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विश्व का अनोखा शिवालय, जहां सिंदूर से होता है महादेव का अभिषेक

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Published : Jul 13, 2020, 9:51 AM IST

Updated : Jul 13, 2020, 11:50 AM IST

इटारसी से 8 किलोमीटर दूर सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों के बीच भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है, जहां सिंदूर से अभिषेक किया जाता है. इसे 'तिलसिंदूर' के नाम से जाना जाता है.

tilsindoor temple
तिलसिंदूर मंदिर

होशंगाबाद। देवों के देव महादेव की उपासना के लिए श्रावण मास उत्तम माना जाता है. श्रावण सोमवार को महादेव की विशेष पूजा की जाती है, जिसमें बिल्व पत्र, दूध, दही, पंचामृत से शिव का अभिषेक किया जाता है, लेकिन महादेव का एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव का सिंदूर से अभिषेक किया जाता है, जो विश्व में केवल एक ही जगह पर देखने को मिलता है. इस मंदिर को 'तिलसिंदूर' के नाम से जाना जाता है.

इस मंदिर में भगवान शिव का सिंदूर से होता है अभिषेक

शिव मंदिर का महत्व

तिलसिंदूर महादेव मंदिर झरने, पक्षियों, हवाओं की सनसनाहट, चारों ओर हरियाली के बीच सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित है. गुफा में स्थित शिवलिंग हजारों साल से स्थापित है, कहा जाता है कि भस्मासुर ने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था, जिसमें जिस सिर पर हाथ रख दे वो भस्म हो जाएगा. राक्षस ने यही प्रयोग भगवान शिव पर करने की कोशिश की थी, तब भगवान शिव भागते-भागते सतपुड़ा के पहाड़ों में त्रिशूल के जरिए सुरंग बनाते हुए तिलक सिंदूर की गुफाओं में शरण ली थी.

शिव मंदिर का इतिहास

तिलक सिंदूर की गुफा में शरण लेते हुए भगवान शिव पचमढ़ी की गुफा में पहुंचे, जहां सैकड़ों बरसों तक छिपकर भगवान ने तपस्या की. ये दुर्गम जंगली इलाका गौड़ जनजाति का क्षेत्र रहा है. आदिवासी पूजा-अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं. सतपुड़ा की पहाड़ियों पर विदर्भ से यहां तक गौड़ राजाओं का राज रहा है, जो पूजन में सिंदूर का उपयोग करते आए हैं. साथ ही कई अन्य अस्पष्ट बाते भी हैं, जिसमें कहा गया है कि जंगल में सिंदूर के पेड़ बहुतायत में थे, इसलिए आदिवासी सिंदूर से ही भगवान शिव का अभिषेक करने लगे. यहां आज भी भगवान शिव को सिंदूर ही चढ़ाया जाता है. ये सतपुड़ा की वादियों में इटारसी से करीब 16 किलोमीटर दूरी पर स्थित है.

आज भी आदिवासी भुमका ही करते हैं पूजा

हजारों सालों से मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव की पूजा आदिवासी पंडित ही करते आ रहे हैं, जिन्हें भुमका कहा जाता है. जो भगवान शिव का सिंदूर से अभिषेक करते हैं. यहां आज भी ब्राह्मण जाति का पंडित नहीं है. यहां भुमका द्वारा पूजा करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. करीब 4 पीढ़ी से पंडित आदिवासी परिवार सेवा कर रहा है.

सतपुड़ा पर्वत पर घने जंगलों के बीच स्थित है शिव मंदिर

सतपुड़ा पर्वत पर भगवान शिव के स्थान ऐसे हैं, जहां से उनकी कथाएं जुड़ी हैं. सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी में शिव के अनेक स्थान हैं तो इसी सतपुड़ा की पर्वतमाला पर एक स्थान ऐसा है, जहां शिव के होने का एहसास होता है. इटारसी तहसील के जमानी गांव से लगभग 8 किमी दूर सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों के बीच स्थित है. तिलक सिंदूर के शिव मंदिर का स्थान सालों पहले खोज लिया गया था, तब से अब तक इसका विकास नहीं हुआ है. उत्तर मुखी शिवालय सतपुड़ा की लगभग 250 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसके आसपास सागौन साल, महुआ, आम आदि के हजारों पेड़ लगे हैं, जो मुख्य आकर्षण का केंद्र है.

श्रावण सोमवार पर श्रद्धालुओं का लगता है जमावड़ा

शिवरात्रि और श्रावण मास के सोमवार पर विशेष रूप से बड़ी संख्या में श्रद्धालु तिलक सिंदूर महादेव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए इस साल सोमवार में श्रद्धालुओं की संख्या पर असर देखने को मिला है. जहां कुछ ही श्रद्धालु दर्शन करने के लिए मंदिर तक पहुंच रहे हैं.

