नर्मदापुरम। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 2 दिसंबर 1933 को ट्रेन से वर्धा से इटारसी रेलवे स्टेशन आए हुए थे, इस दौरान इटारसी रेलवे स्टेशन के ठीक सामने सेठ लख्मीचंद गोठी की धर्मशाला में वह रुक भी थे. आज यानि 2 अक्टूबर गांधी जी की 154 वीं जयंती है, पूरे देश मे महात्मा गांधी को याद किया जा रहा है. वहीं वर्धा से इटारसी आने पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादें जुड़ी हुई है. दरअसल आजादी के पूर्व जब देश की राजधानी नागपुर हुआ करती थी, उस समय देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 2 दिसंबर 1933 को इटारसी दौरे पर आए थे. रेलवे स्टेशन के सामने बनी सेठ लखमीचंद गोठी धर्मशाला में वह एक रात रूके थे.
बापू ने की थी धर्मशाला की स्वच्छता की प्रशंसा: अपने प्रशंसा पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा था कि "इस धर्मशाला में हम लोगों को आश्रय दिया गया, इसके लिए हम सभी संचालकों का आभार मानते हैं. यह जानकर कि स्वच्छता से रहने वाले अजा वर्ग के लोगों को भी यहां स्थान मिलता है, बहुत हर्ष हुआ." आज भी धर्मशाला में उनके द्वारा प्रशंसा पत्र लगे हुए हैं. यह धर्मशाला का इतिहास साल 1907 के आसपास से जुड़ा है, उस दौर में होटल-लॉज नहीं होते थे और इटारसी की इस धर्मशाला में किसी धर्म-मजहब का भेदभाव नहीं रखा जाता था.
बापू के अलावा ये हस्तियां भी इस धर्मशाला में ठहरी कई हस्तियां: बापू के अलावा देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी 22 अप्रैल 1935 को नागपुर जाते समय कुछ देर यहां ठहरे थे. 14 अगस्त 1935 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी मथुरा प्रसाद, चंद्रधर शरण और श्रीकृष्ण दास गांधी के साथ वर्धा से प्रयाग जाते समय तीन घंटे यहां ठहरे। काका कालेलकर, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुचेता बने कृपलानी, रविशंकर शुक्ल समेत कई बड़ी हस्तियां इस धर्मशाला में ठहरी हैं.
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शासन ने धर्मशाला के बाहर लगवाया बोर्ड: मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग स्वराज संस्थान संचालनालय एवं जिला प्रशासन ने धर्मशाला के बाहर एक बोर्ड लगाया है, जिसमें लिखा है कि "30 नवम्बर 1933 को महात्मा गांधी का इटारसी आगमन हुआ, रेलवे स्टेशन पर उपस्थित विशाल जनसमूह ने उनका स्वागत किया. इटारसी की सार्वजनिक सभा हीरालाल चौधरी के सभापतित्व में हुई, जिन्होंने 211/- रुपये की थैली भेंट की. गांधीजी ने उपस्थित जन समूह से अपील की कि वे अस्पृश्यता का समूल नष्ट कर दें. सैयद अहमद ने महात्मा गांधी के भाषण को दोहराया. इस अवसर पर गांधीजी सेठ लखमीचन्द की धर्मशाला भी गए और वहां यात्री पुस्तिका में अपनी राय लिखी."