जबलपुर। शहर का प्रजापति समाज कलाकारों की बस्ती है. जबलपुर का प्रजापति समाज मिट्टी की मूर्तियां बनाने में महारत रखता है. शहर से लगभग आधे मध्य प्रदेश और यहां तक कि नागपुर और रायपुर भी मूर्तियां जाती हैं. एक अनुमान के तहत लगभग 8 से 10 हजार कलाकार हैं, जो मिट्टी की मूर्ति बनाने में माहिर हैं.
मिट्टी की मूर्ति बनाने के लिए पहले लकड़ी का ढांचा बनाया जाता है. ढांचे में धान का भूसा भरा जाता है. ऊपर से जूट की बोरियों से सिलाई की जाती है और एक आकार बना दिया जाता है. इसके बाद पहले से तैयार मिट्टी को धीरे-धीरे करके पूरी मूर्ति पर लगाया जाता है. इस तरीके से एक बड़ी मूर्ति आकार लेती है. छोटी मूर्तियों में भी सांचे में मिट्टी को भरकर मूर्तियां बनाई जाती हैं. कलाकारों का कहना है कि वो किसी भी ऐसे सामान का इस्तेमाल नहीं करते, जो विसर्जन के बाद नदी में गंदगी करें. हालांकि जबलपुर में मूर्तियों का विसर्जन कुंड में किया जाता है, लेकिन फिर भी जबलपुर के कलाकार प्लास्टर ऑफ पेरिस का इस्तेमाल नहीं करते.
एक अनुमान के तहत जबलपुर में ही एक लाख से ज्यादा घरों में गणेश प्रतिमाओं की स्थापना की जाएगी. लगभग इतनी ही तादाद में जबलपुर से गणेश प्रतिमाएं बाहर भी जाएंगी. इससे ये साफ है कि सिर्फ गणेश प्रतिमाओं के जरिए जबलपुर शहर को करोड़ों रुपए की आमदनी होती है और हजारों परिवार पल रहे हैं. गणेश के बाद दुर्गा प्रतिमाएं बनाकर भी ये परिवार अपने सालभर की आमदनी का इंतजाम करेंगे, लेकिन इन कलाकारों को इस बात का मलाल है कि इन्हें वो पहचान नहीं मिली है, जो प्रदेश या देश के दूसरे कलाकारों को मिली हुई है, इसलिए अब मिट्टी की मूर्तियां बनाने वाले इन कलाकारों को सरकार से मदद की दरकार है.
इन कलाकारों के अलावा इस कारोबार में कई व्यापारी भी हैं, जो जबलपुर के बाहर से प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां लाए हैं, हालांकि इन्हें चोरी-छिपे तरीके से बेचा जा रहा है. बाजार में लगी दुकानों में प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां नजर नहीं आ रही हैं.