होशंगाबाद। प्रदेश सरकार ने महिला एवं बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग की एक लंबी-चौड़ी फौज प्रदेश से कुपोषण मिटाने के लिए लगाई हुई है. लेकिन सिस्टम और अधिकारियों की यह फौज कितनी सफल है इसका खुलासा महिला एवं बाल विकास की एक रिपोर्ट से हुआ. रिर्पोट से पता लगा है कि कुपोषण मिटाने के लिए जो पोषण आहार वितरित किया जाता है, वह कई लोग लेने से परहेज कर रहे हैं. नर्मदापुरम संभाग के 4818 आंगनबाड़ियों में दर्ज करीब 48644 बच्चे पोषण आहार खाना तो दूर, आहार लेने आंगनवाड़ी तक भी नहीं आ रहे हैं.
मैदानी अमले की लापरवाही के चलते संभाग में कुपोषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है. कुपोषण खत्म करने की सरकारी कवायद रिपोर्ट आने के बाद धरी की धरी रह गई. नर्मदापुरम संभाग के 3 जिले हरदा, बैतूल और होशंगाबाद में अभी तक कुल 6 महीने से लेकर 6 साल तक के 2 लाख 80 हजार छह सौ 64 बच्चों को कुपोषण की श्रेणी में चयनित किया गया है.
रिपोर्ट से सरकार के काम पर उठ रहे सवाल
रिपोर्ट के अनुसार 2 लाख 32 बच्चोम ने आंगनबाड़ी केंद्रों और पोषण आहार का लाभ उठाया. लेकिन 48 हजार 664 बच्चे पोषण आहार लेने ही नहीं आये. इस रिपोर्ट के अनुसार संभाग के 48000 बच्चों के परिवार निजी रूप से पोषण देकर या प्राइवेट रूप से डॉक्टरों की सलाह से आहार देकर इलाज करा रहे हैं. क्योंकि लोग सरकार के द्वारा दिये जाने वाले आहार से संतुष्ट नहीं है. तभी इस तरह अपने बच्चों को पोषण केंद्र तक नहीं पहुंचा रहे.
जिंताजनक हैं ये आंकड़े
अकेले होशंगाबाद में कम और अति कम वजन के लगभग 14000 बच्चे हैं, वहीं बैतूल और हरदा में यह संख्या लगभग 18000 के आसपास है. वही होशंगाबाद जिले में ही 1771 आंगनबाड़ी केंद्र ,हरदा में 700, बैतूल में 2347 आंगनबाड़ी केंद्र है. जहां बच्चों को कुपोषण दूर करने की कोशिश की जाती है लेकिन इसके बाद भी 48000 परिवार यहां अपने बच्चों को भेजने के लिए रुचि नहीं दिखा रहे हैं.
ऐसे में प्रदेश सरकार आगनबाड़ियों में कुपोषित बच्चों को प्रोटीन उपलब्ध कराने के लिए खाने के साथ अंडे देने पर विचार कर रही है, जब पोषण आहार को लेकर ही लोग रुचि नहीं दिखा रहे हैं, तो अंडा खिलाने में कैसे रुचि दिखाएंगे.