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रशियन संघ ने ग्वालियर अंचल की धान और तिल के निर्यात को टाला

रशियन संघ ने ग्वालियर से बिना रासायनिक खाद के उपयोग वाली धान और तिल की मांग की थी, लेकिन एक भी गांव नहीं मिला, जहां रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया गया हो. इसके चलते निर्यात टाल दिया गया है.

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Published : Jan 7, 2020, 2:49 PM IST

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रशियन संघ ने टाला धान और तिल का निर्यात

ग्वालियर। जिले से धान और तिल के देश से बाहर निर्यात की संभावनाएं खत्म हो गई हैं. धान और तिल के निर्यात से पहले किसान कल्याण विभाग ने पेस्ट फ्री एरिया का सर्वे कर रिपोर्ट मांगी थी. रिपोर्ट में ऐसा एक भी गांव नहीं मिला, जहां किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करते हों.

रशियन संघ ने टाला धान और तिल का निर्यात

दरअसल रशियन संघ ने मांग की थी कि उन्हें ग्वालियर में उत्पादित होने वाला धान और तिल चाहिए, जिसके पास कृषि कल्याण विभाग ने जिले की उत्तम पैदावार वाली 24 गांव में 5 सदस्यीय टीम को सर्वे के लिए भेजा था. सर्वे करने गई टीम ने पाया कि जिले में कोई भी ऐसा किसान नहीं है, जो धान और तिल की फसल बिना रासायनिक उर्वरक के प्रयोग की हो, जबकि रशियन संघ ने जैविक तौर पर उत्पादित फसल की मांग की थी.

रशियन संघ को निर्यात के पीछे रासायनिक खाद के प्रयोग के बाद विभाग की भूमिका पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. जैविक खेती के प्रचार-प्रसार के लिए कृषि विभाग हर साल करोड़ों रुपए का बजट खर्च करता है, लेकिन उसके बावजूद भी जिले में कोई भी ऐसा किसान उन्हें नहीं मिला जो जैविक खेती करता हो. कृषि कल्याण विभाग जिले के सभी विकास खंडों में 50-50 किसानों को चिन्हित कर उन्हें जैविक खेती करने के लिए प्रेरित करने का प्लान बना रहा है, ताकि आने वाले सालों में ग्वालियर रशियन संघ को धान और तिल निर्यात कर सके.

ग्वालियर। जिले से धान और तिल के देश से बाहर निर्यात की संभावनाएं खत्म हो गई हैं. धान और तिल के निर्यात से पहले किसान कल्याण विभाग ने पेस्ट फ्री एरिया का सर्वे कर रिपोर्ट मांगी थी. रिपोर्ट में ऐसा एक भी गांव नहीं मिला, जहां किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं करते हों.

रशियन संघ ने टाला धान और तिल का निर्यात

दरअसल रशियन संघ ने मांग की थी कि उन्हें ग्वालियर में उत्पादित होने वाला धान और तिल चाहिए, जिसके पास कृषि कल्याण विभाग ने जिले की उत्तम पैदावार वाली 24 गांव में 5 सदस्यीय टीम को सर्वे के लिए भेजा था. सर्वे करने गई टीम ने पाया कि जिले में कोई भी ऐसा किसान नहीं है, जो धान और तिल की फसल बिना रासायनिक उर्वरक के प्रयोग की हो, जबकि रशियन संघ ने जैविक तौर पर उत्पादित फसल की मांग की थी.

रशियन संघ को निर्यात के पीछे रासायनिक खाद के प्रयोग के बाद विभाग की भूमिका पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं. जैविक खेती के प्रचार-प्रसार के लिए कृषि विभाग हर साल करोड़ों रुपए का बजट खर्च करता है, लेकिन उसके बावजूद भी जिले में कोई भी ऐसा किसान उन्हें नहीं मिला जो जैविक खेती करता हो. कृषि कल्याण विभाग जिले के सभी विकास खंडों में 50-50 किसानों को चिन्हित कर उन्हें जैविक खेती करने के लिए प्रेरित करने का प्लान बना रहा है, ताकि आने वाले सालों में ग्वालियर रशियन संघ को धान और तिल निर्यात कर सके.

Intro:ग्वालियर- ग्वालियर जिले में धान और तिली के देश के बाहर निर्यात की संभावनाएं खत्म हो गई है ऐसा जिले के अधिकांश क्षेत्रों में कीट व्याधि के कारण किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करने से हुआ है। धान और तिली के निर्यात से पहले किसान कल्याण विभाग ने पेस्ट फ्री एरिया का सर्वे कर रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट में एक ही गांव ऐसा नहीं मिला जहां पर किसान फसल बचाने के लिए रासायनिक उर्वरक का प्रयोग नहीं करते हो।


Body:दरअसल रशियन संघ ने मांग की थी कि उन्हें ग्वालियर में उत्पादित होने वाली धान और तिली चाहिए।जिसके पास कृषि कल्याण विभाग ने जिले की उत्तम पैदावार वाली 24 गांव में 5 सदस्य टीम को सर्वे के लिए भेजा था। सर्वे करने गई टीम ने पाया कि जिले में कोई भी ऐसा किसान नहीं है जो तेली और धान की फसल बिना रासायनिक उर्वरक के प्रयोग करता हो जबकि रशियन संघ ने जैविक तौर पर उत्पादित फसल की मांग की थी उन्हें ग्वालियर में उत्पादित होने वाली धान और तिल्ली चाहिए। रशियन संग को निर्यात के पीछे रासायनिक खाद के प्रयोग के बाद विभाग की भूमिका पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। जैविक खेती के प्रचार-प्रसार के लिए कृषि विभाग हर साल करोड़ों रुपए का बजट खर्च करता है।लेकिन उसके बावजूद भी जिले में कोई भी ऐसा किसान उन्हें नहीं मिला जो जैविक खेती करता हैं। और कृषि कल्याण विभाग जिले के सभी विकास खंडों में 50 50 किसानों को चिन्हित कर उन्हें जैविक खेती करने के लिए प्रेरित करने का प्लान बना रहा है। ताकि आने वाले साल में रशियन संघ ग्वालियर की धान निर्यात की जा सके।


Conclusion:बाइट - आनंद बडेनिया, उपसंचालक कृषि कल्याण

नोट - इस स्टोरी में धान के विसुअल इसी स्लग से Wrap से भेज दिए है।
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