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1 करोड़ 90 लाख की लागत से बना अधूरा पुल, अधिकारी दे रहे परमिशन का हवाला

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Published : Jul 25, 2020, 2:52 PM IST

Updated : Jul 25, 2020, 3:26 PM IST

पनागर विधानसभा अंतर्गत करोड़ों रूपये की लागत से बन रहा पुल पांच साल से अधर में लटका हुआ है और अब पांच साल बीत जाने के बाद भी अधिकारी परमिशन का हवाला दे रहे हैं.

Bridge not built for five years
पांच साल से नहीं बना पुल

जबलपुर। पनागर विधानसभा अंतर्गत करोड़ों रूपये की लागत से बन रहा पुल पांच साल से अधर में लटका हुआ है. जबकि ये पुल 50 गांव को जोड़ने के लिए बनवाया जा रहा था. लेकिन पिछले पांच साल बीत जाने के बाद भी परमिशन को लेकर पुल हवा में हिचकोले खा रहा है. जिसके चलते ग्रामीण नदी के ऊपर बने टूटे पुल पर ही जान जोखिम में डालकर आवागमन करने को मजबूर हैं.

पांच साल से नहीं बना पुल

जान जोखिम में डालकर टूटे पुल से गुजरने को मजबूर

पनागर विधानसभा के अंतर्गत आने वाला ग्राम रिठौरी से होते हुए परियट नदी निकलती है. जहा सालों पुराना नदी के ऊपर जबलपुर शहर को जोड़ने वाला क्षतिग्रस्त पुल बना हुआ है. ग्रामीणों का कहना है कि थोड़ी सी बारिश होने से ही टूटा पुल नदी में डूब जाता है जिसके चलते गांव का संपर्क शहर से टूट जाता है और रास्ते में निकलने में बेहद परेशानी होती है.

Bridge not built for five years
अधर में लटका पुल का निर्माण कार्य

आवागमन में होती है परेशानी

ग्रामीणों ने बताया कि बारिश होने पर इस पुल से कोई एंबुलेंस भी नहीं गुजर सकती है. जिसकी वजह से मजबूर ग्रामीणों को 20 से 25 किलोमीटर का चक्कर लगाकर शहर जाना पड़ता है. ग्रामीणों को आज भी नए पुल के चालू होने का इंतजार है जिससे उन्हें सालों से चल रही परेशानी से निजात मिल सके.

सांसद राकेश सिंह ने किया था भूमिपूजन

2015 में ग्रामीण विकास विभाग परिसर द्वारा नए पुल के निर्माण में एक करोड़ 90 लाख की राशि स्वीकृति की गई थी, ग्रामीणों की परेशानी को देखते हुए पनागर विधायक इंदु तिवारी और लोकसभा सांसद राकेश सिंह के प्रयासों के चलते नए पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया था, लेकिन इसकी घटिया गुणवत्ता के चलते इसका एक हिस्सा ढह गया था, जिसमें काम कर रहे दो मजदूरों को गंभीर चोट आई थी, जैसे तैसे 2017 में पुल का निर्माण तो हो गया, लेकिन उसके बाद अचानक जब दोनों तरफ पुल के रैम्प उतारने की बारी आई तो काम रोक दिया गया.

परमिशन का दे रहे हवाला

बताया जाता है कि जिस जगह पुल निर्माण किया गया है, उसके दूसरी तरफ आयुध निर्माणी खमरिया फैक्ट्री की जमीन है. जिसके तहत परमिशन न दिए जाने के कारण पांच सालों से पुल का निर्माण कार्य बीच भवर में लटका हुआ है. जिसकी वजह से आज भी ग्रामीणों को क्षतिग्रस्त पुल से आवागमन करना पड़ता है.

इस संबंध में जब ग्रामीण विकास विभाग परिषद के ईजीडी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि 2015 में पुल का निर्माण शुरू किया गया था और पुल बनकर तैयार भी है लेकिन एक तरफ आयुध निर्माणी की जमीन होने के चलते अभी तक परमिशन नहीं मिल पाई है जिसके चलते पुल से नीचे उतरने के लिए रैंप का निर्माण नहीं हो पाया है. कई बार फैक्ट्री के माह प्रबंधक से चर्चा हुई है, उनका कहना है कि परमिशन के लिए पेपर हेडक्वार्टर कोलकत्ता भेज दिए गए हैं. वहीं सवाल ये उठता है जब पुल निर्माण की परमिशन ही नहीं थी तो एक करोड़ 90 लाख रूपये की राशि को क्यों बर्बाद किया गया है.

