ग्वालियर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने एक अपील पर सुनवाई करते हुए सेंट्रल जेल अधीक्षक को जमकर फटकार लगाई है. मेडिकल ऑफिसर की सिफारिश की अनदेखी कर कैदी को नई दिल्ली एम्स में इलाज के लिए नहीं भेजने पर जस्टिस रोहित आर्या ने कहा कि दुनिया भर के प्रोटोकॉल के लिए मध्य प्रदेश पुलिस के पास बल है, लेकिन कैदी को इलाज के लिए भेजने में बल की कमी पड़ रही है. कोर्ट ने जेल अधीक्षक से कहा कि वह स्वयं कैदी को दिल्ली ले जाएं और अच्छे इलाज की व्यवस्था करें. आवश्यकता पड़े तो उसकी सर्जरी भी करवाएं.
सेंट्रल जेल में 7 साल से बंद है कैदी : ग्वालियर की सेंट्रल जेल में एक बंदी पिछले 7 साल से बंद है और पेशाब की नली में इंफेक्शन के चलते डॉक्टर ने इलाज के लिए दिल्ली एम्स रेफर करने की सिफारिश की है. लेकिन जेल प्रबंधन इस मामले में रोजाना कुछ ना कुछ नए बहाने बनाकर बंदी को इलाज के लिए दिल्ली एम्स अस्पताल नहीं भेज रहा है. इसी मामले में जब हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में सुनवाई हुई तो कोर्ट ने ने सख्त लहजे में कहा कि बंदी मरीज के जीवन की सुरक्षा का जिम्मा जेल प्रबंधन का है. जज साहब बोले कि मेडिकल रिपोर्ट किसने तैयार की थी ? जवाब मिला कि जेल में पदस्थ डॉक्टर आरके सोनी ने.
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जज ने किए तीखे सवाल : इसके बाद जज साहब ने फिर पूछा- रिपोर्ट में क्या लिखा था? जेल अधीक्षक ने जवाब दिया - मरीज को एम्स दिल्ली के लिए रेफर किया है. फिर जज साहब नाराज हुए और कहा -तो मरीज को मरने के बाद ले जाया जाएगा या पहले. अधीक्षक ने कहा कि पुलिस बल की मांग की थी. आरआई से बल उपलब्ध कराने को गया था, जज साहब ने फिर कहा कि- आदमी भले ही बंदी है लेकिन यदि वह मरने की कगार पर है तो उसके जीवन की सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी है, यदि उसकी मृत्यु हो गई तो जवाबदेही किसकी होगी. पुलिस बल जहां से लाना है वहां से लाएं. यह तमाशा बंद करें, यह मूर्खता की पराकाष्ठा है.