इंदौर। देश और दुनिया में भले ही शास्त्रीय संगीत के रचयिता गीतकार और कद्रदान पहले जैसे न रहे हों, लेकिन शाश्वत और सनातन संगीत की विरासत आज नए-नए गाने और गीत संगीत के जरिए नए रूप में उभर रही है. हालांकि वर्तमान दौर में ऐसे भी संगीत के शांतिदूत हैं, जो दुनिया भर में आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत की वैभवशाली विरासत का संदेश अपने गायन वादन के साथ संगीत विधाओं के प्रदर्शन से दे रहे हैं. ऐसे ही संगीत सम्राट हैं पद्म भूषण पंडित गोकुलोत्सव महाराज, जो बीते 40 वर्षों से दुनिया भर में संगीत के उपासक बनकर विभिन्न देशों में शास्त्रीय संगीत का प्रचार कर रहे हैं. ईटीवी भारत ने संगीत के वर्तमान दौर पर उनसे विशेष बातचीत की. गोकुलोत्सव महाराज बताते हैं कि संगीत अजर अमर और मन का मीत है, जो कभी भी भारतीय और दुनिया भर के जनमानस के मन से विलुप्त नहीं हो सकता. (Pandit Gokulotsav Maharaj Exclusive Interview)
सवाल: भारतीय संगीत के सफर में इंदौर के कलाकारों का कितना योगदान और महत्व है क्योंकि लता मंगेशकर और आप जैसे संगीत उपासक यहीं जन्में हैं ?
जवाब: इंदौर में ऐसे ऐसे कलाकारों और विद्वानों ने जन्म लिया, जिनकी कोई तुलना नहीं है. इंदौर के लोग भले ही पुराने दौर में इन कलाकारों के गीत संगीत का महत्व नहीं समझ पाए, लेकिन गीतकार और संगीतकार ने जब देश विदेश में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन किया तो उनकी शख्सियत को पहचान मिली. संगीत की विरासत में इंदौर के कलाकारों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.
सवाल: बदलते दौर में शास्त्रीय संगीत की उपेक्षा से आप कितने सहमत हैं ?
जवाब: संगीत की उपेक्षा का सवाल ही नहीं उठता. संगीत तो आज भी कण-कण में मौजूद है. यह बात और है कि आज का मानव जीवन अस्त-व्यस्त है. लोग फिर भी अपनी दिनचर्या में भ्रमण करते समय या बाथरूम सिंगर के बतौर भी गीत संगीत से जुड़े होते हैं. संगीत तो जीवन का गीत है, मनमीत है उसे छोड़ नहीं सकते. आज के दौर में भी शादी विवाह मांगलिक कार्यक्रमों में संगीत उत्सव के रूप में प्रदर्शित होता है. बिना संगीत के सब सूना है. संगीत का हर समय महत्व है, जो आने वाले दौर में भी प्रभावी रूप से रहने वाला है.
सवाल: महाराजा पूर्व में न्यायिक सेवा में थे. धर्म और दर्शन के प्रकांड ज्ञाता होने के बावजूद आपको संगीत की सेवा का विचार कैसे आया ?
जवाब: हमारी परंपरा संगीत की परंपरा रही है. सामवेद, यजुर्वेद और भागवत गीता में भी कहा गया है कि सामवेद से संगीत की उत्पत्ति हुई. मेरी पृष्ठभूमि जगतगुरु वल्लभ संप्रदाय के एक पीठासीन सेवक की भी है. स्वर के माध्यम से विरासत को सहेज रहा हूं. हालांकि स्वर में संगीत न मिले तो जीवन बेकार है. 42 साल से दुनिया भर के विभिन्न देशों का भ्रमण करते हुए संगीत के माध्यम से दुनिया भर में शांति और शास्त्रीय गायन का पैगाम भी दे रहा हूं.
सवाल: आधुनिक दौर में संगीत घरानों की परंपराएं सिमट रही है. ऐसा क्यों है?
जवाब: हमारे देश में संगीत घरानों की परंपरा करीब 200 साल पुरानी है, जबकि संगीत गायन और शास्त्रीय संगीत सनातन है. संगीत में विभिन्न मत हैं, लेकिन सर्वांग और संपूर्ण गायकी का अपना अलग महत्व है. संगीत में ऐसे-ऐसे राग और विधाएं हैं कि वह कंप्यूटर के कीबोर्ड की तरह ही ब्रह्मांड की यूनिवर्सल फाइल को खोल सकती है. संगीत की यही विधा बड़ी अद्भुत है, जिसके कारण शास्त्रीय संगीत की देश और दुनिया में पहचान है.
सवाल: संगीत की समृद्ध शाली विरासत को आखिर किस तरह से सहेज रहे हैं क्योंकि यह गूड. ज्ञान है?
जवाब: शास्त्रीय संगीत के ज्ञान का दुनिया भर में प्रचार प्रसार करने के साथ अगली पीढ़ी के संगीत शिक्षकों और विद्यार्थियों को संगीत की विधाएं सिखा रहे हैं. बीते 4 दशकों में यूरोप मिडल ईस्ट समेत दुनिया के कई देशों में घूम कर भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रदर्शन के साथ उसका महत्व भी लोगों को बताया जा रहा है, जिसको अब पूरी दुनिया में लोग जान और समझ रहे हैं.
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विराट व्यक्तित्व के धनी महाराज पंडित गोकुलोत्सव महाराज भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रकांड संगीतकार लेखक गायक संगीता और दार्शनिक हैं. उन्हें हिंदुस्तानी संगीत में खासकर हवेली संगीत, ध्रुपद गायन प्रबंध और खयाल गायकी के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. जिन्होंने 5000 कंपोजीशन के साथ कई रागों का सृजन खुद किया है. पंडित जी पद्मभूषण के अलावा पद्मश्री राष्ट्रीय तानसेन सम्मान द्रुपद रत्न नाथ योगी सम्मान समेत विभिन्न देशों में अलग-अलग पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. उन्हें शास्त्रीय संगीत के सूर्य की उपाधि दी गई है. महाराज आईसीसीआर के सदस्य होने के साथ भारत भवन के ट्रस्टी हैं, जो पूर्व में न्यायिक सेवा में भी रहे हैं.