जबलपुर। पनागर विधानसभा अंतर्गत करोड़ों रूपये की लागत से बन रहा पुल पांच साल से अधर में लटका हुआ है. जबकि ये पुल 50 गांव को जोड़ने के लिए बनवाया जा रहा था. लेकिन पिछले पांच साल बीत जाने के बाद भी परमिशन को लेकर पुल हवा में हिचकोले खा रहा है. जिसके चलते ग्रामीण नदी के ऊपर बने टूटे पुल पर ही जान जोखिम में डालकर आवागमन करने को मजबूर हैं.

पांच साल से नहीं बना पुल

जान जोखिम में डालकर टूटे पुल से गुजरने को मजबूर

पनागर विधानसभा के अंतर्गत आने वाला ग्राम रिठौरी से होते हुए परियट नदी निकलती है. जहा सालों पुराना नदी के ऊपर जबलपुर शहर को जोड़ने वाला क्षतिग्रस्त पुल बना हुआ है. ग्रामीणों का कहना है कि थोड़ी सी बारिश होने से ही टूटा पुल नदी में डूब जाता है जिसके चलते गांव का संपर्क शहर से टूट जाता है और रास्ते में निकलने में बेहद परेशानी होती है.

Bridge not built for five years
अधर में लटका पुल का निर्माण कार्य

आवागमन में होती है परेशानी

ग्रामीणों ने बताया कि बारिश होने पर इस पुल से कोई एंबुलेंस भी नहीं गुजर सकती है. जिसकी वजह से मजबूर ग्रामीणों को 20 से 25 किलोमीटर का चक्कर लगाकर शहर जाना पड़ता है. ग्रामीणों को आज भी नए पुल के चालू होने का इंतजार है जिससे उन्हें सालों से चल रही परेशानी से निजात मिल सके.

सांसद राकेश सिंह ने किया था भूमिपूजन

2015 में ग्रामीण विकास विभाग परिसर द्वारा नए पुल के निर्माण में एक करोड़ 90 लाख की राशि स्वीकृति की गई थी, ग्रामीणों की परेशानी को देखते हुए पनागर विधायक इंदु तिवारी और लोकसभा सांसद राकेश सिंह के प्रयासों के चलते नए पुल का निर्माण कार्य शुरू किया गया था, लेकिन इसकी घटिया गुणवत्ता के चलते इसका एक हिस्सा ढह गया था, जिसमें काम कर रहे दो मजदूरों को गंभीर चोट आई थी, जैसे तैसे 2017 में पुल का निर्माण तो हो गया, लेकिन उसके बाद अचानक जब दोनों तरफ पुल के रैम्प उतारने की बारी आई तो काम रोक दिया गया.

परमिशन का दे रहे हवाला

बताया जाता है कि जिस जगह पुल निर्माण किया गया है, उसके दूसरी तरफ आयुध निर्माणी खमरिया फैक्ट्री की जमीन है. जिसके तहत परमिशन न दिए जाने के कारण पांच सालों से पुल का निर्माण कार्य बीच भवर में लटका हुआ है. जिसकी वजह से आज भी ग्रामीणों को क्षतिग्रस्त पुल से आवागमन करना पड़ता है.

इस संबंध में जब ग्रामीण विकास विभाग परिषद के ईजीडी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि 2015 में पुल का निर्माण शुरू किया गया था और पुल बनकर तैयार भी है लेकिन एक तरफ आयुध निर्माणी की जमीन होने के चलते अभी तक परमिशन नहीं मिल पाई है जिसके चलते पुल से नीचे उतरने के लिए रैंप का निर्माण नहीं हो पाया है. कई बार फैक्ट्री के माह प्रबंधक से चर्चा हुई है, उनका कहना है कि परमिशन के लिए पेपर हेडक्वार्टर कोलकत्ता भेज दिए गए हैं. वहीं सवाल ये उठता है जब पुल निर्माण की परमिशन ही नहीं थी तो एक करोड़ 90 लाख रूपये की राशि को क्यों बर्बाद किया गया है.

Last Updated : Jul 25, 2020, 3:26 PM IST
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