इन्दौर। शहीद वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस के अवसर पर ग्वालियर का नाम अब उनके नाम पर रखने की मांग की जा रही है. इंदौर में कांग्रेस के प्रदेश सचिव राकेश सिंह यादव ने इस मांग से संबंधित प्रमाण और दस्तावेजों के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से गुहार लगाई है. डिमांड की है कि ग्वालियर का नाम रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा जाए. उन्होंने अपने मांग पत्र के साथ मुख्यमंत्री का एक पुराना वीडियो भी शेयर किया है जिसमें मुख्यमंत्री ने रानी लक्ष्मी की शहादत को याद करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को सराहा था.
सिंधिया परिवार पर लगाए आरोप
यादव ने मांग पत्र में ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर सिंधिया परिवार पर आरोप लगाया है. उन्होंने लिखा है कि ग्वालियर का नाम सिंधिया रियासत (Scindia princely state) के असहयोग के कारण इतिहास में कलंकित हैं. ग्वालियर के कलंक को मिटाने के लिए ग्वालियर का नाम परिवर्तित किया जाना चाहिए. खत में लिखा गया है कि भाजपा राज में अनेक शहरों के नाम बदले हैं, जैसे इलाहाबाद का नाम प्रयागराज, गुड़गांव का नया नाम गुरुग्राम और फैज़ाबाद का नाम अयोध्या, होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम बदल कर रखा गया है. इसी तर्ज़ पर ग्वालियर की जनता की मांग पर सिंधिया रियासत की वजह से कलंकित ग्वालियर का नया नाम 'रानीलक्ष्मीबाई नगर' (Rani Laxmi Bai nagar) रखा जाना चाहिए.
मांग पत्र के साथ भेजी ऐतिहासिक जानकारी
मुख्यमंत्री को भेजे गए मांग पत्र में जो जानकारी ग्वालियर को लेकर राज्य शासन को भेजी गई है उसके मुताबिक छठी शताब्दी में ग्वालियर के तत्कालीन राजा सूरजसेन पाल जब एक बार अज्ञात बीमारी से ग्रसित मृत्युशैया पर थे. तब ग्वालिपा नामक सन्त ने उन्हें ठीक कर जीवनदान दिया. उन्हीं के सम्मान में इस शहर की नींव पड़ी और इसे ग्वालियर नाम दिया गया. कहते है सूरजसेन पाल के 83 वंशजों ने किले पर राज्य किया, लेकिन 84 वें जिसका नाम तेज करण था इसे हार गया. ग्वालियर का प्राचीन नाम गोपराष्ट्र है, जिसका इतिहास अति प्राचीन है. ग्वालियर और उसके आस-पास का क्षेत्र महाभारत काल में गोपराष्ट्र कहा जाता था. उस समय राष्ट्र का आशय जनपद माना जाता था. गोपराष्ट्र महाभारत के पहले ही भारत के गौरवशाली जनपद के रूप में प्रतिष्ठित हो गया था. ग्वालियर के प्राचीन नाम गोपपर्वत, गोपगिरिन्द्र, गोपाद्रि, गोपगिरि , गोपांचल दुर्ग रखे गए थे.
'ग्वालिर' की उत्पत्ति
पहले रखे गए सभी नामों का अर्थ ग्वाल पर्वत है, जिस पर आज ग्वालियर दुर्ग स्थित है. वर्तमान नाम ग्वालियर भी इन्हीं प्राचीन नामों गोपालगिरी, ग्वालहरी से उत्पन्न हुआ है. इसी शहर में 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर ने भाग नहीं लिया था. बल्कि यहां के सिंधिया शासक ने अंग्रेजों का साथ दिया था. झांसी के अंग्रेजों के हाथ में पड़ने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर पहुंचीं और वहां के शासक से उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए सहयोग मांगा. लेकिन अंग्रेजों का सहयोगी होने के कारण सिंधिया ने पनाह देने से इंकार कर दिया. जिस पर सिंधिया के सैनिकों ने बगावत कर दी और किले को अपने कब्जे में ले लिया. कुछ ही समय में अंग्रेज भी वहां पहुंच गए और भीषण युद्ध हुआ. जिसमें महाराजा सिंधिया के समर्थन के साथ एक हजार 600 अंग्रेज थे, जबकि हिंदुस्तानी 20 हजार थे. लेकिन बेहतर तकनीक और प्रशिक्षण के चलते अंग्रेज हिन्दुस्तानियों पर हावी हो गए. उसी दौरान 1858 में रानी लक्ष्मीबाई भी अंग्रेजो से लड़ते हुए ग्वालियर में वीरगति को प्राप्त हो गई. रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान आज भी पूरे भारत में याद किया जाता है.
इन नेताओं को भी भेजा मांग पत्र
ग्वालियर का नया नाम रानी लक्ष्मीबाई नगर करने के लिए यादव ने कई नेताओं का दर ठकठकाया है. उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता जयभान सिंह पवैया, उमा भारती, कैबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रभात झा के साथ ही पूर्व प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा को पत्र लिखकर और ट्वीट करके समर्थन मांगा हैं. साथ ही ग्वालियर की जनता से सिंधिया रियासत के ऐतिहासिक कलंक को समाप्त करने के लिए ग्वालियर का नया नाम रानी लक्ष्मीबाई नगर करने में सहयोग मांगा है.