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अनलॉक के बाद भी नहीं मिल रहा मजदूरों को काम, परेशानी में घर चलाना हुआ मुश्किल - बेरोजगारी से परेशान मजदूर

कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन ने कई मजदूरों से उनकी मजदूरी छीन ली है, वहीं अनलॉक के बाद भी मजदूरों को सुचारू रुप से काम नहीं मिल रहा है जिससे उनके परिवार के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई है. और मजदूरों का कहना है कि उन्हें कोरोना हो जाए और वह मर जाएं.

Even after unlocking, Tihari laborers are not getting work
अनलॉक के बाद भी नहीं मिल रहा तिहाड़ी मजदूरों को काम
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Published : Sep 28, 2020, 3:30 PM IST

होशंगाबाद। लॉकडाउन के दौर में शहर के हजारों दिहाड़ी मजदूरों का प्रतिदिन मिलने वाला रोजगार छिन गया था. जो वर्तमान अनलॉक के दौर में भी सुचारू रूप से नहीं मिल पा रहा है, बेरोजगारी से परेशान इटारसी के सैकड़ों मजदूरों का कहना है कि मजदूरी के अभाव में घुट-घुटकर जीने से अच्छा है कोरोना से उनकी मौत हो जाए.

बता दें शहर के तुलसी चौक से हर दिन शहर और आसपास के ग्रामीण अंचल के एक हजार से ज्यादा मजदूरों को भवन निर्माण, सड़क निर्माण जैसे दैनिक मजदूरी के काम मिलते हैं. बड़े मंदिर वाले मजदूर चौराहा पर सुबह 8 से10 बजे तक मजदूरों की भीड़ दिखाई देती थी, लेकिन अब दोपहर बारह-एक बजे तक यहां मजदूर बैठे रहते हैं. वहीं जब काम नहीं मिलने के संबंध में मजदूरों से पूछा गया तो सभी मजदूरों ने अपनी आप बीती बताई.

मजदूर रमेश कुचबंदिया ने बताया कि लॉकडाउन के समय से काम बंद हो गया था, जो तीन महीने तक बंद रहा. वहीं जुलाई से काम शुरु तो हुआ लेकिन ठेकेदारों ने रेट गिरा दिए, अनलॉक होने से आसपास और दूरदराज गांवों से बड़ी संख्या में मजदूर आने लगे जो निर्धारित मजदूरी से आधे रेट पर भी काम करने को तैयार हैं.

दीपक शर्मा मिस्त्री ने कहा कि लॉकडाउन के समय प्रदेश सरकार ने कहा था कि, मजदूरी नहीं मिलती है तो मुख्यमंत्री की फोटोवाले संबल कार्ड पर नपा व लोकनिर्माण जैसी सरकारी संस्थाएं काम दिलाएंगी, लेकिन आठ माह में कहीं से रोजगार नहीं मिल रहा है.

पीड़ित मजदूर मनोज भाट ने बताया कि रोजंदारी के हिसाब से भवन निर्माण, सड़क में बेलदारी का काम करते थे, जिसके एवज में प्रतिदिन 350-400 रुपए का निर्धारित रेट था. लेकिन पिछले दो माह से डेढ़ सौ, दो सौ रुपए से ज्यादा कोई देने को तैयार नहीं है, उन्होंने कहा कि मंहगाई के दौर में डेढ़ सौ रुपए में क्या खाएंगे और क्या बच्चों को खिलाएंगे. आंखों में आंसू लिए मजदूर ने कहा कि ऐसी बेरोजगारी में घुट घुटकर जीने से तो अच्छा है कोरोना हो जाए और वह मर जाएं.

होशंगाबाद। लॉकडाउन के दौर में शहर के हजारों दिहाड़ी मजदूरों का प्रतिदिन मिलने वाला रोजगार छिन गया था. जो वर्तमान अनलॉक के दौर में भी सुचारू रूप से नहीं मिल पा रहा है, बेरोजगारी से परेशान इटारसी के सैकड़ों मजदूरों का कहना है कि मजदूरी के अभाव में घुट-घुटकर जीने से अच्छा है कोरोना से उनकी मौत हो जाए.

बता दें शहर के तुलसी चौक से हर दिन शहर और आसपास के ग्रामीण अंचल के एक हजार से ज्यादा मजदूरों को भवन निर्माण, सड़क निर्माण जैसे दैनिक मजदूरी के काम मिलते हैं. बड़े मंदिर वाले मजदूर चौराहा पर सुबह 8 से10 बजे तक मजदूरों की भीड़ दिखाई देती थी, लेकिन अब दोपहर बारह-एक बजे तक यहां मजदूर बैठे रहते हैं. वहीं जब काम नहीं मिलने के संबंध में मजदूरों से पूछा गया तो सभी मजदूरों ने अपनी आप बीती बताई.

मजदूर रमेश कुचबंदिया ने बताया कि लॉकडाउन के समय से काम बंद हो गया था, जो तीन महीने तक बंद रहा. वहीं जुलाई से काम शुरु तो हुआ लेकिन ठेकेदारों ने रेट गिरा दिए, अनलॉक होने से आसपास और दूरदराज गांवों से बड़ी संख्या में मजदूर आने लगे जो निर्धारित मजदूरी से आधे रेट पर भी काम करने को तैयार हैं.

दीपक शर्मा मिस्त्री ने कहा कि लॉकडाउन के समय प्रदेश सरकार ने कहा था कि, मजदूरी नहीं मिलती है तो मुख्यमंत्री की फोटोवाले संबल कार्ड पर नपा व लोकनिर्माण जैसी सरकारी संस्थाएं काम दिलाएंगी, लेकिन आठ माह में कहीं से रोजगार नहीं मिल रहा है.

पीड़ित मजदूर मनोज भाट ने बताया कि रोजंदारी के हिसाब से भवन निर्माण, सड़क में बेलदारी का काम करते थे, जिसके एवज में प्रतिदिन 350-400 रुपए का निर्धारित रेट था. लेकिन पिछले दो माह से डेढ़ सौ, दो सौ रुपए से ज्यादा कोई देने को तैयार नहीं है, उन्होंने कहा कि मंहगाई के दौर में डेढ़ सौ रुपए में क्या खाएंगे और क्या बच्चों को खिलाएंगे. आंखों में आंसू लिए मजदूर ने कहा कि ऐसी बेरोजगारी में घुट घुटकर जीने से तो अच्छा है कोरोना हो जाए और वह मर जाएं.

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