इंदौर। लॉकडाउन के चलते कई सामाजिक संस्थाएं और लोग एक दूसरे की मदद कर रहे हैं, लेकिन इंदौर के एक दंपत्ति, ज्ञानेंद्र पुरोहित और उनकी पत्नी मोनिका ने देशभर के मूक-बधिरों को घर पहुंचने का संकल्प लिया है. इस दंपति को मूक- बधिरों की भाषा साइन लैंग्वेज आती है, जिसके जरिए दिव्यांग बच्चों घर भिजवाने में इन्हें काफी मदद मिलती है. इनके काम का इतना असर हुआ कि, सुप्रीम कोर्ट को भी मूक बधिरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए सरकार को निर्देश जारी करना पड़ा.
ये दंपति अलग-अलग राज्यों के अधिकारियों और अन्य लोगों से संपर्क कर मूक-बधिरों की जानकारी ले रहे हैं. शुरुआती दौर में हरियाण में फंसे प्रदेश के 23 से अधिक मूक-बधिरों को वापस घर पहुंचाया. उसके बाद इस दंपति का यह अभियान पूरे देश में फैल गया और वीडियो कॉल के जरिए इस संपति ने दिव्यागों की तरफ मदद का हाथ आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. इस काम में कई राज्यों की पुलिस इस दंपति से सीधे संपर्क करती है, ताकि साइन लैंग्वेज की मदद से वे अपनी बात उस राज्य में फंसे लोगों को समझा सकें.
ज्ञानेंद्र ने 8 मई को सुप्रीम कोर्ट में एक लेटर भेजा था. जिसमें मूक-बधिरों की मदद के लिए आग्रह किया गया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को मूक-बधिर लोगों की सहायता करने के निर्देश दिए. इसका असर यह हुआ कि, दंपति जब भी किसी मूक-बधिर की मदद करना चाहता हैं, तो उन्हें आसानी से वहां की स्थानीय पुलिस से हेल्प मिल जाती है. ज्ञानेंद्र और मोनिका ने गोवा, सिक्किम, हरियाणा में फंसे मूक बधिरों को उनके घर पहुंचाया.
ईद पर गुरुग्राम से अपने घर जाने की कोशिश में जुटे 7 कश्मीरी छात्रों ने इस दंपति से संपर्क किया. कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था के चलते उनके सामने कई परेशानियां थीं. पुरोहित दंपति ने गुरुग्राम के प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क किया और इन छात्रों की मदद की. ईद के दिन शाम को ये सभी छात्र अपने घर कश्मीर पहुंच चुके थे. ज्ञानेंद्र पुरोहित और मोनिका पुरोहित इससे पहले गीता को पाकिस्तान से भारत लाने में भी मदद कर चुके हैं. गीता से संपर्क करने के लिए भारत सरकार ने इन्हीं की मदद ली थी.