होशंगाबाद। देवों के देव महादेव की उपासना के लिए श्रावण मास उत्तम माना जाता है. श्रावण सोमवार को महादेव की विशेष पूजा की जाती है, जिसमें बिल्व पत्र, दूध, दही, पंचामृत से शिव का अभिषेक किया जाता है, लेकिन महादेव का एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव का सिंदूर से अभिषेक किया जाता है, जो विश्व में केवल एक ही जगह पर देखने को मिलता है. इस मंदिर को 'तिलसिंदूर' के नाम से जाना जाता है.

इस मंदिर में भगवान शिव का सिंदूर से होता है अभिषेक

शिव मंदिर का महत्व

तिलसिंदूर महादेव मंदिर झरने, पक्षियों, हवाओं की सनसनाहट, चारों ओर हरियाली के बीच सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित है. गुफा में स्थित शिवलिंग हजारों साल से स्थापित है, कहा जाता है कि भस्मासुर ने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था, जिसमें जिस सिर पर हाथ रख दे वो भस्म हो जाएगा. राक्षस ने यही प्रयोग भगवान शिव पर करने की कोशिश की थी, तब भगवान शिव भागते-भागते सतपुड़ा के पहाड़ों में त्रिशूल के जरिए सुरंग बनाते हुए तिलक सिंदूर की गुफाओं में शरण ली थी.

शिव मंदिर का इतिहास

तिलक सिंदूर की गुफा में शरण लेते हुए भगवान शिव पचमढ़ी की गुफा में पहुंचे, जहां सैकड़ों बरसों तक छिपकर भगवान ने तपस्या की. ये दुर्गम जंगली इलाका गौड़ जनजाति का क्षेत्र रहा है. आदिवासी पूजा-अर्चना के दौरान सिंदूर का उपयोग करते हैं. सतपुड़ा की पहाड़ियों पर विदर्भ से यहां तक गौड़ राजाओं का राज रहा है, जो पूजन में सिंदूर का उपयोग करते आए हैं. साथ ही कई अन्य अस्पष्ट बाते भी हैं, जिसमें कहा गया है कि जंगल में सिंदूर के पेड़ बहुतायत में थे, इसलिए आदिवासी सिंदूर से ही भगवान शिव का अभिषेक करने लगे. यहां आज भी भगवान शिव को सिंदूर ही चढ़ाया जाता है. ये सतपुड़ा की वादियों में इटारसी से करीब 16 किलोमीटर दूरी पर स्थित है.

आज भी आदिवासी भुमका ही करते हैं पूजा

हजारों सालों से मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव की पूजा आदिवासी पंडित ही करते आ रहे हैं, जिन्हें भुमका कहा जाता है. जो भगवान शिव का सिंदूर से अभिषेक करते हैं. यहां आज भी ब्राह्मण जाति का पंडित नहीं है. यहां भुमका द्वारा पूजा करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है. करीब 4 पीढ़ी से पंडित आदिवासी परिवार सेवा कर रहा है.

सतपुड़ा पर्वत पर घने जंगलों के बीच स्थित है शिव मंदिर

सतपुड़ा पर्वत पर भगवान शिव के स्थान ऐसे हैं, जहां से उनकी कथाएं जुड़ी हैं. सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी में शिव के अनेक स्थान हैं तो इसी सतपुड़ा की पर्वतमाला पर एक स्थान ऐसा है, जहां शिव के होने का एहसास होता है. इटारसी तहसील के जमानी गांव से लगभग 8 किमी दूर सतपुड़ा पर्वत के घने जंगलों के बीच स्थित है. तिलक सिंदूर के शिव मंदिर का स्थान सालों पहले खोज लिया गया था, तब से अब तक इसका विकास नहीं हुआ है. उत्तर मुखी शिवालय सतपुड़ा की लगभग 250 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसके आसपास सागौन साल, महुआ, आम आदि के हजारों पेड़ लगे हैं, जो मुख्य आकर्षण का केंद्र है.

श्रावण सोमवार पर श्रद्धालुओं का लगता है जमावड़ा

शिवरात्रि और श्रावण मास के सोमवार पर विशेष रूप से बड़ी संख्या में श्रद्धालु तिलक सिंदूर महादेव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए इस साल सोमवार में श्रद्धालुओं की संख्या पर असर देखने को मिला है. जहां कुछ ही श्रद्धालु दर्शन करने के लिए मंदिर तक पहुंच रहे हैं.

Last Updated : Jul 13, 2020, 11:50 AM IST
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