता नहीं है. लोग घरों से पूजा पाठ का बचा हुआ सामान लेकर आते हैं और यहीं छोड़ कर चले जाते हैं.

लोग पूजा के नाम पर फूल नारियल अगरबत्ती घाट से खरीदते हैं और इनको नदी की पूजा में इस्तेमाल करते हैं. ये सामग्री बाद में लोगों के पैरों के नीचे आती है, जिसे लक्ष्मण और सुषमा की टीम डंपर तक पहुंचाती है.

कई सामाजिक संगठन ग्वारीघाट में सफाई रखने के लिए अभियान चलाते हैं, लेकिन लोगों की पूजा पद्धति और पुरानी मान्यताओं के चलते लोग गंदगी फैलाने से बाज नहीं आते. एक समाजसेवी संगठन के कार्यकर्ता सुजीत अवस्थी कहते हैं कि, जब तक इन पूजा पद्धतियों को नदियों के स्वास्थ्य के अनुसार नहीं बदला जाता. तब तक नदियों और उनके घाटों पर गंदगी होती रहेंगी.

जबलपुर। कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर नर्मदा के पवित्र ग्वारीघाट पर हजारों लोगों ने स्नान और पूजा पाठ किया. लेकिन लोग अपने पीछे हजारों किलो कचरा छोड़कर चले गए. हर पूर्णिमा और अमावस्या पर नर्मदा के ग्वारीघाट से 3 टन कचरा निकलता है. लोग पूजा पाठ करने के बाद घाटों पर कूड़ा- कचरा छोड़कर चले जाते हैं. ऐसे में सफाई करने वालों ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि पूजा की वो पद्धति अपनाएं गंदगी कम हो.

ग्वारीघाट से निकला तीन टन कचरा

ग्वारीघाट जबलपुर का एक पवित्र घाट है, लेकिन इसकी पवित्रता बनाए रखना बहुत कठिन काम है. सुबह 4:00 बजे से लक्ष्मण और सुषमा की टीम अपने 30 साथियों के साथ पूरे 18 घंटे काम करती है, तब जाकर ग्वारीघाट पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को घाट पवित्र मिल पाता है.

लक्ष्मण और सुषमा का कहना है कि वो तो अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं, लेकिन लोगों में नदी की पवित्रता और साफ- सफाई को लेकर बिल्कुल भी जागरूकता नहीं है. लोग घरों से पूजा पाठ का बचा हुआ सामान लेकर आते हैं और यहीं छोड़ कर चले जाते हैं.

लोग पूजा के नाम पर फूल नारियल अगरबत्ती घाट से खरीदते हैं और इनको नदी की पूजा में इस्तेमाल करते हैं. ये सामग्री बाद में लोगों के पैरों के नीचे आती है, जिसे लक्ष्मण और सुषमा की टीम डंपर तक पहुंचाती है.

कई सामाजिक संगठन ग्वारीघाट में सफाई रखने के लिए अभियान चलाते हैं, लेकिन लोगों की पूजा पद्धति और पुरानी मान्यताओं के चलते लोग गंदगी फैलाने से बाज नहीं आते. एक समाजसेवी संगठन के कार्यकर्ता सुजीत अवस्थी कहते हैं कि, जब तक इन पूजा पद्धतियों को नदियों के स्वास्थ्य के अनुसार नहीं बदला जाता. तब तक नदियों और उनके घाटों पर गंदगी होती रहेंगी.

Intro:हर पूर्णिमा और अमावस्या पर नर्मदा के ग्वारीघाट में निकलता है 3 टन कचरा पूजा पाठ के नाम पर गंदगी छोड़कर जाते हैं श्रद्धालु सफाई करने वाले लोगों की अपील की पूजा की पद्धति बदल लो


Body:जबलपुर कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर नर्मदा के पवित्र घाट ग्वारीघाट पर हजारों लोगों ने स्नान किया पूजा पाठ किया और वे अपने पीछे हजारों किलो कचरा छोड़कर चले गए

कार्तिक पूर्णिमा जैसे मौके हर 15 दिन में ग्वारीघाट मैं देखने को मिलते हैं ग्वारीघाट जबलपुर का एक पवित्र घाट है लेकिन इसकी पवित्रता बनाए रखना बहुत कठिन काम है सुबह 4:00 बजे से लक्ष्मण और सुषमा की टीम अपने 30 साथियों के साथ पूरे 18 घंटे काम करती है तब जाकर ग्वारीघाट पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को पवित्र घाट पवित्र मिल पाता है यदि लक्ष्मण और सुषमा अपना काम समय पर ना करें तो पूरा घाट गंदगी से पट जाएगा और लोगों को नर्मदा के इस घाट पर कहीं पवित्रता नजर नहीं आए
लक्ष्मण और सुषमा का कहना है कि वह तो अपना काम इमानदारी से कर रहे हैं लेकिन लोगों में नदी की पवित्रता और साफ-सफाई को लेकर बिल्कुल भी जागरूकता नहीं है लोग घरों से पूजा पाठ का बचा हुआ सामान लेकर आते हैं और पूजा के नाम पर फूल नारियल अगरबत्ती घाट से खरीदते हैं और इनको यही छोड़ कर चले जाते हैं नदी की पूजा में इस्तेमाल की गई है सामग्री लोगों के पैरों के नीचे आती है लक्ष्मण और सुषमा की टीम इसे उठाकर डंपर तक पहुंचाती है

ऐसा नहीं है कि लोगों से गंदगी ना करने की अपील ना की जाती हो कई सामाजिक संगठन ग्वारीघाट में सफाई रखने के लिए अभियान चलाते हैं लेकिन लोगों की पूजा पद्धति और पुरानी मान्यताओं के चलते लोग गंदगी करने से बाज नहीं आते जब तक इन पूजा पद्धतियों को नदियों के स्वास्थ्य के अनुसार नहीं बदला जाता तब तक नदियों और उनके घाटों पर गंदगी होती रहेगी ऐसे ही एक समाजसेवी संगठन के कार्यकर्ता कहते हैं कि लोगों को पूजा पाठ का बचा हुआ सामान नदी में फेंकने की बजाय पास में रखे कंटेनर रो में या अपने साथ घर ले जाना चाहिए तब जाकर नर्मदा की सही पूजा हो पाएगी


Conclusion:लक्ष्मण और सुषमा जैसे लोग कभी खबर का हिस्सा नहीं बनते ना ही इन्हें कोई धन्यवाद देने आता है शायद नदी इन्हें धन्यवाद देती हो क्योंकि नदी की पवित्रता इन्हीं जैसे लोगों की वजह से बची रहती है वरना नर्मदा कब नर्मदा रह पाती वह यमुना जैसे नाली में परिवर्तित हो जाती है
बाइट लक्ष्मण
बाइट सुषमा
बाइट सुजीत अवस्थी
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