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कोरोना पॉजिटिव महिलाओं के साथ रहे 6 शिशु, फिर भी नहीं हुए संक्रमित, कैसे हुआ ये चमत्कार

जबलपुर मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में 6 शिशु अपनी-अपनी कोरोना पॉजिटिव माताओं के साथ रहे. बावजूद ये शिशु संक्रमण की चपेट में नहीं आए.

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फाइल फोटो
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Published : Jul 4, 2020, 11:02 PM IST

जबलपुर। आइसोलेशन वार्ड में एक चमत्कार देखने को मिला है. जिसमें कोरोना संक्रमित महिलाओं के साथ उनके बच्चे साथ रहे, लेकिन उन्हें संक्रमण छू नहीं पाया. बता दें महिलाओं की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर उन्हें मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया था. इन महिलाओं के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी थे. बच्चे अपनी-अपनी मां के साथ 14 दिनों तक रहे और बिना संक्रमण के चपेट में आए पूरी तरह स्वस्थ लौटे हैं. जिसका पूरा श्रेय अस्पताल के स्टाफ और डॉक्टर्स को जाता है.

डॉ संजय भारती से ईटीवी भारत की खास बातचीत

मेडिकल कॉलेज में आइसोलेशन वार्ड के प्रभारी डॉ संजय भारती बताते हैं कि इस बात का खास ख्याल रखा था कि जिन बच्चों को मां के साथ रखा गया है, जब तक मां में कोरोना वायरस का संक्रमण है, तब तक हर तरह की सावधानी बरती जाए. मां बच्चों को फीडिंग करवाती हैं तो उससे पहले सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें. इसके बाद ही बच्चे को छूने की इजाजत हो. आइसोलेशन वार्ड में मां और बेटों को अलग से रखा गया था. ताकि दूसरे मरीजों का प्रभाव इन बच्चों पर न पड़ सके.

डॉ संजय भारती ने बताया कि एक संभावना ये भी है कि मां के दूध से बच्चों में एंटीबॉडी भी डेवलप होते हैं. जो उन्हें हर रोग से लड़ने की ताकत देते हैं. बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत हो जाता है. इसलिए अनजाने में भी अगर कहीं वायरस पहुंचा भी होगा तो इन बच्चों को नुकसान नहीं पहुंचा पाया.

दूसरा सवाल ये भी खड़ा होता है कि जब मां के शरीर में वायरस था तो वह बच्चों को फीडिंग के दौरान प्रभावित क्यों नहीं कर पाया. इस पर डॉ संजय भारती बताते हैं कि वायरस खून के जरिए नहीं फैलता है, तो दूध के जरिए फैलने की तो संभावना ही नहीं है.

इस तरह मां के दूध और डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ की सावधानी ने बच्चों को कोरोना संक्रमण से बचा लिया. इससे पता चलता है कि अगर पूरी सावधानी बरती जाए तो संक्रमण से बचा जा सकता है.

जबलपुर। आइसोलेशन वार्ड में एक चमत्कार देखने को मिला है. जिसमें कोरोना संक्रमित महिलाओं के साथ उनके बच्चे साथ रहे, लेकिन उन्हें संक्रमण छू नहीं पाया. बता दें महिलाओं की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर उन्हें मेडिकल कॉलेज के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया था. इन महिलाओं के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी थे. बच्चे अपनी-अपनी मां के साथ 14 दिनों तक रहे और बिना संक्रमण के चपेट में आए पूरी तरह स्वस्थ लौटे हैं. जिसका पूरा श्रेय अस्पताल के स्टाफ और डॉक्टर्स को जाता है.

डॉ संजय भारती से ईटीवी भारत की खास बातचीत

मेडिकल कॉलेज में आइसोलेशन वार्ड के प्रभारी डॉ संजय भारती बताते हैं कि इस बात का खास ख्याल रखा था कि जिन बच्चों को मां के साथ रखा गया है, जब तक मां में कोरोना वायरस का संक्रमण है, तब तक हर तरह की सावधानी बरती जाए. मां बच्चों को फीडिंग करवाती हैं तो उससे पहले सेनिटाइजर का इस्तेमाल करें. इसके बाद ही बच्चे को छूने की इजाजत हो. आइसोलेशन वार्ड में मां और बेटों को अलग से रखा गया था. ताकि दूसरे मरीजों का प्रभाव इन बच्चों पर न पड़ सके.

डॉ संजय भारती ने बताया कि एक संभावना ये भी है कि मां के दूध से बच्चों में एंटीबॉडी भी डेवलप होते हैं. जो उन्हें हर रोग से लड़ने की ताकत देते हैं. बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत हो जाता है. इसलिए अनजाने में भी अगर कहीं वायरस पहुंचा भी होगा तो इन बच्चों को नुकसान नहीं पहुंचा पाया.

दूसरा सवाल ये भी खड़ा होता है कि जब मां के शरीर में वायरस था तो वह बच्चों को फीडिंग के दौरान प्रभावित क्यों नहीं कर पाया. इस पर डॉ संजय भारती बताते हैं कि वायरस खून के जरिए नहीं फैलता है, तो दूध के जरिए फैलने की तो संभावना ही नहीं है.

इस तरह मां के दूध और डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ की सावधानी ने बच्चों को कोरोना संक्रमण से बचा लिया. इससे पता चलता है कि अगर पूरी सावधानी बरती जाए तो संक्रमण से बचा जा सकता है.

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