ग्वालियर। मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश कांग्रेस संगठन में जल्द ही बड़े बदलाव हो सकते हैं. सबसे बड़ा फेरबदल ग्वालियर चंबल संभाग में देखने को मिल सकता है. कहा जा रहा है कि दिल्ली में हाई लेवल मीटिंग हुई थी. जिसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ मध्यप्रदेश कांग्रेस के चीफ कमलनाथ, नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह और दिग्विजय सिंह मौजूद रहे. इसमें जिला अध्यक्ष और जिले के प्रभारियों को 2023 की दृष्टि से बदला जा सकता है.
चंबल-अंचल में कांग्रेस में बड़ा फेरबदल: मध्य प्रदेश में 2023 के चुनाव को लेकर ग्वालियर चंबल अंचल में पार्टी के सामने क्षेत्र में संगठन को मजबूत करने की चुनौती है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले 22 विधायकों में से ज्यादातर इसी अंचल से हैं. लिहाजा इन क्षेत्रों में कांग्रेस को चुनावी नजरिए से मजबूत करने के लिए फेरबदल किए जाएंगे. ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड, निवाड़ी, मुरैना, अशोकनगर, श्योपुर समेत करीब 16 जिलों के अध्यक्षों को बदलने पर चर्चा हुई है, तो वहीं कांग्रेस के विधायक कह रहे हैं ये रूटीन प्रक्रिया है.
साल 2023 का चुनाव बीजेपी-कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण: अगले साल यानि 2023 में मध्य प्रदेश समेत देश के 9 राज्यों में चुनाव होने हैं. इनमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, कर्नाटक, मिजोरम और तेलंगाना शामिल हैं. इन राज्यों के चुनाव सभी पार्टियों के लिए अहम होंगे, क्योंकि यहां जीत या हार से आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर जनता के मूड का पता चलेगा. इन चुनावों से पार्टियों को राज्यों में मजबूती का पता चलेगा. वहीं बीजेपी के सांसद कह रहे हैं कि इन सबसे कुछ नहीं होने वाला है. कांग्रेस वैसे भी गर्त में जा रही है, इस तरह से बदलाव से 2023 में कोई असर नहीं होगा.
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कांग्रेस में बदलवा जरूरी: देखा जाएं तो मध्य प्रदेश के कई जिलों में कांग्रेस की हालत खराब है. सबसे ज्यादा विंध्य और बुन्देलखंड में कांग्रेस कमजोर है. प्रदेश के 13 जिले ऐसे हैं, जहां कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है. इन जिलों में 42 विधानसभा की सीटें हैं. इन जिलों को लेकर भी कांग्रेस खासा जोर दे रही है. वहीं चंबल पर कांग्रेस का इसलिए भी जोर ज्यादा है, क्योंकि 2018 में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को आगे करके चुनाव लड़ा था. अब वहां कोई बड़ा चेहरा नहीं है, साथ ही जो जिलाध्यक्ष भी है, वो सिंधिया के समय नियुक्त किए गए हैं, ऐसे में राजनीतिक सर्जरी किया जाना बहुत जरूरी है.