नर्मदापुरम। दो दिवसीय जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय के बैनर तले आयोजित सम्मेलन का समापन नर्मदापुरम में हुआ. इसमें जल, जंगल, जमीन को लेकर पूरे भारत में अभियान चलाने वाली मेधा पाटेकर मुख्य रूप से शामिल हुईं. इस मौके पर मेधा पाटकर ने बताया कि सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया है कि एक जन आयोग बनाएंगे. जहां-जहां नदी व घाटी के तहत जल, जंगल व जमीन को लेकर संघर्ष चल रहा है, वहां आयोग पहुंच कर सुनवाई करेगा. इसके बाद अपना ऑडिट सबके सामने रखेगा. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को हम इसमें दखल देने के लिए मजबूर कर देंगे.
उद्योगपति ही कमा रहे मुनाफा : मेधा पाटेकर का कहना है कि नर्मदापुरम नर्मदा और तवा नदी के संगम पर है. यहां पर आयोजित जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के सम्मेलन में असम से लेकर केरला तक के समाजसेवी पहुंचे हैं. जो अलग-अलग स्थानों पर काम कर रहे हैं. एक बात समझ में आई है कि आदिवासियों के अलावा भी सभी समाज के लोग प्रकृति निर्भर हैं. किसानों के साथ ही पशुपालकों, मछुआरों की आजीविका बहुत प्रभावित हुई है. जबकि संविधान में अनुच्छेद 48 में लिखा है प्राकृतिक संसाधन की रक्षा और और विकास करना राज्य के कर्तव्य है. राज्य सरकारों द्वारा नदियों के साथ ही जंगल व भूजल को कंपनियों को दिया जा रहा है. उद्योगपति मुनाफा करोड़ों में कमा रहे हैं. प्राकृतिक संसाधनों से जमीनों का हस्तांतरण हो रहा है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों के साथ ही दलितों व किसानों को मुआवजा पाकर छुटकारा पाना हमे मंजूर नहीं है.
नेता केवल घोषणाएं करते हैं : मेधा पाटकर ने कहा कि पुनर्वास के बिना लोगों को डुबाया जाता है, हटाया जाता है. आज नदियों का जल स्तर गिर रहा है. रेत का अवैध खनन चल रहा है. हर नदी के किनारे नर्मदा परिक्रमा करते हुए तमाम नेताओं ने घोषणाएं की कि इसे हम रोकेंगे लेकिन आज तक अवैध उत्खनन रुका नहीं है. ऐसा लगता है माफिया हिंसा करके बेलगाम हैं. बड़वानी के अलावा धार, अलीराजपुर के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने भी 2012 में फैसले दिए लेकिन उनका भी पालन नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में सभी का कहना था कि अगर हम जंगल नही बचाएंगे, नदी नही बचाएंगे, खेती नही बचाएंगे तो जल पर ही अगला विश्व युद्ध होगा.
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अमेरिका का उदाहरण अब क्यों नहीं लेते : जब मेधा पाटकर से सवाल किया गया कि तो क्या बांध नहीं बनना चाहिए, इस पर उन्होंने कहा कि कोई बांध नहीं बनें, ऐसा हमारा कहना बिल्कुल नहीं है. छोटे बांध, चैक डेम्स बनाना जरूरी होता है. इससे बरसात के बाद भी पशुओं को पानी मिलता है, उसका वेपोरेशन होता है. तालाब बनाना जरूरी है. बड़े बांध बड़ी नदियों पर बनाने की शुरुआत अमेरिका ने की. भारत ने उसी का अनुसरण किया. लेकिन अमेरिका ने 1994 से बड़े बांधों को रोक दिया. उनका कहना है कि बड़े बांधों से सामाजिक और पर्यावरणीय ह्रास होता है. इसकी भरपाई नहीं होती है और हो भी नहीं सकती. जैसे सरदार सरोवर से कच्छ के एक भी किसानों को पानी नही मिला. पानी तो पहुंचा कच्छ में लेकिन ये पानी कुछ खास पोर्ट्स को दिया गया.