इंदौर: आधुनिक दौर में भी कई लोग ऐसे हैं, जो अपने माता-पिता को दिए वचन को निभाने के लिए क्या कुछ नहीं करते, ऐसी ही एक कहानी इंदौर से सामने आई है, जहां रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर बाबूलाल ने अपने पिता को वचन दिया था कि जिस बंदूक से उनके पिता महाराजा तुकोजीराव होल्कर के खजाने की सुरक्षा करते थे, वह बंदूक अपने पिता की अंतिम इच्छा के स्वरूप सरकार को सौंपी जाएगी. लिहाजा आज बाबूलाल ने केंद्रीय संग्रहालय को अपनी 200 साल पुरानी बंदूक दान कर अपने पिता को दिया आखरी वचन निभाया. बाबूलाल कहते हैं कि ये बंदूक चंबल की डकैत पुतलीबाई के पास थी.
दरअसल, 1816 में इंग्लैंड में बनी बंदूक महाराजा तुकोजी राव होल्कर के खजाने की सुरक्षा के लिए बाबूलाल के पिता भेरुलाल को दी गई थी. जीवनभर भेरूलाल ने इसी बंदूक के सहारे खजाने की रक्षा की, 1984 में जब भेरूलाल का अंतिम समय आया तो उन्होंने अपने पुत्र और पुलिस अधिकारी बाबूलाल से आखरी वचन लिया था कि होलकर काल की धरोहर यह बंदूक वह पुरातत्व संग्रहालय को सौंप देगा, जिससे कि आने वाली पीढ़ियां होलकर कालीन शास्त्रों और बंदूकों से रूबरू हो सकें. लिहाजा बाबूलाल ने जिला प्रशासन से बंदूक को जमा करने की गुहार लगाई थी, इसके बाद पुरातत्व विभाग की सहमति पर बाबूलाल ने आज बंदूक जमा कर अपना वचन पूरा किया है.
बंदूक का डकैत पुतलीबाई से कनेक्शन
बंदूक को दान करने वाले बाबूलाल बताते हैं कि यह बंदूक चंबल अंचल की डकैत पुतलीबाई के पास थी, जिसे उन्होंने उस दौरान रूद्र सिंह नाम के सरपंच के जरिए प्राप्त किया था. 12 बोर कारतूस से चलने वाली है बंदूक अभी भी चालू हालत में है, जो अपनी तकनीकी और उपयोग के लिहाज से दुर्लभ बताई जाती है. बाबूलाल चौहान ने बताया कि, मैं 1978 के थाना आरोन के सब इंस्पेक्टर के पद पर पदस्थ था किसी जमाने में ग्वालियर चंबस संभाग में डकैत पुतली बाई की तूती बोलती थी. बनेरी गांव के रूद्र सिंह जो कि पुलिस के साथ ही डकैतों को भी मुखबिर हुआ करता था, उसने मुझे बताया कि पुतली बाई की एक बंदूक यहां के रहने वाले लाखन सिंह के पास है, ये बंदूक ही दुर्लभ है, इसके बाद मैं ने लाखन सिंह को बुलाया और मीटिंग कर उससे 1982 में ये बंदूक लेली.
गौरतलब है, इंदौर के केंद्रीय संग्रहालय में आज भी बड़ी संख्या में होलकर कालीन अस्त्र-शस्त्र मौजूद हैं, जिन में तरह-तरह की बंदूकें तो और हथगोला प्रदर्शनी में रखे गए हैं. अब जबकि संग्रहालय में हथियारों की फेहरिश्त में यह 200 साल पुरानी बंदूक भी शामिल होने जा रही है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि आदिकाल से लेकर होल्कर काल और वर्तमान दौर में भी हथियारों के उपयोग की परंपरा प्राचीन इतिहास की तरह ही समृद्ध रही है.
चंबल की पहली महिला डकैत थी पुतलीबाई
चंबल के इतिहास में पुतलीबाई का नाम पहली महिला डकैत के रूप में दर्ज है, जिसने अपने प्रेमी के लिए बंदूक उठाई थी, जानकारी के मुताबिक पुतलीबाई ने प्रेमी की मौत के बाद गैंग की कमान संभाली, गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मी गौहरबानो को परिवार का पेट पालने के लिए पहले नृत्यांगना बनना पड़ा और इसी पेशे ने उसे पुतलीबाई नाम दिया. कहते हैं कि दुबली-पतली गौहरबानो जब नृत्य करती थी तो किसी पुतली की तरह दिखती थी इसी वजह से उसका नाम पुतलीबाई पड़ा. किसी कार्यक्रम में पुतली बाई का डांस देख डाकू सुल्ताना की नजर उस पर पर पड़ी और उसे जबरन गिरोह के मनोरंजन के लिए बीहड़ों में बुलाने लगा, इसी बीच दोनों में प्रेम हो गया. प्रेम प्रसंग होने के बाद पुतलीबाई घर छोड़कर अपने प्रेमी सुल्ताना के साथ बीहड़ों में रहने लगी.
पुतलीबाई सुल्लाना से प्यार करने के बाद उसके गैंग में शामिल होने वाली आजाद भारत की पहली महिला डकैत बनीं. 1950 में पुलिस मुठभेड़ में सुल्ताना मारा गया और गिरोह की कमान पुतलीबाई ने संभाली और गिरोह की सरदार बन गई. 1950 से 1856 तक बीहड़ो में उसका जबरदस्त खौफ रहा. प्रेमी की मौत और सरदार बनने के बाद गिरोह के कई सदस्यों ने पुतलीबाई के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन, पुतलीबाई जीवन भर अकेले ही रही. पुतली बाई के साहस और समर्पण की कहानी उस समय के कई डाकूओं के जुबान पर रहती थी, पुतलीबाई ने सुल्लाना को मुठभेड़ में मरवाने वाले मुखबिर को खत्म करने की कसम खाई और इसी के चलते उसने सरेंडर करने के बजाए बीहड़ों को चुना.
पुतलीबाई पुलिस मुठभेड़ों में जमकर मुकाबला करती थी और जानकारी के मुताबिक बीहड़ में डाकू पुतलीबाई 6 जून 1956 को शिवपुरी के बीहड़ों में पुलिस एंकाउंटर में मार दी गई.