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मिट्टी-गोबर के गणेश को गड्ढे में किया विसर्जित, फिर बेल का पौधा लगाकर दिया पर्यावरण बचाने का संदेश

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में स्थापित मिट्टी-गोबर से बनी गणेश प्रतिमा का विसर्जन परिसर में ही एक गड्ढा बनाकर किया गया और उसी गड्ढे में बेल का पौधा लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया.

अस्था के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश
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Published : Sep 12, 2019, 9:57 PM IST

इंदौर। धर्म पालन के साथ-साथ यदि पर्यावरण की चिंता भी की जाए तो परिणाम बेहतर आने की उम्मीद की जा सकती है. ऐसा ही कुछ गणेश विसर्जन के दौरान इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में देखने को मिला. विश्वविद्यालय के आरएनटी मार्ग क्षेत्र में मिट्टी और गोबर की गणेश प्रतिमा स्थापित की गई थी, जिन्हें आज पारंपरिक विधि विधान के साथ परिसर में ही गड्ढा खोदकर उसी में विसर्जित कर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया गया.

अस्था के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश

विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्टार प्रज्वल खरे ने गणपति विसर्जन करते हुए एक बेल का पौधा भी उसी गड्ढे में लगाया और सभी लोगों को शपथ भी दिलाई कि आने वाले सालों में भी इसी तरह से भगवान गणेश की स्थापना करते हुए पर्यावरण का एक बेहतर संदेश देंगे.

जहां सभी जगह मूर्तियों का विसर्जन नदी, तालाब में किया जाता है, साथ ही पीओपी और अन्य सामग्री से बनी मूर्तियां स्थापित की जाती हैं, जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाती हैं, ऐसे में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के साथ ही पर्यावरण प्रेमियों का मिट्टी और गोबर से बनी प्रतिमाओं को बढ़ावा देना और इस तरह से विसर्जन करना सराहनीय पहल है.

इंदौर। धर्म पालन के साथ-साथ यदि पर्यावरण की चिंता भी की जाए तो परिणाम बेहतर आने की उम्मीद की जा सकती है. ऐसा ही कुछ गणेश विसर्जन के दौरान इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में देखने को मिला. विश्वविद्यालय के आरएनटी मार्ग क्षेत्र में मिट्टी और गोबर की गणेश प्रतिमा स्थापित की गई थी, जिन्हें आज पारंपरिक विधि विधान के साथ परिसर में ही गड्ढा खोदकर उसी में विसर्जित कर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया गया.

अस्था के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश

विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्टार प्रज्वल खरे ने गणपति विसर्जन करते हुए एक बेल का पौधा भी उसी गड्ढे में लगाया और सभी लोगों को शपथ भी दिलाई कि आने वाले सालों में भी इसी तरह से भगवान गणेश की स्थापना करते हुए पर्यावरण का एक बेहतर संदेश देंगे.

जहां सभी जगह मूर्तियों का विसर्जन नदी, तालाब में किया जाता है, साथ ही पीओपी और अन्य सामग्री से बनी मूर्तियां स्थापित की जाती हैं, जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाती हैं, ऐसे में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के साथ ही पर्यावरण प्रेमियों का मिट्टी और गोबर से बनी प्रतिमाओं को बढ़ावा देना और इस तरह से विसर्जन करना सराहनीय पहल है.

Intro:धर्म के साथ-साथ यदि प्राकृतिक पर्यावरण की चिंता भी की जाए तो परिणाम बेहतर आने की उम्मीद की जा सकती है ऐसा ही कुछ गणेश विसर्जन के दौरान इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में हुआ 10 दिन पहले विश्वविद्यालय के आरएनटी मार्ग में मेहमान बनकर आए गणेश जी पूर्ण रूप से मिट्टी और गोबर के थे आज विसर्जन के दिन पारंपरिक विधि विधान के साथ एक अनूठे रूप में गणेश जी का विसर्जन कर्मचारियों और अधिकारियों ने किया ओर पर्यावरण बचाने का संदेश भी दिया



Body:बीते कुछ सालों से चली आ रही परम्परा में बदलाव और भगवान के प्रति आस्था बनाए रखने के उद्देश्य से गणेश विसर्जन की प्रक्रिया में अब नए रूप देखने को मिला रहै है बदले रूप में मूर्तियों का विसर्जन अब घरो के आंगन ओर खाली स्थानों में किया जा रहा है जिसके पीछे की भावना घर आए भवन में आस्था आने वाले साल तक बनी रहे जैसा की अभी तक की परम्परा रही की मूर्तियों का विसर्जन शहर के पास बने तालाब में की जाता है साथ ही पीओपी और अन्य सामग्री से बनी मूर्तियां पंडालों और घरों में स्थापित की जाता था लेकिन शहर में अब पर्यावरण प्रेमियों ने मिट्टी और गोबर से बने प्रतिमाओं को बढ़ावा देना शुरू किया है और स्थापना के वक्त मिट्टी से बनी ही प्रतिमाएं स्थापित करने का चलन भी शहर में बढ़ गया हैConclusion:देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में भी मिट्टी और गोबर से बने गणेश स्थापित किए गए और आज विश्वविद्यालय के आरएनटी मार्ग प्रांगण में ही एक बड़ा सा गड्ढा खोदकर प्रतिमा का वहां विसर्जन करते हुए एक बेलपत्र का पौधा भी उस पर लगाया गया है साथ ही इस बात की शपथ भी विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्ट्रार प्रज्वल खरे ने कर्मचारियों को दिलाई के आने वाले सालों में भी इसी तरह से गणेश जी की स्थापना करते हुए पर्यावरण का एक बेहतर संदेश देंगे

बाइट - प्रज्वल खरे डिप्टी रजिस्ट्रार देवी विश्वविद्यालय इंदौर
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